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३. ६. २१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
आचार्य संजीव सलिल, उषा यादव 'उषा', सुदेषणा रूहान, सुभाष मित्तल 'सत्यम' और मीनाक्षी धन्वंतरि की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं गर्मी के मौसम में लौकी के व्यंजनों की विशेष शृंखला। इस अंक में प्रस्तुत है- लौकी का रायता

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- पेस्टल रंगों की बहार

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- वार्षिक उत्सव

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- २७ के नवगीतों का प्रकाशन पूरा हो गया है। जल्दी ही अगली कार्यशाला की सूचना यहाँ प्रकाशित होगी।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- ९ सितंबर २००५ को प्रकाशित मोतीलाल जोतवाणी की सिंधी कहानी का हिंदी रूपांतर 'लालटेन, ट्यूबलाइट और शेंडेलियर'

वर्ग पहेली-१३६
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

वरिष्ठ लेखकों की बहुचर्चित कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में कामतानाथ की कहानी- मकान

चाभी ताले में फँसा कर उसने उसे घुमाया तो उसने घूमने से कतई इनकार कर दिया। उसने दुबारा जोर लगाया परंतु कोई परिणाम नहीं निकला। अपनी जेबें टटोलना शुरू कर दीं। ऊपर वाली जेब में उसे स्टील का बाल प्वाइंट पेन मिल गया। उसने उसे जेब से निकाल कर चाभी के माथे में बने सूराख में डाल कर, मुट्ठी की मजबूत पकड़ में लेकर पेंचकस की तरह जोर से घुमाया। खटाक की एक आवाज के साथ ताला खुल गया। कुंडी खोलने में भी उसे काफी परेशानी हुई। जिन दिनों वह यहाँ रहता था शायद ही कभी यह कुंडी बंद हुई हो। इसीलिए उसे हमेशा ही बंद करने और खोलने, दोनों में ही, परेशानी होती थी। कुंडी खोल कर उसने दरवाजे में जोर का धक्का दिया। दरवाजे के पल्ले काफी मोटे और भारी थे। उनमें पीतल के छोटे-छोटे फूल जड़े थे, जिनमें छोटे-छोटे कड़े लगे थे, जो दरवाजा खुलने-बंद होने में एक अजीब जलतरंगनुमा आवाज करते थे। दरवाजा खोल कर वह दहलीज में आ गया। घुसते ही उसने देखा, फर्श पर कुछ कागज आदि पड़े थे। उसने झुक कर उन्हें उठा लिया। उसने झुक कर उन्हें उठा लिया। दो लिफाफे, एक पोस्ट कार्ड और एक तह किया हुआ कागज था।...आगे-
*

प्रेरक प्रसंग में
लघुकथा- धन-सफलता-प्रेम
*

सुबोध कुमार नन्दन का आलेख-
विक्रमशिला- विश्व का दूसरा आवासीय विश्वविद्यालय
*

भावना सक्सेना की कलम से-
कुछ कतरे कंत्राक के
*

पुनर्पाठ में रूपम मिश्र
का संस्मरण- राग यात्री

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पिछले सप्ताह-


अशोक गौतम का व्यंग्य
जुगाड़ कर
*

मनोहर पुरी की कलम से श्रद्धांजलि
हिन्दी पत्रकारिता के पुरोधा बालेश्वर अग्रवाल
*

गोवर्धन यादव का आलेख
तितली तरह तरह की
*

पुनर्पाठ में कला और कलाकार के
अंतर्गत- लक्ष्मण पै से परिचय
*

साहित्य संगम में सुमतीन्द्र नाडिग की कन्नड़ कहानी का हिन्दी रूपान्तर- रेल दुर्घटना

यह कहानी मुझे चौहत्तर वर्षीय धर्मय्याजी ने सुनाई थी। यह घटना १९४० में किसी समय घटी थी। उन दिनों मैंने अपना कैलाश शहर छोड़कर बंगलौर में एक दुकान खोली थी। मेरी समझ में नहीं आता कि मेरे पिता ने मेरा नाम धर्मय्या क्यों रखा, मैं नहीं समझता कि मैंने किसी के साथ कभी कोई अन्याय किया हो। शायद मेरे अमीर न होने का कारण हो सकता है। लेकिन मुझे कभी खाने-पीने, कपड़े-लत्ते और बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में दिक्कत नहीं हुई। इस सब में भगवान मेरा मददगार रहा है। कई बार मैं सोचता हूँ कि क्या सचमुच भगवान है? मैं पूजा-पाठ जरूर करता हूँ। जानता हूँ कि ज़िन्दगी में रुपए-पैसे का बहुत महत्व है। लेकिन फिर भी मैंने न तो ज़्यादा लाभ कमाने की कोशिश की और न ही एकाएक अमीर बनने की। यह सब मैं इसलिए बता रहा हूँ कि उन दिनों मेरा एक व्यापारी मित्र था। जब मैंने उसे मात्र एक गलती के लिए तकलीफ पाते देखा तो मुझे लगा कि ऐसी कोई शक्ति जरूर है जो हमारे कर्मों को तौलकर सही और ग़लत की पहचान करती है। ...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि

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