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पर्व पंचांग ११. ८. २००८

इस सप्ताह स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर समकालीन कहानियों में-
भारत से डॉ. सूर्यबाला की कहानी दादी का ख़ज़ाना

चुन्नू को लगता, ज़रूर दादी के पास कोई छुपा हुआ ख़ज़ाना है। यह बात उसने अपनी छुटंकी बहन मिट्ठू को भी कई बार बताई थी। मिट्ठू को ख़ज़ाने-वज़ाने की अकल तो भला क्या होती, लेकिन उससे पूरे तीन साल बड़े और 'तेरा भइया' का रुतबा रखनेवाले, चुन्नूजी ने इसे यह राज़ बताया, यही उसके निहाल हो लेने के लिए काफी था। उसने फुसफुसाकर पूछा, ''भइया! तुम्हें कैसे पता?'' चुन्नू ने बड़े मातबरी अंदाज़ में कहा, ''देखती नहीं, दादी हमेशा कितनी खुश, कितनी मगन रहती हैं। इतना खुश तो वही हो सकता है, जिसके पास कोई माल-ख़ज़ाना छुपा होता है।'' मिट्ठू ने पूरे विश्वास से हामी भरी, लेकिन तत्क्षण अगली जिज्ञासा भी पेश कर दी, पर ख़ज़ाने की तो चाबी भी होती है न! दादी कहाँ रखती हैं, अपनी चाबी?'' चुन्नू जी पहले तो अटपटाए, लेकिन फौरन अकल काम कर गई।

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अश्विनी कुमार दुबे का व्यंग्य
लोकतंत्र

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ध्रुव तांती की लघुकथा
गणतंत्र का अट्टहास

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मधुलता अरोरा की कलम से
डाकटिकटों ने बखानी तिरंगे की कहानी

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डॉ. सत्यभूषण वंद्योपाध्याय का आलेख
सलामी लाल क़िले से ही क्यों

 

पिछले सप्ताह

डॉ. नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य
लोकार्पण

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डॉ. सुरेश ऋतुपर्ण का आलेख
अदम्य जिजीविषा का नाम- सदाको

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आज सिरहाने उषा राजे सक्सेना का कहानी संग्रह
वह रात और अन्य कहानियाँ

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घर परिवार में गृहलक्ष्मी बिखेर रही हैं
मंद सुगंध

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समकालीन कहानियों में- भारत से
जयनंदन की कहानी नागरिक मताधिकार

मास्टर रामरूप शरण बड़े ही उद्विग्न अवस्था में स्कूल से घर लौटे। छात्रों को नागरिक मताधिकार पढ़ाते-पढ़ाते आज उन्हें अचानक एक गंभीर चिंता से वास्ता पड़ गया। वे अन्यमनस्क हो उठे। घर आते ही उन्होंने अपने बड़े लड़के राजदेव को बुलाया और हड़बड़ाते हुए से कहा, ''जल्दी से जाकर मुखियाजी, प्रोफेसर साहब, वकील साहब, इंद्रनाथ सिंह और बृजकिशोर पांडेय को बुलाकर ले आओ। कहना कि मैं तुरंत बुला रहा हूँ....एक बहुत जरूरी काम आ गया है।'' राजदेव चला गया। मास्टर साहब अनमने से दालान की ओर जाने लगे तो पत्नी को उनकी चिंतित मुद्रा देखकर जिज्ञासा हो उठी, ''क्यों जी, क्या हुआ? आप इतना परेशान क्यों हैं? चाय-वाय भी नहीं पी और तुरंत बुलावा भेज दिया?''
''तुम नहीं समझोगी, ज़रा चाय बनाकर रखो, वे लोग आ रहे हैं।''

 

अनुभूति में-
स्वतंत्रता दिवस के
अवसर पर ढेर सी नई पुरानी देश-प्रेम में डूबी रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ भारतीय स्वतंत्रता दिवस की शुभ कामनाएँ! इस सप्ताह अभिव्यक्ति का जन्मदिन भी है। १५ अगस्त २००० को इसका पहला अंक मासिक पत्रिका के रूप में प्रकाशित हुआ था। १ जनवरी २००१ से यह पाक्षिक बनी। १ मई २००२ से यह माह में चार बार १-९-१६ और २४ तारीख को प्रकाशित होने लगी। लंबे समय तक इसी स्थिति में रहने के बाद १ जनवरी २००८ से यह साप्ताहिक रूप में हर सोमवार को प्रकाशित होती है। आज वेब पर हिन्दी पत्रिकाओं की भरमार के बावजूद हमारे पाठकों की संख्या में विस्तार हो रहा है यह उत्साह की बात है। पत्रिका की टीम का सबसे बड़ा हिस्सा तो पाठक ही होते हैं इसलिए इस शुभ अवसर पर सभी पाठकों को हार्दिक धन्यवाद  जिनके निरंतर स्नेह से आज हम यहाँ पहुँचे हैं। टीम में सहकर्मियों के सतत प्रयत्नों को नमन। प्रार्थना है कि सब सदा साथ रहें और इस यज्ञ में अग्नि प्रज्वलित रखें। इस वर्ष हम एक कहानी प्रतियोगिता का आयोजन करने वाले हैं। अगले अंक में पाठक इसका विस्तृत विवरण पढ़ सकेंगे। इसके साथ ही डाउनलोड के लिए पीडीएफ़ फाइलों का एक सिलसिला भी शुरू कर रहे हैं। इस क्रम में पहला संग्रह है- तेजेन्द्र शर्मा की दस कहानियाँ। आशा है पाठकों को ये आयोजन रुचिकर लगेंगे। प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में,  -पूर्णिमा वर्मन

इस सप्ताह विकिपीडिया पर विशेष लेख- भारत

क्या आप जानते हैं? आलू का सर्वप्रथम साहित्यिक उल्लेख लगभग २००० वर्ष पूर्व महर्षि वात्स्यायन विरचित कामसूत्र के चतुर्थ अधिकरण के प्रथम अध्याय के २९वें सूत्र में मूली-पालकी के साथ हुआ है।

सप्ताह का विचार- अपने देश की भाषा और संस्कृति के समुचित ज्ञान के बिना देशप्रेम की बातें करने वाले केवल स्वार्थी होते हैं। -मुक्ता

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

 
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