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१४. ३. २०१

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 1
होली के रंगों से सराबोर छंद की अनेक विधाओ में रची फागुनी रचनाएँ।

- घर परिवार में

सप्ताह का व्यंजन- होली के अवसर पर अभिव्यक्ति की विभिन्न व्यंजन लेखिकाओं द्वारा प्रस्तुत होली के ढेर से पकवान

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- नवजात शिशु का ग्यारहवाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- विष मुक्ति का घरेलू नुस्खा

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ मार्च से १५ मार्च २०११ तक का भविष्य फल

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- बनाएँ वेब पेज का शार्ट कट
इन्टरनेट एक्सप्लोरर में स्क्रीन पर कहीं भी माउस का दाहिना बटन दबाए और खुलने वाली सूची में...

नवगीत की पाठशाला में- इस सप्ताह कार्यशाला-१४ की रचनाओं का प्रकाशन संपन्न हो जाएगा। अगले सप्ताह नए विषय की घोषणा होगी।

वर्ग पहेली-०२०
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

होली के अवसर पर समकालीन कहानियों में
भारत से रामदरश मिश्र की कहानी विदूषक

जब भी गाँव जाता हूँ, मन में अपने बचपन के सहपाठियों और मित्रों से मिलने की एक अजीब बेचैनी भरी होती है। इस जीवन-यात्रा में कुछ तो नवयौवन के पड़ाव पर ही अभावों से टूटकर गिर पड़े, जैसे आँधी में‍ टिकोरे। कुछ बाद में टूटे। कुछ बीमारी या अस्‍वस्‍थता की लपेट में आ गए। यानी एक-एक कर न जाने कितने चले गए और कितनों से तो (जो दूसरे गाँवों के थे) युगों से भेंट ही नहीं हुई। पता नहीं, कौन क्‍या कर रहा है, जीवित भी है कि नहीं। गाँव के भी कई सहपाठियों से जमाने से भेंट नहीं हुई क्‍योंकि वे नौकरी के सिलसिले में बाहर रहते हैं। जब मैं गाँव पहुँचता हूँ तो वे नहीं होते, वे पहुँचते हैं तो मैं नहीं होता। यही स्थिति मेरे बचपन के बहुत जीवंत दोस्‍त जोगीराय की थी। वे रेलवे में काम करते थे और अपने ढँग से गाँव आते-जाते रहे होंगे। मैं जब भी गाँव पहुँचता उनके बारे में पूछता - 'आए हैं क्‍या?' उत्‍तर 'नहीं' में मिलता। पूरी कहानी पढ़ें...
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त्रिभुवन पांडेय का व्यंग्य
ललित निबंध होली पर
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सुरेशचंद्र शर्मा के साथ देखें
लोकगीतों में झाँकता वसंत

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पवन चंदन से जानें
क्यों लगाते हैं गुलाल होली में
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पुनर्पाठ में होली के अवसर पर-
होली विशेषांक समग्र

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पिछले सप्ताह-


भारती पंडित की लघुकथा
गुरु दक्षिणा
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ईश्वर भट्ट का आलेख
तटीय कर्नाटक की लोककला- यक्षगान

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सुधा अरोड़ा का दृष्टिकोण
महिलाएँ- शिक्षा और आत्मनिर्भरता के बाद
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पुनर्पाठ में विश्वनाथ सचदेव का आलेख
बिन चिड़िया का जंगल

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समकालीन कहानियों में भारत से
सुनील कुमार श्रीवास्तव की कहानी वापसी

सर्वेश्‍वर राय के गाँव के लिए वाराणसी से आखिरी सीधी बस अपराह्न दो बजे होती थी, जो शाम पाँच बजे मुगलसराय को पीछे छोड़ती हुई बिहार की सीमा में प्रवेश करती और करीब घंटे भर बाद उनके गाँव को छूती हुई पूर्व में डिहरी-ऑन-सोन तक चली जाती। पिछले पन्‍द्रह वर्षों में उन्‍हें जब-जब गाँव जाना हुआ, इस बस ने उनकी यात्रा काफी व्‍यवस्थित रखी। लेकिन इस बार उन्‍हें सपरिवार वाराणसी पहुँचने पर पता लगा कि अब वह सीधी बस सेवा बंद हो गई है। उत्‍तर प्रदेश की बसें राज्‍य की सीमा तक जाती हैं और नौ बजे रात तक वहाँ पहुँचती हैं। सवारियों को आगे ले जाने के लिए अब बिहार की अपनी बसें हैं। लेकिन शाम पाँच बजे के बाद वहाँ से कोई बस नहीं जाती। इस व्‍यवस्‍था से उन्‍हें खासी दिककत पेश आई, लेकिन उत्‍तर प्रदेश सीमा से आगे आखिरी बस उन्‍हें मिल गई। पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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