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एकाएक आसमान पर
काले-काले बादल छाने लगे। जुलाई का आधा महीना गुज़रने को है। एक-दो बार नाम की
बूँदाबाँदी हुई ज़रूर, मगर हवा घिर आए बादलों को जाने किधर उड़ा ले जाती थी।
समीना बेसन भूनने में लगी थी, तभी आया चीखी।
''ए छोटी बेगम! आओ देखो, कैसी टपाटप बूँद पड़त
हैं... अल्लाह मियाँ तनिक ठहरो तो, कपड़ा तो उठाय लें!'' सूखते कपड़ों को जब तक
आया उठाती तब तक बारिश तेज़ हो चुकी था। समीना का दिल चाहा कि वह दौड़कर बाहर
जाए और जी भरकर भीगे, मगर बेसन के कढ़ाई में लग जाने के डर से वह काम में लगी
रही। बेसन और मिट्टी की सोंधी महक घर में भर गई थी। सभी मौसम की पहली मूसलधार
बारिश देखने बाहर बरामदे में जमा हो गए थे!
''सम्मो आओ, बड़ी मज़ेदार बारिश हो रही है।'' कमाल ने समीना को आवाज़ दी।
''इस बारिश ने मिज़ाज़ ही बदल दिया है। अब इस बारिश का लुत्फ़ तो उठाना
चाहिए!'' जमाल खाँ ने आँख पर लगी ऐनक को ठीक करते हुए कहा!
''मसालेदार चाय बनवाती हूँ....आया!'' शकरआरा ने मूड में आकर आया के लिए घंटी
बजाई! ''देखिए, वह हाज़िर है।'' कमाल ने ताली बजा कहकहा लगाया। |