रामकुमार
रामकुमार
(२३ सितंबर १९२४ - १४ अप्रैल २०१८) भारत के ऐसे अमूर्त
चित्रकारों में से एक हैं जो एम.एफ. हुसैन जैसे कलाकारों
के साथ-साथ प्रगतिशील चित्रकारों के समूह से जुड़े थे, और
जिन्हें अमूर्त कला के लिए फीगरेटिव कला को छोड़ने वाले
पहले भारतीय कलाकारों में से एक माना जाता है। उनकी
कलाकृतियों ने न केवल भारतीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय कला जगत
में ऊँची कीमतों के कीर्तिमान बनाए। उनकी कृति "द
वागाबॉन्ड" न्यूयॉर्क की क्रिस्टी आर्ट गैलरी में ११
मिलियन डॉलर (₹ ८०,८,८४,३२०.००) के मूल्य पर बिकी जो उस
समय एक विश्व रिकॉर्ड था।
वे
कुछ भारतीय आधुनिकतावादी कलाकारों में से एक हैं जो
चित्रकला के साथ-साथ लेखन में भी निपुण थे। उनकी गिनती साठ
के दशक के चर्चित कथाकारों में होती है। उनके पाँच कहानी
संग्रह हुस्ना बीबी तथा अन्य कहानियाँ, एक चेहरा, समुद्र,
एक लंबा रास्ता, दीमक और अन्य कहानियाँ तथा दो उपन्यास
‘चार बने घर टूटे’ और ‘देर सवेर’ प्रकाशित हुए। वे
प्रख्यात लेखक निर्मल वर्मा के बड़े भाई थे।
रामकुमार ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से अर्थशास्त्र
विषय मे एम.ए. किया था। कला के प्रति उनका रुझान तब
प्रारम्भ हुआ जब अपने कॉलेज से घर लौटते समय उन्होंने
रास्ते मे कनॉट प्लेस पर लगी एक कला प्रदर्शनी को देखा।
इससे प्रभावित होकर उन्होंने 'शारदा उकील स्कूल ऑफ आर्ट,
दिल्ली' में कला की शिक्षा के लिए प्रवेश लिया, शैलोज
मुखर्जी के निर्देशन में शिक्षा ग्रहण की और कला को बारीकी
से जाना। १९५० से १९५२ तक कला अध्ययन हेतु वे पेरिस में
रहे, जहाँ आंद्रे लाहोत फर्नान्द लीजे के निर्देशन में काम
सीखा। १९७० और १९७२ में जे. आर. डी. टाटा फैलोशिप और
रॉकफेलर फेलोशिप मिलने पर उन्होंने अमेरिका की यात्रा की।
१९७० के दशक में ही रामकुमार ने ग्रीस की यात्रा में
प्राचीन, अर्वाचीन और ग्रीक कला शैली को देखा। रामकुमार ने
अपने गुरु फर्नान्द लीजे के घनवादी शैली के आधार पर रचनाएँ
की।
रामकुमार के प्रारंभिक चित्रों में जनमानस और युवाओं की
निराशा, उदासी और हताशा दिखाई देती है। बेरोजगार स्नातक,
पीड़ा, विस्मय, कौतूहल, निराश्रित आदि शीर्षकों में
रामकुमार ने जो चित्र बनाये, उनमें व्यक्तियों के चेहरे पर
फैली परेशानी, दुःख और त्रासदी को सामाजिक परिवेश में देखा
जा सकता है। आपके चित्रों में मानवीय संवेदना के चित्रण के
कारण ही उन्हें 'मनुष्य की सभ्यता' का चित्रकार भी कहा
जाता है। १९६० और १९७० के बीच रामकुमार ने अमूर्त चित्रकला
की शुरुआत की। उनके द्वारा इस शैली में निर्मित बनारस के
घाटों, गंगा नदी के किनारे बालू के टीलों, लहरों
और
मकानों के अमूर्त दृष्यबिंब अत्यंत नयनाभिराम मालूम होते
हैं, जिसमे उन्होंने जापानी इंक और वैक्स पद्धति का प्रयोग
किया था।
भारत सरकार की ओर से उन्हें १९७२ में पद्मश्री और उत्तर
प्रदेश सरकार का प्रेमचंद पुरस्कार, १९८६ में मध्यप्रदेश
सरकार का कालिदास सम्मान, २०१० में पद्मभूषण, २०११ में
ललितकला अकादमी फेलोशिप आदि अनेक पुरस्कारों और सम्मानों
से अलंकृत किया गया।
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