इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
शैलेन्द्र शर्मा, राकेश मधुर, भावना, पवन प्रताप सिंह पवन और ऋचा शर्मा की
रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि ने इस अंक के लिये
चुने हैं- नवरात्र में व्रत के लिये स्वादिष्ट और
स्वास्थ्यवर्धक फलाहारी
व्यंजन। |
गपशप के अंतर्गत- त्योहार आने वाले हैं और मेहमानों का आना जाना
जल्दी ही शुरू हो जाएगा। ऐसे में कुछ उपयोगी सुझाव-
रखरखाव रसोई
का। |
जीवन शैली में-
शाकाहार एक लोकप्रिय जीवन शैली है। फिर भी
आश्चर्य करने वालों की कमी नहीं।
१४
प्रश्न जो शकाहारी सदा झेलते हैं- १४
|
सप्ताह का
विचार-
मिथ्या लांछन का सबसे अच्छा उत्तर है शांत रहकर धैर्यपूर्वक अपने
काम में निरंतर लगे रहना।
- मुक्ता |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं- कि आज के दिन
(२२ सितंबर को) स्वामी श्रद्धानंद, यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त, स्वामी सहजानंद सरस्वती, और राजश्री ठाकुर...
विस्तार से |
धारावाहिक-में-
लेखक, चिंतक, समाज-सेवक और
प्रेरक वक्ता, नवीन गुलिया की अद्भुत जिजीविषा व साहस से
भरपूर आत्मकथा-
अंतिम विजय
का सातवाँ भाग। |
वर्ग पहेली-२०३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
विशेषांकों की समीक्षाएँ |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
जयनंदन की कहानी-
गोजरसिंह अमर रहें
उसे वे दिन बड़े उदास, बोझिल, बेमजा और बोरियत भरे लग रहे थे।
भीतर के उत्साह की गर्दन पर लगता था एक जालिम पकड़ कसती जा रही
है। एक नपुंसक आक्रोश में हल्की आँच पर दूध की तरह वह खौलता जा
रहा था और धीरे-धीरे उसकी स्फूर्ति भाप की शक्ल लेती जा रही
थी। उस दिन शाम में उसने दुकान खोली
तो हठात ऊपर उठकर उसकी नजरों ने देखा कि ‘पारस टेंट हाउस’ लिखे
बोर्ड की चमक फीकी होती जा रही है। अंदर घुसा तो उसका अक्स
चारों ओर फैल गया। लगा जैसे शामियाना, कनात, तिरपाल,
कुर्सियाँ, झालरें, चादरें, क्रॉकरी, पेट्रोमेस, स्टीरियो,
साउंड बॉस, कैसेट्स, पंखे, जेनरेटर्स, बिजली सजावट की सारी
जिंसें सहमी हुईं, दुबकी हुईं और थकी हुईं गुनहगार की तरह उसे
घूर रही हैं। उसने बत्ती जलायी, काउंटर पर कपड़ा मारा और एक
कुर्सी पर उटंग गया। अगल-बगल में लाईन की सारी दुकानें खुली
हुई थीं। सामने की सडक़ पर आवागमन का सिलसिला शुरू हो गया था।
उसकी आँखें दुकान के नौकर छगन को आसपास टोहने लगीं। कुछ ही पल
में घोड़े की तरह सरपट छलाँग लगाता और...
आगे-
*
आलोक सक्सेना का व्यंग्य
नाम में दम
*
रमेश बेदी का आलेख
जलदपाड़ा अभयवन में गैंडे
*
गुरमीत बेदी के सात पर्यटन
अमृतसर- जहाँ अमृत बरसता है
*
पुनर्पाठ में- स्वदेशी की कलम से
भारतीय
विज्ञान का कमाल
दिल्ली का लौह स्तंभ |
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पिछले
सप्ताह- पितृपक्ष में पिता के लिये |
नीलेश शर्मा की
लघुकथा- याद
*
सुबोध कुमार नंदन का
आलेख
पूर्वजों के उद्धार के लिये प्रसिद्ध तीर्थ- गया
*
तृषा पटेल का शोध निबंध
वेद
और पुराण में श्रद्धा व श्राद्ध
*
पुनर्पाठ में जयप्रकाश मानस का
ललित निबंध-
काग के भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
राजकुमार राकेश की कहानी-
पिता
बच्चा साढ़े बारह बरस से कुछ
महीने ज्यादा उमर का था। यही कोई दो ढाई महीने ज्यादा। पर दादी
यानी अम्मा उसे तेरह का जवान सधान कहती थी। इसी तर्ज पर लोगबाग
भी उसे अच्छा भला जिम्मेदार जवान मान लेने लगे थे। हालाँकि
उसके साथ के बच्चे खूब खेलते और आपस में लड़ते झगड़ते थे पर खुद
उसने ऐसे कामों से तौबा कर ली थी। उसने मान लिया था कि उस
बच्चे के साथ ऐसा ही होता होगा, जिसकी माँ बहुत पहले मर चुकी
हो। और अब कुछ ही दिन पहले मजदूरों की हड़ताल में पुलिस की गोली
से उसके पिता की भी मौत हो गई हो। और उन दोनों के मरे हुए
शरीरों की कपालक्रिया उसने अपने हाथों से की हो। और खासकर तब
तो और भी ज्यादा जब अम्मा अनगिनत बार कह चुकी हो कि अब उसके
कंधों पर उसके छोटे दो भाईयों और दो बहनों का भार है। बल्कि वह
तो अक्सर कहती थी कि यह इन चारों के लिए अब पिता की तरह है।
उसका कहना था कि पिता कहीं बाहर से उधार नहीं लाया जा सकता।
आगे- |
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