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सर्वेश्वर
राय के गाँव के लिए वाराणसी से आखिरी सीधी बस अपराह्न दो बजे
होती थी, जो शाम पाँच बजे मुगलसराय को पीछे छोड़ती हुई बिहार
की सीमा में प्रवेश करती और करीब घंटे भर बाद उनके गाँव को
छूती हुई पूर्व में डिहरी-ऑन-सोन तक चली जाती। पिछले पन्द्रह
वर्षों में उन्हें जब-जब गाँव जाना हुआ, इस बस ने उनकी यात्रा
काफी व्यवस्थित रखी। लेकिन इस बार उन्हें सपरिवार वाराणसी
पहुँचने पर पता लगा कि अब वह सीधी बस सेवा बंद हो गई है।
उत्तर प्रदेश की बसें राज्य की सीमा तक जाती हैं और नौ बजे
रात तक वहाँ पहुँचती हैं। सवारियों को आगे ले जाने के लिए अब
बिहार की अपनी बसें हैं। लेकिन शाम
पाँच बजे के बाद वहाँ से कोई बस
नहीं जाती।
इस व्यवस्था से उन्हें खासी दिककत पेश आई, लेकिन उत्तर
प्रदेश सीमा से आगे आखिरी बस उन्हें मिल गई। सड़क काफी टूट
चुकी हे और लंबी-लंबी दूरियों तक कच्ची सड़क का रूप ले चुकी
है। दोनों ओर छोटे-छोटे गाँवों के बीच धान के खेत फैले हुए
हैं। सूर्यास्त के साथ-साथ इस समूचे अंचल में एक सन्नाटा भरा
अंधकार घिरने लगता है और हवा के चलने से एक पोशीदा आवाज सुनाई
पड़ने लगती है। शहर से होकर गाँवों में बिजली के तार खिंचे हुए
हैं लेकिन बिजली खास इनायत की तरह कभी-कदास ही आती है और तब
गाँवों के नौजवानों और बच्चों की जिन्द्री में इससे रोशनी के
कुछ रंग बनने लगते हैं और माहौल उत्सव जैसा हो जाता है।
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