इस
सप्ताह-
उपन्यास अंश में- भारत से नासिरा शर्मा के उपन्यास
कुइयाँजान से एक अंश-
बारिश
एकाएक
आसमान पर काले-काले बादल छाने लगे। जुलाई का आधा महीना गुज़रने को
है। एक-दो बार नाम की बूँदाबाँदी हुई ज़रूर, मगर हवा घिर आए बादलों
को जाने किधर उड़ा ले जाती थी। समीना बेसन भूनने में लगी थी, तभी आया
चीखी। ''ए छोटी बेगम! आओ देखो, कैसी टपाटप बूँद पड़त हैं... अल्लाह
मियाँ तनिक ठहरो तो, कपड़ा तो उठाय लें!'' सूखते कपड़ों को जब तक आया
उठाती तब तक बारिश तेज़ हो चुकी था। समीना का दिल चाहा कि वह दौड़कर
बाहर जाए और जी भरकर भीगे, मगर बेसन के कढ़ाई में लग जाने के डर से
वह काम में लगी रही। बेसन और मिट्टी की सोंधी महक घर में भर गई थी।
सभी मौसम की पहली मूसलधार बारिश देखने बाहर बरामदे में जमा हो गए थे!
''सम्मो आओ, बड़ी मज़ेदार बारिश हो रही है।'' कमाल ने समीना को आवाज़
दी। ''इस बारिश ने मिज़ाज़ ही बदल दिया है।
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अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य
नाच मोबाइल नाच
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मनोहर पुरी का आलेख
पत्रकारिता, शिक्षा और राजनीति की
त्रिवेणी- तिलक
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रचना
प्रसंग में पूर्णिमा वर्मन का आलेख
थोड़ा धैर्य थोड़ा
श्रम- व्यक्तित्व एक लेखक का
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साहित्य समाचार में
भारत और
यू.के. से नए समाचार
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पूरन सरमा का व्यंग्य
मरना ऑफ़िस कंपाउंड में काली भैंस का
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सतीश गुप्त तथा अश्विनी केशरवानी के साथ
पुरी की रथयात्रा
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फुलवारी में खोज कथाओं के अंतर्गत
उत्तरी व
दक्षिणी ध्रुवों की खोज
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घर परिवार में अर्बुदा ओहरी बता रही हैं
घर को कैसे रखें व्यवस्थित
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समकालीन कहानियों में-
यू.के. से उषा राजे की कहानी
वह रात
पिछले
तीन दिनों से घर के रेडियेटर गर्म नहीं हो रहे थे। स्लॉट मीटर के
पैसे बहुत पहले ही खत्म हो चुके थे। घर में जितने कंबल थे अनीता ने
हम सबको उढ़ा दिए थे। बिना हीटिंग के पूर घर बर्फ़ीला हो रहा था।
खिड़की के शीशे पर बर्फ़ की हल्की-सी परत जम गई थी। ऐसी ठंडी रातों
में अक्सर मैं बंक-बेड के ऊपरी तल्ले पर स्लीपिंग बैग में
गुचड़-मुचड़ कर सोने की कोशिश करता हूँ, पर कई बार नींद में मैं अपने
बंक-बेड की सीढ़ियाँ उतर कर चुपके से अनीता के बिस्तर में घुस, उसके
गुदाज गर्म बदन से लिपट जाता हूँ। अनीता मुझे अपने सीने से चिपका
लेती है। मुश्किल तो तब होती है जब मेरी बहन रेबेका बिस्तर
भिगो देती हैं। पर, अनीता उसे पास रखे तौलिए में लपेट देती है और हम
आराम से एक-दूसरे से चिपके तब तक सोते रहते हैं, जब तक मेज़ पर रखी
घड़ी आठ बज कर पाँच मिनट का अलार्म नहीं बजाने लगती है। |
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अनुभूति में-
रामेश्वर दयाल कांबोज हिमांशु,
देवी नागरानी, ऋतु पल्लवी, दिव्य प्रकाश दुबे और आस्था की नई रचनाएँ |
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कलम
गही नहिं हाथ
इमारात में गरमियाँ आ गई हैं। गर्मियाँ यानी कमरों, बाज़ारों और मनोरंजन स्थलों में ए.सी. के अंदर बंद
रहने का मौसम। बड़े बड़े बाज़ार खरीदारों को आकर्षित करने
के लिए सेल और मनोरंजन के अनोखे इंतज़ाम में लग गए हैं। नृत्य-संगीत, कलाबाज़ियों और रैफ़ेल ड्रा के प्रदर्शन
जारी हैं। पूरी
कोशिश है कि लोग घर में बंद होकर न रहें, मॉल में आकर पैसे
फूँकें। मोधेश भी तपती दोपहर के ५०
डिग्री सेल्सियस तापमान में शान से मुस्कराता हुआ हर साल की तरह में दुबई की सड़कों के किनारे आ खड़ा
हुआ है। मोधेश दुबई के
ग्रीष्म-कालीन व्यापार प्रमोशन यानी दुबई समर सरप्राइज़ेस का प्रतीक
चिह्न है। बच्चों को इससे प्यार है और मध्यपूर्व में इसकी लोकप्रियता
मिकी माउस से कम नहीं। हाँलाँकि यह मिकी माउस की तरह किसी कहानी का
हिस्सा नहीं, शत-प्रति-शत व्यापार उत्सव का व्यापारिक प्रतीक है।
इसका चमकीला पीला रंग दुबई की चटक धूप से मिलता है और यह स्प्रिंग
वाले उस गुड्डे
जैसा है
जो डिब्बे का ढक्कन खुलते ही उछलकर बाहर आता है। इस दृष्टि से यह समर और सरप्राइज़
दोनों शब्दों का ठीक ठीक प्रतिनिधित्व करता है। मोधेश अरबी भाषा का शब्द है
जिसका अर्थ है लाजवाब।
-पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)
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क्या
आप जानते हैं?
कि राजस्थान में सुंधा माता नामक एक ऐसा
पर्वत है जहाँ खंडित मूर्तियों को रखना पवित्र माना जाता है। |
सप्ताह का विचार-
कर्मों का फल अवश्य मिलता है, पर हमारी
इच्छानुसार नहीं, कार्य के प्रति हमारी आस्था एवं दृष्टि के
अनुसार। - किशोर काबरा |
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