प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित 
पुरालेख तिथि
अनुसारविषयानुसार हिंदी लिंक हमारे लेखक लेखकों से
SHUSHA HELP // UNICODE  HELP / पता-


पर्व पंचांग  १४. ७. २००८

इस सप्ताह-
समकालीन कहानियों में-
यू.के. से उषा राजे की कहानी वह रात

पिछले तीन दिनों से घर के रेडियेटर गर्म नहीं हो रहे थे। स्लॉट मीटर के पैसे बहुत पहले ही खत्म हो चुके थे। घर में जितने कंबल थे अनीता ने हम सबको उढ़ा दिए थे। बिना हीटिंग के पूर घर बर्फ़ीला हो रहा था। खिड़की के शीशे पर बर्फ़ की हल्की-सी परत जम गई थी। ऐसी ठंडी रातों में अक्सर मैं बंक-बेड के ऊपरी तल्ले पर स्लीपिंग बैग में गुचड़-मुचड़ कर सोने की कोशिश करता हूँ, पर कई बार नींद में मैं अपने बंक-बेड की सीढ़ियाँ उतर कर चुपके से अनीता के बिस्तर में घुस, उसके गुदाज गर्म बदन से लिपट जाता हूँ। अनीता मुझे अपने सीने से चिपका लेती है। मुश्किल तो तब होती है जब मेरी बहन रेबेका बिस्तर भिगो देती हैं। पर, अनीता उसे पास रखे तौलिए में लपेट देती है और हम आराम से एक-दूसरे से चिपके तब तक सोते रहते हैं, जब तक मेज़ पर रखी घड़ी आठ बज कर पाँच मिनट का अलार्म नहीं बजाने लगती है।

*

पूरन सरमा का व्यंग्य
मरना ऑफ़िस कंपाउंड में काली भैंस का

*

सतीश गुप्त तथा अश्विनी केशरवानी के साथ
पुरी की रथयात्रा

*

फुलवारी में खोज कथाओं के अंतर्गत
उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों की खोज

*

घर परिवार में अर्बुदा ओहरी बता रही हैं
घर को कैसे रखें व्यवस्थित

 

पिछले सप्ताह

डॉ. नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य
मानव आयोग

*

आज सिरहाने - डॉ. भावना कुँअर का हाइकु संग्रह
तारों की चूनर

*

संस्कृति में मीरा सिंह का आलेख
बेटी की तरह उठती है डोली तुलसी की

*

रचना प्रसंग में पूर्णिमा वर्मन का आलेख
ग़लती आखिर है कहाँ

*

समकालीन कहानियों में- भारत से
प्रभु जोशी की कहानी एक चुप्पी क्रॉस पर

अक्सर, ऐसा ही होता है, पापा के सामने पड़ने पर। उनका ठेठ-रोबदार, संजीदा-संजीदा चेहरा देख कर अमि हमेशा से ही सहमी-सहमी रही है। इसीलिए पापा की उपस्थिति के घनीभूत क्षणों में अमि चाहती रही है कि जितना भी जल्दी हो सके, वह उनकी आँखों से ओझल हो जाए। पापा रुके हुए थे। रुके हुए और चुप। अमि को लगा, यह शायद पापा के बोलने के पहले की ख़तरनाक चुप्पी है, जो टूटते ही अपने साथ बहुत हौले-से एकदम ठंडे, लेकिन तीखे लगने वाले शब्द छोड़ेगी, जो उसे भीतर ही भीतर कई दिनों तक रुलाते रहेंगे। उसे लग रहा था, पापा कुछ कमेंट करेंगे। उसके इतनी देर तक बाथरूम में बन्द रहने पर। मसलन, 'अमि! तुम्हें दिन-ब-दिन यह क्या होता जा रहा है?' मगर, वे कुछ कहे बग़ैर ही आगे बढ़ गए। अमि आश्वस्त हो गई। गीले पंजों के बल लम्बे-लम्बे डग भरती हुई, अपने कमरे में चढ़ आई।

 

अनुभूति में-
धर्मवीर भारती, ऋषभदेव शर्मा, अरुणा राय, पूश्किन और रामचंद्र विकलेश  की नई रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ
इस सप्ताह हिन्दी विकिपीडिया अपना ५वाँ जन्मदिन मना रहा है। इसका प्रारंभ ११ जुलाई २००३ को हुआ था। इसमें २०,५०३ लेख हैं और इसकी गुणवत्ता का स्तर ५ है। करोड़ों की संख्या वाली हिन्दी भाषी जनसंख्या में ऐसे मुश्किल से १० लोग भी नहीं हैं जो नियमित रूप से हिन्दी विकिपीडिया में काम करने में रुचि लें। साहित्य और संस्कृति के विषयों को छोड़ दें तो विज्ञान, अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी में लेखों और जानकारी का नितांत अभाव है। इन सब बातों के चलते हिन्दी विकिपीडिया आज लेखों की संख्या के आधार पर जहाँ नेपाली और तेलुगु जैसी भाषाओं से पीछे है वहीं गुणवत्ता के आधार पर बंगला और मराठी भाषाओं से पीछे है। अंग्रेज़ी, फ्रेंच और जर्मन भाषाओं की बराबरी करना तो दूर हम छोटे छोटे देशों थाईलैंड की भाषा थाई के आधे और इज़राइल की भाषा हीब्रू के चौथाई भाग तक भी नहीं पहुँच सके हैं। जबकि अरबी और फारसी यूरोपीय भाषाओं के मुकाबले पर हैं। क्या इस प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं में पिछ़ड़ापन दिखाना प्रत्येक हिन्दी भाषी के लिए अपमान की बात नहीं है? अगर इस आलेख को पढ़कर हाथ बटाने की आग जगे हो तो सहयोग के लिए हमें एक ईमेल ज़रूर करें क्योंकि संगठन ही बल है और छोटे से छोटा श्रमदान भी बहुत बड़े परिवर्तन ला सकता है।
-पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

इस सप्ताह विकिपीडिया पर
विशेष लेख- गौरैया

क्या आप जानते हैं?
कि गौरैया एक ऐसा पक्षी है जो पालतू न होने पर भी मनुष्य के आसपास ही रहना पसंद करता है।

सप्ताह का विचार जो बिना ठोकर खाए मंजिल तक पहुँच जाते हैं, उनके हाथ अनुभव से खाली रह जाते हैं। -शिवकुमार मिश्र 'रज्‍जन'

अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़ें

Click here to send this site to a friend!

नए अंकों की पाक्षिक
सूचना के लिए यहाँ क्लिक करें

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

 

Google
Search WWW Search www.abhivyakti-hindi.org

hit counter

आँकड़े विस्तार में
१४ २ ३ ४ ५०३ ६ ७ ८ ९ ०