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मेरी जिज्जी हँसती हैं तो बहुत
अच्छी लगती हैं, वैसे एक राज़ की बात बताऊँ मेरी जिज्जी जब
रोती हैं तब भी बहुत अच्छी लगती हैं क्योंकि जिज्जी जब रोती
हैं तो निःशब्द आँसू एक शांत नदी के बहाव की तरह चुपचाप बहते
चले जाते हैं, बिना कोई आवाज़ किए...बिना कोई लहर उठाए। उनकी
गुनगुनी गर्मी में भीगते हुए मन को एक अजीब-सी शांति मिलती है,
मानो गरम पानी के सोते में डुबकी मार ली हो। मेरी जिज्जी का तो
पूरा अस्तित्व ही ऐसा है... कोमल, सुखद और समझदार। वैसे
आश्चर्य नहीं, अगर आपने जिज्जी को कभी रोते न देखा हो क्योंकि
जिज्जी ने तो अपने चारों तरफ़ हँसी और मुसकुराहटों का एक
अभेद्य किला बना रखा है। यह जिज्जी की पुरानी आदत है। कितनी भी
तकलीफ़ हो, दर्द हो, पर उनके लिए तो मानो इन शारीरिक तकलीफ़ों
का कोई अर्थ ही नहीं होता। माँ जब बचपन में छोटी-सी शरारत पर
मारते-मारते थक जातीं और जिज्जी उसके बाद भी बिना कुछ
कहे-बताए, चुपचाप होमवर्क करने बैठ जाती थीं, तो मैंने अक्सर
माँ को बड़बड़ाते सुना था... "भगवान ने बड़ी ही ढीठ लड़की पैदा की
है।" पर मेरी जिज्जी तो मोम-सी नरम थीं।
शाम को जब मैं उनके दूध के
गिलास में चुटकी भर हल्दी और सौंठ मिलाकर ले जाता और उन्हें
बहला फुसलाकर, पूरा गिलास खाली करवाकर ही वहाँ से हटता तो
जिज्जी प्यार से मेरा हाथ सहलातीं और उनके वह खामोशी से बहते
आँसू मेरी अंतरात्मा तक में उतर जाते। |