होली
के त्यौहार की खरीदारी करने के लिये मैं बाजार निकल गई।
वहाँ पहुँचकर एक दुकान पर सजे रंगों को देखकर ठिठक गई और
उन्हें निहारने लगी। दुकान के अंदर बहुत भीड़ थी।इस लिये
मैं बाहर लगे सामान को देखने लगी।
सेल्स मैन मुझे अलग-अलग तरह की पिचकारियाँ दिखाने लगा।
इतने में मेरा ध्यान एक छोटे से लड़के पर गया जो शायद
लिफाफा बीनने वाला था उसने अपनी पीठ पर बड़ा सा प्लास्टिक
का थैला लटका रखा था। उसकी मासूम निगाहें बड़े ही प्यार से
उन रंगों के ढेर को निहार रही थी। दो-तीन बार दुकान वाले
लड़के ने उसे भगाया भी, फिर भी वह दूर से एक टक तक उन्हें
देखता रहा।
मेरे मन में न जाने क्या आया, मैंने एक पिचकारी और थोड़े
से रंग लिये और उसको देने के लिये हाथ बढ़ाया। उसने सिर
हिला कर 'ना' कर दी।
मैंने फिर से मिन्नत करते हुए कहा, "ले लो!"
उसने जेब से दस रुपए का नोट निकाला और मुझे देने लगा।
मैंने कहा, "अरे नहीं, तुम ऐसे ही रख लो।"
वह धीरे से बोला, "एक पिचकारी और लेनी।"
मैं हँस पड़ी और पूछा, "वह किसके लिये?"
"मेरे दो भाई बहन है, एक होगी तो दोनों लड़ेंगे!"
उसकी बात सुनकर मैं स्तब्ध रह गई। तभी मैंने एक पिचकारी
उसको और पकड़ा दी। उसने झट से मेरे हाथ में वह नोट रखा और
पिचकारी लेकर "होली आई रे..." कहता हुआ भाग गया।
मैं उसके चेहरे पर जिस मुस्कान को देखना चाहती थी, उसे
देखने से वंचित रह गई मगर उसका दिया हुआ नोट अभी भी मेरे
हाथों में पड़ा मुस्कुरा रहा था।
१ मार्च २०२१ |