समकालीन कहानियों में
इस माह
प्रस्तुत है-
भारत से शुभदा मिश्रा की
कहानी
पिता की विशिष्टता
सर,
आपने कहा कि अपने पिता की पुण्यतिथि के इस पुण्य अवसर पर मैं
कुछ ऐसी बात बताऊँ जो मुझे उनमें कुछ विशिष्ट ही लगी हो,
दूसरों से अलग लगी हो। सर, मुझे तो
मेरे पिता संपूर्ण रूप से विशिष्ट ही लगते हैं फिर भी कुछ
विशेष बात है जो उन्हें दूसरों से अलग करती है। वह क्या है,
मुझे स्वयं भी स्पष्ट नहीं है। संभवतःउनके बारे में बताने लगूँ
तो स्पष्ट हो जाए। सर, पिताजी अति पिछड़े गाँव के अति गरीब घर
से थे। हमारे दादाजी दूसरों के खेत पर काम करने वाले खेतिहर
मजदूर थे। पिताजी छुटपन से उनके साथ मजदूरी करने जाने लगे थे।
जल्दी ही शादी भी हो गई थी। वे कुछ पढ़ना लिखना सीख गए थे। साठ
सत्तर का दशक रहा होगा कि तभी तेजी से प्रसिद्ध होते भिलाई
कारखाने में मजदूरों की आवश्यकता निकली। भाग्य आजमाने कुछ
मजदूरों के साथ पिताजी भी चले गये। वे चुन लिये गए। यहीं से
हमारे परिवार के भाग्य ने पलटा खाया। पिताजी परिवार भिलाई ले
आये। गाँव में तो हम माटी की मड़ैया में रहते थे। मगर यहाँ
भिलाई में हमें रहने के लिए फ्लैट मिला।
... आगे-
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