हास्य व्यंग्य | |
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बात छींक की |
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छींक का इतिहास तब से है जब से नाक का इतिहास है। अगर आँख फड़कने से खुद को टेंशन हो जाती है तो छींक आने से दूसरे टेंशन में आ जाते हैं। मुझे भी जब विष्णु जी बना रहे थे कि तभी लक्ष्मी जी को छींक आ गई, बस वहीं से गडबड शुरू हो गई। अब देखिए ना लिखता तो मैं खूब हूँ मगर पेमेन्ट नहीं मिलती! सब छींक की वजह से हुआ है। नाक चाहे मोटी हो, पतली हो, तीखी हो, चपटी हो, माधुरी दीक्षित की हो या मेरी गली की बिल्लो की, छींकने का मज़ा हर नाक लेती है। कुछ लोग छींकते है तो लगता है किसी ने बम का गोला गिरा दिया हो, छींकते बेलापुर में हैं आवाज़ रामगढ़ तक जाती है, बेचारी बसंती और धन्नो दोनों हडबडा के उठ जाते हैं। कुछ हैं जो इतना धीरे छींकते हैं कि उनका छींकना भी छींकने के नाम पर धब्बा है फिर बोलते हैं सॉरी… अरे क्या सॉरी बोलना… नाक में सुरसुरी हुई छींक आई.. बात खत्म...। वैसे छींक से इनसान के रुतबे का भी पता चलता है उसके प्रोफ़ेशनल का पता चलता है कल्लू पहलवान छींकता है तो नारियल में दरार पड़ जाती है, ६० के दशक में फ़िल्म की हीरोइन इतनी नाज़ुक होती थी कि अगर वो घोड़े पर बैठ कर शाट दे रही होती थी, और घोड़े का पैर तालाब में चला जाता तो हीरोइन को छींक आ जाती थी। आज कल क्या है पता नहीं मगर हमने एक बात सुनी है कि एक बार ऐश्वर्या के कुत्ते को छींक आई और सलमान, विवेक और अभिषेक तीनों अपना रुमाल ले कर दौड़े, बस अभिषेक का हाथ लम्बा था, वो जीत गया। सरकारी दफ़्तर में तो कई बार मैंने कर्मचारियों की नाक में नोटों की बत्ती बना-बना के घुमाई है कि उन्हें छींके आएँ, वो जागें और मेरी फ़ाइल कुछ आगे बढ़े। मेरे घर के पास एक देसी मोहम्मद रफ़ी रहते हैं, जैसे होता भी है कि हर मोहल्ले में देसी रफ़ी, देसी लता, अमिताभ, कुमार सानू वगैराह होते हैं, तो देसी रफ़ी भी हैं हमारे मोहल्ले में, वो जब छींकते हैं तो अलग-अलग राग में छींकते हैं... आ आ आ उ इईईई आ आ ऊऊऊ आच्च्छीं..उनका दावा है कि अगर वो हैंडपंप के पास बैठ कर राग मल्हार में छींक दें तो हैंडपंप से पानी खुद ब खुद निकल के बाहर आ जाएगा। मेरे स्कूल के मास्टर जी छींकते थे तो ८-१० छींके एक साथ लेते थे, लगता था घंटाघर की घंटी बज रही हो। मनमोहन जी के मोबाइल में जब छींकने की रिंग टोन सुनाई देती है तो लोग समझ जाते हैं ये सोनिया जी का फोन है। वैसे सारे नेता छींकते वक्त भी हाथ जोड़ लेते हैं। एक योग गुरु तो छींकासन लगवाते हैं, अनुलोम विलोम में छिंकवाते हैं, उनका दावा है कि इस आसन से मेंढ़की को भी ज़ुकाम नही होता। एकता कपूर ने तो अपने धारावाहिकों की कहानियाँ भी छींक-छींक कर चुनी हैं। छींकते हुए उनका नया धारावाहिक है "ककहानीनी आ च्छीं की" ...उसका गाना भी कुछ ऐसा बनाया है... छींकने वाले ज़ोर से छींकेंगे, नए-नए फ़ैशन में छीकेंगे, दाएँ को छीकेंगे, बाएँ को छीकेंगे, कहानी आ च्छीं की, कहानी आ च्छीं की... और इसमें हर एक्स्ट्रा मेरिटल अफ़ेयर एक नई छींक से शुरु होता है और कोई भी महिला कांजीवरम की साड़ी पहने और मेक अप किए बिना नहीं छींकती, एक सीन में बहुत सारे बच्चे एक के बाद एक कर के छींकते हैं, उनमें से एक बच्चा प्रेरणा और अनुराग का है, दूसरा प्रेरणा और मिस्टर बजाज का है, तीसरा मिस्टर बजाज का और उनकी तलाक शुदा बीवी से है, चौथा अनुराग का अपनी वर्तमान बीवी से है, पाँचवा इसका उससे वाला है, और छठा पता नहीं किसका है, सारे के सारे पात्र और दर्शक धारावाहिक के ११००९८७६५२३४ वें एपिसोड तक छींक रहे हैं, कोई महिला पात्र विजयी मुस्कुराहट देती है, और छींकती है, जवाब में कोई कुटिल रूप से मुसकुराती हैं, टेढ़ी-टेढ़ी नज़र से देखती है, मन ही मन में अपने-अपने प्लान बनाती हैं और वो भी छींकती है, और कसम छींक की, कि अभी तक ये राज़ खुल ही नहीं पाया है कि आखिर इन सभी को छिंकवाने के पीछे चाल किसकी है? मेरी भेंट दर्शन शास्त्र के प्रोफ़ेसर से हो गई वे बोले - जनाब ज़िंदगी क्या है, ज़िंदगी एक छींक है, पल भर का खेल है, अभी "आ" की सुबह भी नहीं देखी होती ढंग से कि "च्छीं" की शाम सामने नज़र आने लगती है। वैसे ज़िंदगी में छींक के कई मायने हैं, अगर नवजात शिशु को एक छींक भी आ जाए तो माँ का कलेजा मुँह को आ जाता है, पत्नी ने शापिंग का प्लान बना लिया तो पति को छींक आ जाती है, इश्क के अखाडे में अच्छे-अच्छे मजनुओं को छींके आ जाती हैं, गांधी जी के सत्याग्रह से अँग्रेज़ों को छींके आती थी, बच्चों की स्कूल फीस भरने में माँ बाप को छींके आती है, कवि सम्मेलन में कवि गण ऐसी-ऐसी पिटी हुई कविताएँ सुनाते हैं कि सुनने वालों को छींकें आ जाती हैं, आज कल बच्चों के सवाल ऐसे होते हैं कि बड़े बडों को छींके आ जाती हैं, एक हाइकु कवि सुबह ५ बार, दोपहर ७ बार और शाम को पुनः ५ बार छींकते हैं। एक शायर जिनका नाम है - नज़ला सागराबादी "आच्छूं" उन्होंने अर्ज़ किया है... तेरे इंतज़ार में ये ज़मीं छींकती है, ये आसमां छींकता है, ये चाँद ये सितारे छींकते है... तुम कब आओगी विक्स वेपोरब बन के, बस इस एक पंक्ति पर उनकी पूरी क़िताब को एक प्रतिष्ठित संस्थान से पुरस्कार मिल गया, अंदर की बात तो ये है कि इस संस्था के अध्यक्ष जी के चरणों में नज़ला सागराबादी "आच्छूं" जी बैठ के उन्हें खूब नसवार सुंघाया करते थे और अध्यक्ष जी छींकने के खूब मज़े लेते... तो जनाब हर तरफ़ बस छींक ही छींक का राज है। अंत में एक बात और कि आज तक ऐसा कोई अकडू पैदा नहीं हुआ जिसकी छींकते वक्त गर्दन ना झुके और कोई मांई का लाल ऐसा पैदा नहीं हुआ जो छींकते वक्त आँखे खुली रख सके। बोलो आच्छूं माता की जय!!! १० नवंबर २००८ |