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१. ४. २०२२

इस माह-

अनुभूति में-
जलेबी की आनंददायक मिठास को समर्पित अनेक रचनाकारों की ढेर-सी मनभावन रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

जब हम इमारात में नये-नये आए होते हैं, तब किसी छुट्टी की सुबह जलेबी की याद आ जाना बहुत स्वाभाविक है। ...आगे पढ़ें

घर-परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि अग्रवाल जलेबी विशेषांक के लिये  प्रस्तुत कर रही हैं- जलेबी की व्यंजन विधि।

बागबानी में-बारह पौधे जो साल-भर फूलते हैं इस शृंखला के अंतर्गत इस माह प्रस्तुत है- गुड़हल की देखभाल।

स्वाद और स्वास्थ्य में- स्वादिष्ट किंतु स्वास्थ्य के लिये हानिकारक भोजनों की शृंखला में इस माह प्रस्तुत है- सफेद डबलरोटी के विषय में।

जानकारी और मनोरंजन में

गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं कि अप्रैल महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से 

वे पुराने धारावाहिक- जिन्हें लोग आज तक नहीं भूले और अभी भी बार-बार याद करते हैं इस शृंखला में जानें विक्रम और वेताल के विषय में।

वर्ग पहेली-३४८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य-और-संस्कृति-के-अंतर्गत-जलेबी-विशेषांक-में

समकालीन कहानियों में इस माह प्रस्तुत है
शार्दूला नोगजा की कहानी दूध जलेबी

"क्या? हे भगवान कब हुआ? भईया अब अस्पताल में हैं? भाभी आप चिंता मत करो! मैं आ रही हूँ! ..." वसुधा ने फोन रखा तो उसके माथे पर पसीने की बूँदें उभर आई थीं और हाथ काँप रहे थे। संजय ने उसे इतना विचलित बहुत कम देख था।
"क्या हुआ वसु?”, संजय ने घबरा के पूछा।
“भाईया को हार्ट अटैक आया है,” वसुधा ने लड़खड़ाती हुई जबान से कहा।
“मुझे जाना होगा, कल ही!”, वसुधा बोलते-बोलते कमरे में पैकिंग करने चल दी।
“अभी! अर्जेंट में तो टिकट बहुत महँगे होंगे!”, संजय ने वसुधा के उड़े हुए रंग को देखकर धीरे से बोला।
“तुमसे टिकट के लिए नहीं कह रही, जाना है, यह बता रही हूँ!”, वसुधा ने अपने स्वभाव के विपरीत, कड़ककर कहा।
इस घर में अक्सर वही होता था जो संजय चाहता था। वसुधा मूर्ख या प्रताड़ित नहीं थी, पर एक दुखती सी रग में जाने कौन सा क्षोभ भरा रहता था। उस पर हाथ रखने से संजय भी डरता था!
आगे...

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डॉ. शिव शर्मा का व्यंग्य
स्व. भोलागुरु रसासिक्त साहित्य मंडल
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डॉ. प्रणव भारती का संस्मरण
जलेबी बनाम रसभरी
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पूर्णिमा वर्मन का आलेख
हमारी संस्कृति की पहचान जलेबी

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वृंदावनलाल वर्मा का
रोचक प्रसंग- रसीद

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पिछले अंकों से- जलेबी रचनाएँ

लघुकथाओं में-

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जलेबी-
राहुल देव

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श्राद्ध खाने नहीं आऊँगा कौआ बनकर
- अज्ञात

संस्मरण में-

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लंगड़ साव की जलेबी
- आनंद वर्धन

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पश्चिम की दीवानी दुनिया डलास के किस्से
- अतुल अरोरा

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फोन बजता रहा
- कृष्णा सोबती

पर्यटन में-

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जलेबी की विदेश यात्रा
- मधु सोसि

कहानियों में-

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चमड़े का अहाता
- दीपक शर्मा

व्यंग्य में

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बाजार में निकला हूँ
- शंभुनाथ सिंह

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नेता जी का भाषण
- शशि पुरवार

फुलवारी में बच्चों के लिये कहानी

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 जलेबी सैर को चली- सुब्बा राव

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह के पहले सप्ताह मे प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : रतन मूलचंदानी

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