कलम गही नहिं हाथ
जलेबी में जान
जब हम इमारात में नये-नये
आए होते हैं, तब किसी छुट्टी के दिन आलसभरी सुबह जब न तैयार होने की
हड़बड़ी हो, न काम पर जाने की और न ही खाने का डिब्बा तैयार करने की, तब
अचानक जलेबी की याद आ जाना बहुत स्वाभाविक है। बात १९९५ की है, एक ऐसी ही
तलबगार सुबह हम उत्साहित होकर झटपट बिल्डिंग के नीचे बने सुपर मार्केट में
गए और थर्मोकोल की प्लेट में क्लिंग फिल्म से बंद जलेबी ले आए।
यह उत्साह ज्यादा देर तक बना नहीं रह सका क्योंकि रूप, रस, गंध वह तीनों में
कुछ फींकी ही रही। शक्ल उसकी जलेबी जैसी जरूर थी पर रंग बसंती, मीठी कुछ
कम, वो जो केसर या गुलाब की हल्की सी महक होती है जो जलेबी में तृप्ति भरती
है वह नदारद थी और कुरकुरेपन का तो सवाल ही नहीं उठता।
इमारात में जलेबी लगभग हर मिठाई की दुकान और सुपर स्टोर पर दिखाई देती थी,
लेकिन अगर सचमुच की जलेबी खानी है तो उसे ढूँढना जरूरी था। यह खोज जल्दी ही
असर लाई और हमें शुद्ध भारतीय जलेबियों की दो दूकानें मिलीं। एक का नाम था
रोला स्वीट्स और दूसरी का जयपुर रेस्टोरेंट। मुझे याद पड़ता है कि पहले
इसका नाम जयपुर कैफेटेरिया था जयपुर रेस्टोरेन्ट कब हुआ पता नहीं। एक दिन
जाकर पूछूँगी। दोनो जगहें जबरदस्त हैं। भारत की कौन सी मिठाई, नमकीन,
फरसाण, चाट, पराठे, थेपले, ढोकले, फाफड़े, दाल पकवान, दाल बाटी चूरमा,
अचार, मुरब्बे, सच पूछो तो गुजरात और राजस्थान का शायद ही कोई व्यंजन हो जो
इनके यहाँ न मिले। तो बस यहाँ अपनी जलेबी की खोज पूरी हुई। बारीक, कुरकुरी
और स्वादिष्ट जलेबियों वाला जयपुर
रेस्टोरेन्ट आज तक हमारा जलेबी अड्डा बना हुआ है।
अब २०२२ में अगर कोई भारतीय इमारात आता है तो जलेबी खोजने के लिये उसे इतनी
मेहनत नहीं करनी पड़ती। भारत के तमाम व्यंजन ब्रैंड शारजाह और दुबई में
अपनी आन बान शान के साथ अनेक शाखाओं में आपके स्वागत में पलक पाँवड़े बिछाए
खड़े हैं। चाहे वहाँ जाकर खाओ या वेबसाइट पर आर्डर देकर घर मँगवा लो।
बीकानेरवाला, पूरनमल, मिठास, छप्पन भोग, ब्रजवासी स्वीट्स, सरवाना भवन और
श्रीकृष्णा स्वीट्स सभी जगह जलेबियाँ मिलती हैं। हमारा जयपुर रेस्टोरेन्ट
भी वेब पर है। कुल मिलाकर यह कि अब तो जलेबी का जशन पूरे शबाब पर है। न
जलेबी की कमी है न खाने वालों की। साप्ताहिक छुट्टी के दिन तो इन दूकानों
की रौनक देखते ही बनती है। बहुत से लोगों को यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि
अकेले दुबई में बीकानेरवाला के पाँच से अधिक आउटलेट हैं।
जिन
लोगों को भ्रम है कि जलेबी मध्यपूर्व से भारत आई उन्हें दुबई में करामा की
एक बहुत पुरानी दूकान इमदाद स्वीट के मालिक का
यू
ट्यूब पर स्थित साक्षातकार क्लिक कर के जरूर देखना चाहिये। जलेबी किंग नाम से
प्रसिद्ध १९८७ में स्थापित यह दूकान इमारात में जलेबी का पहला चरण मानी
जाती है। हो सकता है कि जलेबी जैसा कुछ अरबी लोग पहले भी बनाते हों लेकिन
भारतीय जलेबी से तो उसका कोई मुकाबला नहीं।
भई, भारतीय जलेबी में जान
है...।
पूर्णिमा
वर्मन
१ अप्रैल २०२२
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