इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1पंकज
परिमल, धीरेन्द्र कुमार सिंह सज्जन, पंकज त्रिवेदी, राजेन्द्र सारथी और संगीता
मनराल की
रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- होली के अवसर पर |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
सुदर्शन वशिष्ठ की कहानी-
साहिब है रंगरेज
किस्सा
उस समय का है जब शहर ने अँगड़ाई नहीं ली थी। बस अपने में
सकुचाया और सिमटा हुआ रहता था। ठण्डी सड़कों में जगह जगह झरने
बहते, जहाँ स्कूली बच्चे और राहगीर अंजुली भर भर पानी पीते।
मुख्य बाजार में बहुत कम आदमी नजर आते। गर्मियों में गिने चुने
लोग मैदानों से आते जिन्हें सैलानी नहीं कहा जाता था। कुछ
मेमें छाता लिए रिक्शे पर बैठी नजर आतीं। इन रिक्शों को आदमी
दौड़ते हुए चलाते थे। सर्दियों में तो वीराना छा जाता। माल रोड़
पर कोई भलामानुष नजर नहीं आता। मॉल रोड पर तो बीच से सड़क साफ
कर रास्ता बना दिया जाता, लोअर बाजार में दुकानें बर्फ से अटी
रहतीं। स्कूल कॉलेज बंद। वैसे भी ले दे कर लड़कियों का एक
सरकारी स्कूल, लड़कों का डी.ए.वी. स्कूल और एक प्राईवेट कॉलेज
था। दो चार कांवेंट स्कूल थे, जो संभ्रांत परिवारों की तरह
अपने में ही रहते। इन में ऐसे बच्चे रहते जिनके माता पिता के
पास उन के लिए समय नहीं था। सर्दियों की छुट्टियों में होस्टल
भी ख़ाली हो जाते। आगे-
*
दिनेश का व्यंग्य
चमचा चिंतन
*
डॉ. दीपक आचार्य का आलेख
प्रकृति का
उपहार बहूपयोगी लक्ष्मी तरु
*
यमुना दत्त वैष्णव ‘अशोक’ से
जानें
शिशुनाग शशांक: इतिहास के
दर्पण में
*
पुनर्पाठ में निर्मल वर्मा की
डायरी के अंश-
हवा
में वसंत |
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प्रेरक प्रसंग
बंदरों का
मनोविज्ञान
*
देवी नागरानी की कलम से
रचनाकार राधेश्याम शुक्ल
*
अम्बरीष श्रीवास्तव का आलेख
कहानी बाँसुरी
की
*
पुनर्पाठ में राजेन्द्र प्रसाद
सिंह का आलेख
भोजपुरी साहित्य में नीम
आम और जामुन
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है यू.एस.ए. से
सुषम बेदी की कहानी-
कितने कितने
अतीत
इधर
कुछ दिनों से कौशल्या बस एक ही शिकायत करती थकती न थी। हर किसी
से वही कहानी दुहरायी जाती। पहले तो निजी परिचारिका से कहा-
हाय हाय मुझसे नहीं देखा जाता वह आदमी। मेरी टेबल पर ही बिठा
दिया है उसको। हर वक्त नाक बहती रहती है, मुँह से लार टपकती
रहती है और वह मुँह में खाना डालता रहता है। न नाक साफ करता है
न लार। खाने के साथ लार भी... छिछि, घिन होती है मुझे। मैं
नहीं बैठ सकती उस मेज पर। परिचारिका बोली-तो क्या हुआ? तुमको
तो कुछ नहीं कहता। अपना चुपचाप खाता रहता है। और जो नाक गिरती
रहती है खाने में? तो क्या मुझको फरक नहीं पड़ता। मुझसे नहीं
देखा जाता। उल्टी आती है उसे देखकर। कम से कम नाक5 तो साफ कर
ले। खाने के साथ साथ नाक भी निगलता जाता है। कोई उसको कुछ कहता
क्यों नहीं?
मिस शर्मा। मार्क (यही उसका नाम था) बेचारे को अपना तो होश
नहीं। वह क्या करेगा नाक साफ। कोई नर्स तो पीछे पीछे घूम नहीं
सकती...
आगे-
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