समकालीन कहानियों में इस माह
प्रस्तुत है
भारत
से कृष्णलता सिंह की कहानी
अँधेरे से उजाले की ओर
बीस फरवरी को बटालियन की स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर जैसलमेर में
सेवानिवृत्त और सेवारत सैन्याधिकारियों, जेसीओ साहबानों,
जवानों और उनके परिवारों का महामिलन था। तीन दिन का बड़ा
व्यस्त कार्यक्रम था। चौथा दिन अतिथियों की अपनी स्वेच्छा का
दिन था। उनके मनोरंजन के लिये कई विकल्प थे। बस शाम को “डेजर्ट
नाइट” के लिये सब को रिसोर्ट पर पहुँचना था। पाँच बजे सब
डजर्टस्प्रिंग रिसोर्ट पहुँचे।
चाय नाश्ते के बाद सैण्ड ड्यून
पर जाकर सूर्यास्त देखने का कार्यक्रम था। ऊँट की सवारी करते
ही राधिका को याद आया। एक बार उसने जनरल यज्ञेन्द्र से मजाक
में कहा था- “यज्ञेन्द्र! मैंने हाथी, घोड़ा, खच्चर, इक्का,
ताँगा, बैलगाडी, बुग्गी, रिक्शा, बस, रेल, हवाईजहाज,
हेलीकॉप्टर, पानी का जहाज आदि सब की सवारी कर ली पर ऊँट की
नहीं की।” तब यज्ञेन्द्र ने कहा था-
“ऊँट की सवारी के लिये तो तुम्हें राजस्थान चलना पड़ेगा, जहाँ
तुम जाना नहीं चाहती हो।” राधिका ने तब तड़फकर कहा था- “मरते
दम तक राजस्थान में कदम नहीं रखूँगी।”
... आगे-
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