चुंगी-दफ्तर खूब रँगा-चुँगा है।
उसके फाटक पर इन्द्रधनुषी आकार के बोर्ड लगे हुए हैं। सैयदअली
पेण्टर ने बड़े सधे हाथ से उन बोर्डों को बनाया है। देखते-देखते
शहर में बहुत-सी दुकानें हो गई हैं, जिन पर साइनबोर्ड लटक गए
हैं। साइनबोर्ड लगाना यानि औकात का बढ़ाना। बहुत दिन पहले जब
दीनानाथ हलवाई की दुकान पर पहला साइनबोर्ड लगा था, तो वहाँ दूध
पीनेवालों की संख्या एकाएक बढ़ गई थी। फिर बाढ़ आ गई, और नये-नये
तरीके और बेलबूटे ईजाद किए गए। ‘ऊँ’
या ‘जयहिन्द’ से शुरू करके ‘एक बार अवश्य परीक्षा कीजिए’ या
‘मिलावट साबित करने वाले को सौ रुपए नकद इनाम’ की मनुहारों या
ललकारों पर लिखावट समाप्त होने लगी। चुंगी-दफ्तर का नाम तीन
भाषाओं में लिखा है। चेयरमैन साहब बड़े अक्किल के आदमी है।, उनकी
सूझ-बूझ का डंका बजता है, इसलिए हर साइनबोर्ड हिन्दी, उर्दू और
अंग्रेजी में लिखा जाता है। दूर-दूर के नेता लोग भाषण देने आते
हैं, देश-विदेश के लोग आगरा का ताजमहल देखकर यहाँ से गुजरते
है।
आगे-
अनूप कुमार शुक्ल
का व्यंग्य
आदमी रिपेयर सेंटर
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सत्यवान सौरभ का आलेख-
पक्षी और पर्यावरण
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कला दीर्घा में- कवि और कलाकार
अमृतलाल वेगड़ से परिचय
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आज-सिरहाने-में-प्रेरणा-गुप्ता-के-लघुकथा-संग्रह-
सूरज डूबने से पहले पर नमिता सचान सुंदर
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