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२९. ९. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
मातृनवमी के अवसर पर माँ को समर्पित अनेक रचनाकारों की विविध विधाओं में रोचक रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि ने इस अंक के लिये चुने हैं- नवरात्र में व्रत के लिये स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक फलाहारी व्यंजन

गपशप के अंतर्गत- त्योहार आने वाले हैं और मेहमानों का आना जाना जल्दी ही शुरू हो जाएगा। ऐसे में कुछ उपयोगी सुझाव- वास्तु और फेंगशुई

जीवन शैली में- १० साधारण बातें जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद और संतुष्ट बना सकती हैं - १. आज खाने में क्या है?

सप्ताह का विचार- सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही समय आने पर महान फल देता है।
- कथा सरित्सागर

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- कि आज के दिन (२९ सितंबर को) ब्रजेश मिश्रा, कवि सत्यव्रत शास्त्री, अभिनेता महमूद,  वरिष्ठ कथाकार विद्यासागर नौटियाल... विस्तार से

धारावाहिक-में- लेखक, चिंतक, समाज-सेवक और प्रेरक वक्‍ता, नवीन गुलिया की अद्भुत जिजीविषा व साहस से भरपूर आत्मकथा- अंतिम विजय का आठवाँ भाग

वर्ग पहेली-२०४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

 

अपने विचार यहाँ लिखें

साहित्य एवं संस्कृति में- नवरात्रि में माँ को समर्पित

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 नीलेश शर्मा की कहानी- अजन्मी

बच्ची को माँ के गर्भ में रहते हुए बीस हफ्ते हो चुके थे! खुद बच्ची को भी दो रोज पहले ही पता चला था कि वो एक बेटी के रूप में जन्म लेगी। बाहरी दुनिया के लिए तो गर्भ एक अंधकारमय जीवन होता है लेकिन बच्ची के लिए नहीं था। हर पल परमेश्वर उसके साथ रहते थे। एक रंगीन, मोहक, कल्पनाओं में खोयी रहने वाली दुनिया में दोनों मस्त रहते थे। प्रभु अपने हाथों से उसका रूप गढ़ते और उसे देख कर मुग्ध हो जाते। कहते हैं दूध में सिंदूर घोल कर प्रभु रचना करते हैं कन्या की। प्रभु अपने दूतों से दूर दूर से कभी सुन्दरता को मँगवाते, कभी कोमलता को और उस बच्ची के शरीर में भर देते। कभी अपने किसी खास बन्दे से कहते कि कोयल की आवाज में जरा सा शहद घोल कर दो। कभी हिरनी से चितवन माँगते, कभी जलते हुए दीपकों से रौशनी लेते और कभी चंद्रमा से उसकी चाँदनी ही माँग लेते। अपने हाथों से वो बच्ची को सजाते। वो बच्ची प्रभु की बड़ी लाडली थी। प्रभु के हाथ जब उस बच्ची के लघु गात को स्पर्श करते तो दिन भर के शांत पड़े समंदर में लहरें मचलने लगतीं... आगे-
*

अभिषेक जैन की लघुकथा
माँ का विश्वास
*

डॉ. जगदीश व्योम का आलेख
हिंदी हाइकु कविताओं में माँ
*

मृदुला शर्मा की कलम से
पाँच मिनट की रामलीला पाँच लाख की भीड़

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पुनर्पाठ में अजातशत्रु का संस्मरण
गाँव में नवदुर्गा

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पिछले सप्ताह-  

आलोक सक्सेना का व्यंग्य
नाम में दम
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रमेश बेदी का आलेख
जलदपाड़ा अभयवन में गैंडे
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गुरमीत बेदी के सात पर्यटन
अमृतसर- जहाँ अमृत बरसता है
*

पुनर्पाठ में- स्वदेशी की कलम से
भारतीय विज्ञान का कमाल दिल्ली का लौह स्तंभ

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 जयनंदन की कहानी- गोजरसिंह अमर रहें

उसे वे दिन बड़े उदास, बोझिल, बेमजा और बोरियत भरे लग रहे थे। भीतर के उत्साह की गर्दन पर लगता था एक जालिम पकड़ कसती जा रही है। एक नपुंसक आक्रोश में हल्की आँच पर दूध की तरह वह खौलता जा रहा था और धीरे-धीरे उसकी स्फूर्ति भाप की शक्ल लेती जा रही थी। उस दिन शाम में उसने दुकान खोली तो हठात ऊपर उठकर उसकी नजरों ने देखा कि ‘पारस टेंट हाउस’ लिखे बोर्ड की चमक फीकी होती जा रही है। अंदर ƒघुसा तो उसका अक्स चारों ओर फैल गया। लगा जैसे शामियाना, कनात, तिरपाल, कुर्सियाँ, झालरें, चादरें, क्रॉकरी, पेट्रोमे€स, स्टीरियो, साउंड बॉ€स, कैसेट्स, पंखे, जेनरेटर्स, बिजली सजावट की सारी जिंसें सहमी हुईं, दुबकी हुईं और थकी हुईं गुनहगार की तरह उसे घूर रही हैं। उसने बत्ती जलायी, काउंटर पर कपड़ा मारा और एक कुर्सी पर उटंग गया। अगल-बगल में लाईन की सारी दुकानें खुली हुई थीं। सामने की सडक़ पर आवागमन का सिलसिला शुरू हो गया था। उसकी आँखें दुकान के नौकर छगन को आसपास टोहने लगीं। आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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