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पर्व पंचांग १०. ११. २००८

इस सप्ता 
समकालीन कहानियों में
यू.के. से शैल अग्रवाल की कहानी जिज्जी
मेरी जिज्जी हँसती हैं तो बहुत अच्छी लगती हैं, वैसे एक राज़ की बात बताऊँ मेरी जिज्जी जब रोती हैं तब भी बहुत अच्छी लगती हैं क्योंकि जिज्जी जब रोती हैं तो निःशब्द आँसू एक शांत नदी के बहाव की तरह चुपचाप बहते चले जाते हैं, बिना कोई आवाज़ किए...बिना कोई लहर उठाए। उनकी गुनगुनी गर्मी में भीगते हुए मन को एक अजीब-सी शांति मिलती है, मानो गरम पानी के सोते में डुबकी मार ली हो। मेरी जिज्जी का तो पूरा अस्तित्व ही ऐसा है... कोमल, सुखद और समझदार। वैसे आश्चर्य नहीं, अगर आपने जिज्जी को कभी रोते न देखा हो क्योंकि जिज्जी ने तो अपने चारों तरफ़ हँसी और मुसकुराहटों का एक अभेद्य किला बना रखा है। यह जिज्जी की पुरानी आदत है। कितनी भी तकलीफ़ हो, दर्द हो, पर उनके लिए तो मानो इन शारीरिक तकलीफ़ों का कोई अर्थ ही नहीं होता। माँ जब बचपन में छोटी-सी शरारत पर मारते-मारते थक जातीं और जिज्जी उसके बाद भी बिना कुछ कहे-बताए, चुपचाप होमवर्क करने बैठ जाती थीं, तो मैंने अक्सर माँ को बड़बड़ाते सुना था... "भगवान ने बड़ी ही ढीठ लड़की पैदा की है।" पर मेरी जिज्जी तो मोम-सी नरम थीं।

*

कुलभूषण व्यास का व्यंग्य
बात छींक की

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रचना प्रसंग में पूर्णिमा वर्मन का आलेख
समाचार लिखने की कला

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रसोईघर में
मालपुए की व्यंजन विधि

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स्वाद और स्वास्थ्य में
अमृतफल अमरूद

पिछले सप्ताह
कालिदास जयंती के अवसर पर रवींद्रनाथ त्यागी का व्यंग्य कवि कालिदास का जन्म स्थान

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आज सिरहाने
मोहन राकेश का नाटक आषाढ़ का एक दिन

कथा महोत्सव- २००८
अंतिम तिथि ३१ दिसंबर २००८

संस्कृति में सुनीता शानू का आलेख
कालिदास की अमूल्य कृतियाँ

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अमितेश कुमार का साहित्यिक निबंध
कालिदास का कवि
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कालिदास के नाटक विक्रमोर्वशीयम् का
विष्णु प्रभाकर द्वारा हिंदी कथा रूपांतर विक्रमोर्वशी
एक बार देवलोक की परम सुंदरी अप्सरा उर्वशी अपनी सखियों के साथ कुबेर के भवन से लौट रही थी। मार्ग में केशी दैत्य ने उन्हें देख लिया और तब उसे उसकी सखी चित्रलेखा सहित वह बीच रास्ते से ही पकड़ कर ले गया। यह देखकर दूसरी अप्सराएँ सहायता के लिए पुकारने लगीं, "आर्यों! जो कोई भी देवताओं का मित्र हो और आकाश में आ-जा सके, वह आकर हमारी रक्षा करें।" उसी समय प्रतिष्ठान देश के राजा पुरुरवा भगवान सूर्य की उपासना करके उधर से लौट रहे थे। उन्होंने यह करुण पुकार सुनी तो तुरंत अप्सराओं के पास जा पहुँचे। उन्हें ढाढ़स बँधाया और जिस ओर वह दुष्ट दैत्य उर्वशी को ले गया था, उसी ओर अपना रथ हाँकने की आज्ञा दी। अप्सराएँ जानती थीं कि पुरुरवा चंद्रवंश के प्रतापी राजा है और जब-जब देवताओं की विजय के लिए युद्ध करना होता है तब-तब इंद्र इन्हीं को, बड़े आदर के साथ बुलाकर अपना सेनापति बनाते हैं। इस बात से उन्हें बड़ा संतोष हुआ और वे उत्सुकता से उनके लौटने की राह देखने लगी। उधर राजा पुरुरवा ने बहुत शीघ्र ही राक्षसों को मार भगाया और उर्वशी को लेकर वह अप्सराओं की ओर लौट चले।

अनुभूति में-
विष्णु विराट, ममता किरन, संजय भारद्वाज, अर्चना पांडा और डॉ. आनंद की नई रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ-
कथा महोत्सव की अंतिम तिथि पार होने को है पर हम कहानियों को स्वीकार करना बंद करने के स्थान पर इसका समय ३१ दिसंबर २००८ तक बढ़ा रहे है। इस आशा से कि इससे हमारे कुछ और पाठक व लेखक महोत्सव का हिस्सा बन सकेंगे। हिन्दी में यू.एस.ए. और यू.के. के लेखकों ने ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज की है पर अन्य देशों की पृष्ठभूमि पर लिखा गया साहित्य नगण्य सा है। विशेषरूप से पश्चिमी यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, रूस, चीन, मध्यपूर्व और सुदूर पूर्व के हिन्दी भाषियों ने अभी कलम नहीं उठाई है। प्रवासी लेखक जब अपने अपने देशों से संबंधित कहानियाँ भेजते हैं तो उनका विशेष आकर्षण होता है उनकी पृष्ठभूमि जो हिन्दी साहित्य में नए परिवेश को तो जन्म देती ही है उसकी व्यापकता को भी बढ़ाती है। भारतीय लेखकों की रचनाएँ उनके लेखन की निरंतरता का परिचय देती हैं जो भाषा, शिल्प और शैली की दृष्टि से प्रवासी लेखकों को बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान करती है। यह वर्गीकरण सामान्य लेखकों के लिए है। शायद सबके लिए नहीं पर अभिव्यक्ति के लिए सभी लेखक समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। वे हमारे पाठकों में लोकप्रिय हैं और वेब पर हिन्दी साहित्य का नवीनतम इतिहास रच रहे हैं। आशा है हमारे वे सभी नियमित लेखक  कथा महोत्सव में भाग लेकर इसे सफल बनाएँगे जिन्होंने अभी तक अपनी रचनाएँ नहीं भेजी हैं।
- पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

इस सप्ताह विकिपीडिया पर
विशेष लेख- चंद्रयान

क्या आप जानते हैं? कि टाटा नैनो विश्व की सबसे सस्ती कार है इसका दाम
१ लाख भारतीय रुपये है।

सप्ताह का विचार- शाला में नया छात्र कुछ लेकर नहीं आता और पुराना कुछ लेकर नहीं जाता फिर भी वहाँ ज्ञान का विकास होता है। --राजेन्द्र अवस्थी

हास परिहास

सप्ताह का कार्टून

 

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

 

   

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