मंद सुगंध
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गृहलक्ष्मी
सुगंध, सेंट या परफ़्यूम का
मानव सभ्यता से गहरा नाता रहा है। सुगंधित तेलों और इत्रों
के लिए भारत ने विश्व में अपनी साख बनाई हुई थी। कपड़े हों
या भोजन, सुगंध के बिना वे हमेशा से अधूरे रहे हैं। भारत,
मिस्र और फ्रांस में इत्र उद्योग अलग-अलग रूप में विकसित
हुए। सुगंध के रिवाजों में परिवर्तन आया, तेलों का उपयोग कम
हुआ और इत्र का स्थान स्प्रे परफ़्यूम ने ले लिया। सुगंध,
गंधी की प्रयोगशाला से निकल कर बड़े बड़े कारख़ानों में
बोतलबंद होने लगी और डिज़ाइनर लेबलों से युक्त हो कर बाज़ार
में आने लगी।
सुगंध
की इस दीवानगी ने कुछ नई परेशानियों को भी जन्म दिया -
एलर्जी, सर्दी और दमा! धीरे-धीरे यह भी समझा जाने लगा कि
सुगंध हर किसी के अनुकूल नहीं। सुगंध के बढ़ते प्रयोग ने
सुगंध शिष्टाचार को भी जन्म दिया और सुगंध उपचार को भी।
जब हमें किसी सुगंध से
एलर्जी होती है तो यह आवश्यक नहीं कि सुगंध में स्थित इत्र
के कारण ही हो। आजकल इत्र की सुगंध को उड़ने से रोकने और
शरीर में बसाने के लिए अनेक प्रकार के रसायनों का प्रयोग
किया जाता है। ये रसायन त्वचा या श्वास की एलर्जी पैदा कर
सकते हैं।
अनेक संस्थाओं ने सुगंध के
खिलाफ़ सख़्त कदम उठाए हैं। १९९८ में बॉस्टन में आयोजित
अमेरिकी केमिकल सोसाइटी के सम्मेलन में भाग लेने वालों से
आग्रह किया गया था कि वे परफ़्यूम लगा कर न आएँ।
परफ़्यूम लगाने का सबसे
शिष्ट तरीका यह है कि आप इसमें स्नान न करें। कम से कम
मात्रा में इसका प्रयोग करें ताकि लिफ़्ट, हवाई जहाज़, बस और
प्रेक्षाग्रहों में सुगंध भर कर दूसरों के लिए कष्टदायक न
बने।
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सार्वजनिक जीवन से जुड़े
इन लोगों को परफ़्यूम नहीं लगाने चाहिए -
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डाक्टर तथा नर्स, हवाई
जहाज़ के परिचारक परिचारिकाएँ, अध्यापक अध्यापिकाएँ, महिला
या पुरुष वेटर।
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बन्द सार्वजनिक स्थानों
में जाते समय परफ़्यूम का प्रयोग नही करना चाहिए। जैसे
किसी सम्मेलन, सिनेमा, प्रेक्षागृह या संगीत सम्मेलन में
भाग लेते समय।
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नहाने के तुरन्त बाद
शरीर पर परफ़्यूम को लगाएँ ताकि बाहर निकलने से पहले
अतिरिक्त गंध उड़ जाए और साथ रहनेवालों को इससे कष्ट न हो।
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याद रखें कि परफ़्यूम का
प्रयोग शरीर को स्वाभाविक शारीरिक गंध से मुक्त रखने के
लिए होना चाहिए न कि चलती-फिरती परफ़्यूम की फ़ैक्टरी के
रूप में।
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अपने भोजन पर ध्यान दें
- कुछ विशेष भोजनों में स्थित तेल और प्रोटीन के अंश शरीर
में घंटों बने रहते हैं और शारीरिक गंध पर अपना प्रभाव
डालते हैं। इनमें मछली, मेथी, और लहसुन प्रमुख हैं। इनसे दूर
रहने से शरीर की गंध में परिवर्तन लाया जा सकता है।
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रोज़ स्नान करें और
पसीने वाली जगहों के लिए अच्छे कीटाणुरोधक साबुन का प्रयोग
करें।
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अतिरिक्त बालों को हर
दूसरे दिन साफ़ कर दें ताकि दुर्गन्ध को पनपने का स्थान न
मिले।
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चाय या कॉफी का प्रयोग
कम कर दें। यह शरीर के स्नायुओं में उत्तेजना पैदा कर के
अधिक पसीना पैदा करते हैं।
मदिरा पान के कारण रक्त नलिकाओं के फैलने से स्वेद
ग्रंथियाँ ज़्यादा सक्रिय होती हैं और आप अधिक पसीना महसूस
कर सकते हैं।
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कुछ गर्भ निरोधक
गोलियाँ, मानव-निर्मित हारमोन, स्टीरोयड, या दमा अवरोधक भी
स्वेद ग्रंथियों को आवश्यकता से अधिक उत्तेजित करते हैं।
इन पर रोक लगा कर अथवा अदल-बदल कर अधिक पसीने से मुक्ति
पाई जा सकती है।
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स्वाभाविक रेशों से बने
कपड़े जैसे सूती रेशमी या ऊनी वस्त्र पसीने को सोखने और
शरीर में वायु का आवागमन बनाए रखने में सहायक होते हैं।
इनके प्रयोग से आप अपेक्षाकृत स्वेद मुक्त अनुभव करते हैं।
बस इन विशेष सुगंध
शिष्टाचारों का पालन करें। मंद सुगंध का प्रयोग करें और जीवन
का आनंद उठाएँ। |