इस
सप्ताह-
समकालीन कहानियों में
सुभाष नीरव की लंबी कहानी
साँप
गाँव
में जिस लक्खा सिंह के चर्चे हो रहे थे, वह बिशन सिंह तरखान का
इकलौता बेटा था। जब पढ़ने-लिखने में उसका मन न लगा और दूसरी जमात के
बाद उसने स्कूल जाना छोड़ गाँव के बच्चों के संग इधर-उधर आवारागर्दी
करना शुरू कर दिया, तो बाप ने उसे अपने साथ काम में लगा लिया।
दस-बारह साल की उम्र में ही वह आरी-रंदा चलाने में निपुण हो गया था।
बिशन सिंह तरखान एक गरीब आदमी था। न उसके पास ज़मीन थी, न जायदाद।
गाँव में खाते-पीते और ऊँची जात के छह-सात घर ही थे मुश्किल से, बाकी
सभी उस जैसे गरीब, खेतों में मजूरी करने वाले और जैसे-तैसे पेट पालने
वाले! बिशन सिंह इन्हीं लोगों का छोटा-मोटा काम करता रहता। कभी किसी
की चारपाई ठीक कर दी, कभी किसी के दरवाजे-खिड़की की चौखट बना दी।
किसी की मथानी टूट जाती- ले भई बिशने, ठीक कर दे। किसी की चारपाई का
पाया या बाही टूट जाती तो बिशन सिंह को याद किया जाता और वह तुरंत
अपनी औज़ार-पेटी उठाकर हाज़िर हो जाता।
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हास्य व्यंग्य में अविनाश वाचस्पति बना रहे हैं
श्मशान घाट का इंडेक्स यमराज के हवाले
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ज़किया ज़ुबैरी का संस्मरण
दो बैलों की जोड़ी
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आज सिरहाने रूपसिंह चंदेल का उपन्यास
शहर गवाह है
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संस्कृति में नवीन नौटियाल का आलेख
चाय की ऐतिहासिक यात्रा
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हास्य व्यंग्य में महेश द्विवेदी से
किस्सा टैक्स का
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संस्कृति में रमा चक्रवर्ती का कलम से
झाडू देवी की कथा
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साहित्यिक निबंध में विजय वाते का आलेख
उजाले अपनी यादों के
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साहित्य समाचार में
हिन्द
युग्म का हिंदी सहयोग, केदार सम्मान' -२००७ अनामिका
को, अनीता वर्मा को बनारसी प्रसाद
भोजपुरी सम्मान, कुतुबनुमा की काव्य
गोष्ठी, प्रो. पुष्पेन्द्र पाल सिंह को ठाकुर वेद राम प्रिंट मीडिया एवं पत्रकारिता
शिक्षा पुरस्कार।
"प्रवासी आवाज", नाक का सवाल, बीत चुके शहर में, तथा कौन कुटिल खल कामी का
विमोचन।
नासिरा शर्मा को कथा
यू.के. और उषा वर्मा को पद्मानंद सम्मान।
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वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में
रघुवीर सहाय की कहानी सेब--
चलती
सड़क के किनारे एक विशेष प्रकार का जो एकांत होता है, उसमें मैंने एक
लड़की को किसी की प्रतीक्षा करते पाया। उसकी आँखें सड़क के पार किसी
की गतिविधि को पिछुआ रही थीं और आँखों के साथ, कसे हुए ओठों और
नुकीली ठुड्डीवाला उसका छोटा-सा साँवला चेहरा भी इधर से उधर डोलता
था। पहले तो मुझे यह बड़ा मज़ेदार लगा, पर अचानक मुझे उसके हाथ में
एक छोटा-सा लाल सेब दिखाई पड़ गया और मैं एकदम हक से वहीं खड़ा रह
गया। वह एक टूटी-फूटी परेंबुलेटर में सीधी बैठी हुई थी, जैसे कुर्सी
में बैठते हैं, और उसके पतले-पतले दोनों हाथ घुटनों पर रक्खे हुए थे।
वह कमीज़-पैजामा पहने थी, कुछ ऐसा छरहरा उसका शरीर था और उस
बच्ची में कहीं कोई ऐसा दर्द था जो मुझे फालतू बातें सोचने से रोकता
था। |
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अनुभूति में-
सुषम बेदी, किशोर काबरा, नीरज
गोस्वामी, रचना श्रीवास्तव और मदन मोहन शर्मा की नई
रचनाएँ |
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कलम
गही नहिं हाथ
कच्ची कली कचनार की यह एक कहावत है, गाना
है और अनुप्रास अलंकार का उदाहरण भी। कचनार की कली को कोमल सौंदर्य का प्रतीक समझा जाता है।
संस्कृत में इसे कोविदार कहते है। कालिदास इसके सौंदर्य का वर्णन
करते हुए ऋतुसंहार में कहते हैं- चित्तं विदारयति कस्य न कोविदारः
यानी ऐसा कौन है जिसके मन को कोविदार का सौंदर्य विचलित न कर दे।
जिन्होंने कचनार का फूल देखा है वे लोग कालिदास के इस विचार से
ज़रूर सहमत होंगे। मराठी में आज भी इसका नाम कोविदार ही है। हिंदी तक आते
आते
कोविदार कचनार कैसे बन गया यह खोज का विषय हो सकता है, पर इसको खोजे
कौन? कंकरीट के जंगलों में पैसे की दौड़
में खोए कितने लोग होंगे जो अपने बगीचे के पौधों के नाम जानते होंगे?
अपनी सड़क पर खिलते वृक्षों को पहचानते होंगे?
ईश्वर ने हमें मुफ़्त की हवा दी है साँस लेने के लिए, प्रकृति का
सौंदर्य दिया हैं मन को प्रफुल्लित करने के लिए पर हम मुफ़्त की
चीज़ों की क़द्र करना भूल गए हैं। इन भूली हुई यादों को ताज़ा करने
के क्रम में हम पिछले दो सालों से सुंदर फूलों वाले वृक्षों के
विशेषांक निकालते आए हैं। २००६ में गुलमोहर विशेषांक और
२००७ में
अमलतास विशेषांक के बाद इस क्रम में इस वर्ष बारी है कचनार की। आपकी
रचनाएँ सादर आमंत्रित हैं। रचनाएँ भेजने की अंतिम तिथि ३१ मई है।
--पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)
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सप्ताह का विचार
वैर के कारण उत्पन्न होने वाली आग
एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती।
-वेदव्यास |
क्या
आप जानते हैं?
भारतीय मसालों के
लोकप्रिय निर्माता और निर्यातक प्रतिष्ठान एम.डी.एच. का पूरा नाम महाशियाँ दी
हट्टी है। |
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