कथा महोत्सव में पुरस्कृत-
यू.के. से ज़किया ज़ुबैरी की
कहानी
मेरे हिस्से की धूप
गरमी
और उस पर बला की उमस! कपड़े जैसे शरीर से चिपके जा रहे थे।
शम्मों उन कपड़ों को संभाल कर शरीर से अलग करती, कहीं पसीने
की तेज़ी से गल न जाएँ। आम्मा ने कह दिया था, "अब शादी तक
इसी जोड़े से गुज़ारा करना है।" ज़िन्दगी भर जो लोगों के
यहाँ से जमा किए चार जोड़े थे वह शम्मों के दहेज के लिए रख
दिये गए – टीन के ज़ंग लगे संदूक में कपड़ा बिछा कर। कहीं
लड़की की ही तरह कपड़ों को भी ज़ंग न लग जाए। अम्मा की उम्र
इसी इन्तज़ार में कहाँ से कहाँ पहुँच गई कि शम्मों के हाथ
पीले कर दें। शादी की ख़ुशियाँ तो क्या, बस यही ख़्याल ख़ुश
रखता था कि शम्मों अपने डोले में बैठे तो बाक़ी लड़कियाँ जो
कतार लगाए प्रतीक्षा कर रही हैं, उनकी भी बारी आए। अम्मा के
फ़िक्र और परेशानी तभी तो ख़त्म हो सकते है। शम्मों को देखने
तो कई लोग आए मगर किसी ने पक्के रंग की शिकायत की तो किसी को
शम्मों की नाक चिपटी लगी। यहाँ तक कि किसी किसी तो शम्मों की
बड़ी-बड़ी काली आँखें भी छोटी लगीं।
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अनुज खरे का व्यंग्य
आलोचकों के श्री चरणों में सादर
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धारावाहिक में प्रभा
खेतान के उपन्यास
आओ पेपे घर चलें का
छठा भाग
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स्वाद और स्वास्थ्य में अर्बुदा ओहरी का आलेख
सलाद में छुपा स्वास्थ्य
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फुलवारी में बाघ के विषय में
जानकारी,
शिशु गीत और
शिल्प
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पिछले
सप्ताह
अनूप शुक्ला का व्यंग्य
गुस्से में
धारावाहिक में प्रभा
खेतान के उपन्यास
आओ पेपे घर चलें का
पाँचवाँ भाग
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पर्यावरण में अभिलाष त्रिवेदी का आलेख
ऊर्जा का प्राकृतिक विकल्प पवन ऊर्जा
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संस्कृति में -डॉ. रमेशकुमार भूत्या से जानकारी
पंचकर्म और उसका औचित्य
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कथा महोत्सव में पुरस्कृत-भारत से ज़ाकिर आली रजनीश की कहानी
इकामा फ़ी
1
वह
दोपहर का समय था। जैसे ही घड़ी ने बारह का घण्टा बजाया, जद्दा
शहर के सैफा मोहल्ले की तीन नम्बर गली के 'अल-हजरत' कारखाने
में जलजला उतर आया। अचानक बाहर का गेट खड़का और दरवाजा
खुलवाने के लिए कई लोग जोर-जोर से चिल्लाने लगे। उस समय
अल-हजरत में कुल सोलह लोग मौजूद थे। देर रात तक काम करने के
कारण वे लोग कुछ ही समय पहले उठे थे और हाथ मुँह धोने के बाद
नाश्ता करने जा रहे थे। बाहर से आ रही आवाज की तेजी बता रही
थी कि आने वाले लोग सुरता यानी पुलिस महकमे से ताल्लुक रखते
हैं। और जैसे ही यह बात कारखाने में मौजूद लोगों की समझ में
आई, वहाँ खलबली मच गयी। सामने रखे खाने को छोड़ कर कोई आदमी
कपड़े पहनने लगा, तो कोई पासपोर्ट की खोज में मसरूफ हो गया।
पुलिस बाहर आ चुकी थी, इसलिए पकड़ा जाना तो तय था। हाँ, पकड़े
जाने से पहले वे आगे आने वाली मुश्किलों को आसान बना लेना
चाहते थे। |
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अनुभूति
में-
नईम, हरेराम समीप, उमा शंकर चौधरी, डॉ. मोहन अवस्थी और डॉ. राम निवास
मानव की नई
रचनाएँ |
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कलम गही नहिं
हाथ- इस सप्ताह दो अत्यंत प्रतिभाशाली, कर्मठ एवं
लोकप्रिय रचनाकर विष्णु प्रभाकर और नईम हमारे बीच नहीं रहे... आगे पढ़े |
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रसोई
सुझाव-
बर्तन से खाना जलने की महक और चिपकन छुड़ाने के लिए उसमें कटे
प्याज और उबला पानी डालकर पाँच मिनट तक रखें। |
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पुनर्पाठ
में -
साहित्य संगम के अंतर्गत १६ जनवरी २००१ के अंक में प्रकाशित
गुलाबदास ब्रोकर की गुजराती कहानी का हिन्दी रूपांतर-
आखिरी झूठ |
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क्या आप जानते हैं?
विष्णु प्रभाकर ९७ वर्ष तक जिये और अपने पार्थिव शरीर को अखिल
भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को दान कर गए। |
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शुक्रवार चौपाल- ९ अप्रैल
की शाम मिलिंद तिखे की शाम रही। पहला नाटक राई का पहाड़ उनका लिखा
हुआ था तो दूसरा उनके द्वारा रूपांतरित...
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सप्ताह का विचार- संसार भर के उपद्रवों का मूल व्यंग्य है।
हृदय में जितना यह घुसता है उतनी कटार नहीं। --जयशंकर प्रसाद |
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हास
परिहास |
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1
सप्ताह का
कार्टून
कीर्तीश की कूची से |
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