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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से तरुण भटनागर की कहानी— 'कौन सी मौत'


'आपको पता चला........
और फिर दत्ता अंकल ने पिता जी के कानों के पास अपना मुँह करते हुए धीरे से कहा- 'वो कम्यून वाला महात्मा मर गया।'
'अरे कब।'
पिता जी अपने पैर धोने के बाद तौलिए से उन्हें पोंछ रहे थे।

अक्सर शाम को ऑफ़िस से आने के बाद पिता जी बगीचे में इत्मीनान से बैठते हैं। सुस्ताते हैं। चाय पीते हैं। और ठंडे पानी से अपने पैर धोते हैं। रोज़ की एक-सी चीज़ें जो रोज़ की एक-सी थकान को उतार देती है। दत्ता अंकल भी शाम को पिता जी के साथ गप्प हाँकने चले आते हैं। दत्ता अंकल हमारे घर के पास रहते है और उसी ऑफ़िस में हैं जिसमें पिता जी काम करते हैं। दोनों शाम को इस बगीचे में इकट्ठे बैठकर दुनिया जहान की बातें करते हुए अपना समय गुज़ारते हैं।

पिता जी ने महात्मा के मरने की ख़बर को ज़्यादा तवज्जोह नहीं दी। वे अपने पैर पोछने में मशगूल रहे। महात्मा के मरने की बात पर वे इस तरह चुप रहे जैसे उस बात का होना ना होना दोनों बराबर हों। महात्मा को ज़्यादातर लोग स्वामी जी कहते थे। लोगों को उनका नाम नहीं पता था। पिता जी अपने पैर पोंछते रहे। दत्ता अंकल भी थोड़ी देर चुप रहे।

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