इस
संग्रह के परिप्रेक्ष्य में जो बात मेरे मन को सबसे अधिक
प्रभावित करती है, वह है इसकी सहजता। कवयित्री ने सायास
कुछ भी नहीं कहा है, जो कहा है -भावों के प्रवाह में निकला
है और उस प्रवाह को छिपाने के लिए या गूढ़ बनाकर प्रस्तुत
करने के लिए भावना जी ने किसी कृत्रिमता की आड़ नहीं ली
है। यहाँ न किसी दर्शन की गूढ़ता है, न अभिजात्य का
आवरण-जो कहा है सीधे सपाट शब्दों में कहा है। संभवतः यही
कारण है कि उनकी ये छोटी-छोटी कविताएँ भी हृदय की गहरी से
गहरी परतों को खोलती चलती हैं और पाठक के अन्दर दबा हुआ
कवि-मन मुखर हो उठाता है। लेकिन भावना जी का कवयित्री मन
फिर भी संतुष्ट नहीं है। उनमें कुछ और कहने की छटपटाहट है-
कहना चाहूँ
है छटपटाहट
कह ना पाऊँ।
मैं समझती हूँ ये छटपटाहट
बनी ही रहनी चाहिए क्यों कि यही साहित्यकार का पाथेय बनती
है। 'अज्ञेय' जी ने बहुत पहले कहा था -"शब्द ब्रह्म का रूप है
इसे नष्ट मत करो। कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक कहने
की कला सीखो।" हाइकु कविताएँ इन विचारों को अक्षरशः सत्य
सिद्ध करती हैं।
शिल्प की दृष्टि से हाइकु
क्रमशः पाँच, सात और पाँच वर्णों में लिखा जाने वाला लघु
छंद है, परन्तु कवयित्री ने इन लघु छंदों में भी रस, बिम्ब
और अलंकारों के अस्तित्व को न केवल बनाए रखा है बल्कि
विशिष्ट उपमान योजना और प्रतीकात्मक बिम्बों द्बारा उनके
सौन्दर्य को उभारा है। 'गुलमोहर' एक ऐसा ही प्रयोग है -
भटका मन
गुलमोहर वन
बन हिरन।
प्रकृति वर्णन में
मानवीकरण का प्रयोग प्रचुर मात्रा में हुआ है। भावना जी की
भाषा में बौद्धिकता के साथ काव्यात्मक कमनीयता और लय का जो
मेल मिलता है, उसका आज के नए लेखकों में प्रायः अभाव है।
पुस्तक की एक और विशेषता है इसकी चित्र योजना। मुखपृष्ठ पर
स्वयं भावना जी का चित्र और अन्दर प्रत्येक हाइकु के साथ
प्रख्यात चित्रकार बी.लाल के चित्र अपने आप में एक नया
प्रयोग है। चित्र योजना में कहीं प्रतीकात्मकता है, जिसमें
आधुनिक काल की आड़ी-तिरछी रेखाओं का नियोजन किया गया है, तो
कहीं विषयानुसार भावों को अक्षरशः चित्र में उतार दिया गया
है।
वस्तुतः 'तारों की चूनर'
नामक यह हाइकु संकलन अपने नवीन कलात्मक कलेवर और वैचारिक
ताने -बाने के साथ ऐसी सूक्ष्म संवेदनाओं से हमारा
साक्षात्कार कराता है जिनसे कई बार हम स्वयं भी अनछुए रह
जाते हैं।
डॉ.ऋतु
पल्लवी
७ जुलाई २००८ |