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पर्व पंचांग     . ९. २००८

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में- यू.एस.ए. से
सोमावीरा की कहानी लॉन्ड्रोमैट

हाथ में मैले वस्त्रों का थैला लिए, मार्गरेट लांड्रोमैट में प्रवेश कर रही हैं। मशीन में वस्त्र डालकर वह यहाँ आएगी। हम दोनों यहाँ बैठकर कॉफी पिएँगे।यह छोटा-सा ड्रग-स्टोर है। एक ओर दवाएँ तथा साबुन-मंजन आदि बिकते हैं। दूसरी ओर, खाने-पीने के लिए एक गोल काउंटर है। वहीं एक किनारे, छोटी-छोटी चार-पाँच लंबाकर मेजें भी पड़ी हैं। अधिकतर लोग काउंटर के पास लगे ऊँचे स्टूल पर बैठकर ही, कुछ खा-पीकर, झटपट अपनी राह लेते हैं, किंतु मुझे मार्गरेट की प्रतीक्षा करनी है, अतः मैं खाली मेजों पर निगाहें डालता, यहाँ एक कोने में बैठा हूँ। दवाओं की गंध से भरे इस ड्रग-स्टोर में कॉफी पीना मुझे अच्छा नहीं लगता, किंतु मार्गरेट को यह लांड्रोमैट बहुत पसंद हैं। समझ में नहीं आता क्यों। क्योंकि कोई ख़ास बात नहीं हैं इस लांड्रीमैट में। अमरीका के छोटे-बड़े सभी नगरों में, ऐसे अनेक लांड्रीमैट हैं। यहाँ इंसान बेकार खड़ा रहता हैं मशीनें काम करती हैं।

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अनुज खरे का व्यंग्य
एक लंबी सी फ़िल्म समीक्षा

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देवी नागरानी की लघुकथा
ममता का कर्ज़

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आज सिरहाने
अनुपम मिश्र की पुस्तक-आज भी खरे हैं तालाब

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प्रो. य गो जोगलेकर का नगरनामा
कुल्हड़, कसोरा और पुरवा

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पिछले सप्ताह
संदीप सक्सेना का व्यंग्य
अफ़सर का कुत्ता

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कथा महोत्सव - २००८
अंतिम तिथि १५ नवंबर २००८

प्रेरक प्रसंग में प्राण शर्मा की लघुकथा
पिंजरे के पंछी

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गणेश चतुर्थी के अवसर पर मनोहर पुरी का आलेख
भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग गणेश

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प्रभु झिंगरन का चिंतन
छोटे पर्दे से गायब होता साहित्

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समकालीन कहानियों में- भारत से
तरुण भटनागर की कहानी कौन सी मौत

'आपको पता चला........
और फिर दत्ता अंकल ने पिता जी के कानों के पास अपना मुँह करते हुए धीरे से कहा-
'वो कम्यून वाला महात्मा मर गया।' 'अरे कब।'
पिता जी अपने पैर धोने के बाद तौलिया से उन्हें पोंछ रहे थे। अक्सर शाम को ऑफ़िस से आने के बाद पिता जी बगीचे में इत्मीनान से बैठते हैं। सुस्ताते हैं। चाय पीते हैं। और ठंडे पानी से अपने पैर धोते हैं। रोज़ की एक-सी चीज़ें जो रोज़ की एक-सी थकान को उतार देती है। दत्ता अंकल भी शाम को पिता जी के साथ गप्प हाँकने चले आते हैं। दत्ता अंकल हमारे घर के पास रहते है और उसी ऑफिस में हैं जिसमें पिता जी काम करते हैं। दोनों शाम को इस बगीचे में इकट्ठे बैठकर दुनिया जहान की बातें करते हुए अपना समय गुज़ारते हैं। पिता जी ने महात्मा के मरने की ख़बर को ज़्यादा तवज्जो नहीं दी।

 

अनुभूति में- डॉ. तारादत्त निर्विरोध, मनोहर शर्मा सागर पालमपुरी, गोपालदास नीरज शार्दूला और वेणुगोपाल की रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ
सितंबर का पहला सप्ताह सुहानी सुबह का संदेश लेकर आता है। सोचा फव्वारे और तालाब साफ़ कर दिए जाएँ ताकि इनके किनारे बैठ चाय का आनंद लिया जा सके। तालाब छोटा सा है, पर साफ़ करने में दो तीन घंटे लगते हैं इसलिए सफ़ाई का दिन शुक्रवार रखा जो यहाँ साप्ताहिक अवकाश का दिन भी है। काम के बीच हम चाय के लिए थोड़ी देर को भीतर आ गए। तालाब की गहराई ज्यादा नहीं है। लगभग एक-डेढ़ फुट के बीच होगी। मशीन तालाब में से पानी बाहर फेंक रही थी और कुछ पंछी लॉन पर चुग रहे थे। तालाब में ३-४ इंच पानी बचा होगा कि मैना के दो बच्चे पानी में गिर गए। शायद प्यासे होंगे और अंदाज़ नहीं रख सके कि तालाब में से बाहर आना संभव नहीं होगा। बड़ी जोर की चीख पुकार मची। सारी चिड़ियाँ चारदीवारी पर बैठकर दुर्घटना की सूचना दे रही थीं। हमारी सहायिका बाहर दौड़ी और एक बच्चे को पानी से निकालकर बाहर रखा ही था कि मैना के जोड़े में से एक ने उसके सिर पर चोंच से तेज़ प्रहार किया। वह दौड़कर भीतर आई और हम उसकी देखभाल में लगे। चोट इतनी तेज़ थी कि खून निकल आया था और कुछ ही पलों में गुमड़ा बन गया। डॉक्टर के पास जाना पड़ा। लौटकर देखा तो पानी में गिरा हुआ दूसरा बच्चा प्राण त्याग चुका था। मालूम नहीं जिसे निकाला था वह माता पिता के साथ उड़ गया या किसी बिल्ली का शिकार हो गया। कुल मिलाकर सप्ताहांत दुर्घटना वाला रहा --पूर्णिमा वर्मन

इस सप्ताह विकिपीडिया पर
विशेष लेख-
नुक्कड़ नाटक

क्या आप जानते हैं? कि भारत का सबसे बड़ा हीरा ग्रेट मुग़ल जब १६५० में गोल कुंडा की खान से निकला तो इसका वजन ७८७ कैरेट था।

सप्ताह का विचार- कुशल पुरुष की वाणी प्रतिकूल बोलनेवाले प्रबुद्ध वक्ताओं को मूक बना देती है और पक्ष में बोलने वाले मंदमति को निपुण- माघ

हास परिहास

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

 

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