इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
1
होली के रंगों से सराबोर, छंद की अनेक विधाओ में रची, गुझिया
के रस में पगी अनेक रचनाएँ। |
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घर परिवार में |
रसोईघर में- होली के अवसर पर अभिव्यक्ति की विभिन्न
व्यंजन लेखिकाओं द्वारा प्रस्तुत
होली के ढेर से पकवान। |
सौंदर्य सुझाव --
बेसन, नीबू, हल्दी और नारियल के तेल को मिलाकर बनाए गए लेप से
होली के रंग आसानी से छूटते हैं और त्वचा भी स्वस्थ रहती है। |
संस्कृति की पाठशाला- जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या
दुख के बाद सुख का आना जीवन चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता
|
क्या आप जानते हैं?
कि होली का पर्व राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती, प्रह्लाद-होलिका और
कंस-पूतना जैसे पौराणिक चरित्रों से जुड़ा हुआ है। |
- रचना और मनोरंजन में |
गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं
कि मार्च के महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म
लिया?
...विस्तार से |
सप्ताह का विचार- जलाने की लकड़ी
ही होलिका है जब वह जलती है तब प्रह्लाद की प्राप्ति होती है।
प्रह्लाद जो आह्लाद का ही विशेष रुप है। -मुक्ता |
वर्ग
पहेली-३३५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से |
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हास परिहास में
पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य और संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों के अंतर्गत
प्रस्तुत है- भारत से मीनू त्रिपाठी की कहानी-
होली
की गुझिया
करीब दस बजे गाड़ी के हॉर्न की
आवाज़ पर वह बाहर आई, तो “हैप्पी होली” के समवेत स्वर के साथ
सास-ससुर आते दिखाए दिए। पैर छूती तूलिका को सास ने गर्मजोशी
से बाँहों में भर लिया। ससुर ने स्नेहजनित आशीर्वाद भरा हाथ
उसके सिर पर रखा। परदेस में सहसा अपने देश की महक उसे भली लगी
कि तभी उसकी नज़र समीर को ढूँढने लगी, फिर समीर को देख वह
हर्षमिश्रित विस्मय से चिल्ला पड़ी। तूलिका समंदर के किनारे
बैठकर लहरों का आना-जाना देखने लगी। मॉरिशस में समंदर का नीला
पन्ने-सा हरा रंग उसे बहुत भाता है। समीर के साथ अक्सर यहाँ
आकर घंटों बैठती है। किस वक्त लो टाइड-हाई टाइड होगा, उसे पता
है। करीब आधे घंटे बैठने के बाद उसने महसूस किया कि समंदर की
लहरें रफ्ता-रफ्ता आगे बढ़ने लगी थीं। आस-पास की गीली रेत को
देख मन गीला-गीला-सा होने लगा था। बीते रविवार की बात
मन-मस्तिष्क में घूमने लगी। जब वह सुबह-सुबह समीर के साथ बैठी
इत्मिनान से चाय की चुस्कियाँ भर रही थी। उस वक्त उसके मुँह से
निकला, “समीर, होली आनेवाली है। आगे-
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सीमा वर्मा की
लघुकथा-
होली आई रे
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जसवीर त्यागी का संस्मरण
ऐसे थे रामविलास
शर्मा
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उषा वाधवा से जानकारी
गुझिया की कहानी
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कला दीर्घा के अंतर्गत-
होली आधुनिक शैली की
कलाकृतियों में
1 |
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होली के अवसर पर
विशेष- |
पर्व परिचय में-
व्यंग्य में-
लोक साहित्य में-
लघुकथा में-
कहानियों में-
जब
भी गाँव जाता हूँ, मन में अपने बचपन के सहपाठियों और मित्रों
से मिलने की एक अजीब बेचैनी भरी होती है। इस जीवन-यात्रा में
कुछ तो नवयौवन के पड़ाव पर ही अभावों से टूटकर गिर पड़े, जैसे
आँधी में टिकोरे। कुछ बाद में टूटे। कुछ बीमारी या
अस्वस्थता की लपेट में आ गए। यानी एक-एक कर न जाने कितने चले
गए और कितनों से तो (जो दूसरे गाँवों के थे) युगों से भेंट ही
नहीं हुई। पता नहीं, कौन क्या कर रहा है, जीवित भी है कि
नहीं। गाँव के भी कई सहपाठियों से जमाने से भेंट नहीं हुई
क्योंकि वे नौकरी के सिलसिले में बाहर रहते हैं। जब मैं गाँव
पहुँचता हूँ तो वे नहीं होते, वे पहुँचते हैं तो मैं नहीं
होता। यही स्थिति मेरे बचपन के बहुत जीवंत दोस्त जोगीराय की
थी। वे रेलवे में काम करते थे और अपने ढँग से गाँव आते-जाते
रहे होंगे। मैं जब भी गाँव पहुँचता उनके बारे में पूछता - 'आए
हैं क्या?'
आगे... |
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