हमारी-संस्कृति-की-पहचान--जलेबी
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पूर्णिमा वर्मन
जलेबी भारत की पहचान है,
हमारी संस्कृति है, अनेक परिवारों में सुबह सवेरे
नाश्ते का श्रीगणेश जलेबी से होना तो एक परंपरा की तरह
होता है। एक तरफ यह पूजा पाठ और दान दक्षिणा की प्रमुख
वस्तु है तो दूसरी तरफ कई रोगों का इलाज भी कही जाती
है। फिल्म, साहित्य और लोकगीतों में भी इसकी उपस्थिति
धूम मचा रही है। इसे अमीर गरीब सब खाते हैं और समान
रूप से पसंद करते हैं। कौन सा ऐसा भारतीय होगा जिसने
अपने जीवन में कभी जलेबी न खाई हो? कहना न होगा कि यह
भारत का लोक-मिष्ठान्न है। कुछ लोग इसे भारत की
राष्ट्रीय मिठाई भी कहते हैं लेकिन किसी सरकारी वेब
साइट पर मुझे इसकी उपस्थिति नहीं दिखी।
विशिष्ट जलेबी वाले
कुछ लोगों के लिये यह एक स्वादिष्ट व्यंजन मात्र है
जबकि कुछ लोगों के लिये यह साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप
है। विश्वास नहीं होता न? मुंबई का मुंबादेवी
जलेबीवाला, दिल्ली में चाँदनी चौक जलेबी वाला,
प्रयागराज का सुलाकी जलेबी वाला, अहमदाबाद का
चंद्रविलास नी जलेबी, नैनीताल की लोटेवाला जलेबी की
दूकान, इन सभी ने जलेबी देवी की कृपा से न केवल इतिहास
रचा है, धन धान्य से स्वयं को सम्पन्न भी किया है और
देश विदेश में भारत का नाम ऊँचा किया है।
अनेक नाम
संस्कृत में जलेबी को कई नामों से संबोधित किया गया
है- सुधाकुण्डलिका, शष्कुली, कर्णशष्कुलिका और
जलवल्लिका। हेमंत शर्मा अपनी पुस्तक एकदा भारतवर्षे
में लिखते हैं कि सन १६०० में संस्कृत भाषा में
गुण्यगुणबोधिनी नामक पुस्तक में जलेबी के बारे में
बताया गया है। इस पुस्तक में उसे जलवल्लिका कहा गया
है। रस से परिपूर्ण होने के कारण इसे यह नाम मिला।
साहित्यिक उल्लेख
रघुनाथ कृत भोजनकौतूहल नामक ग्रंथ में जलेबी बनाने की
विधि बताई गयी है। इसी ग्रंथ में अयोध्या में रामजन्म
के समय प्रजा में जलेबियाँ बाँटने का उल्लेख है। जलेबी
को यहाँ कुण्डलिका कहा गया है। १४५० ईस्वी में जिनासुर
द्वारा रचित जैन धर्म की प्रसिद्ध पुस्तक ‘’प्रियम्
कर्णप कथा’’ से पता चलता है कि धनी व्यापारियों की
सभाओं में जलेबी कितनी लोकप्रिय थी। कुछ प्राचीन
ग्रंथों में ऐसा विवरण मिलता है कि जलेबी राम जी की
पसंदीदा मिठाई थी। जब वे प्रसन्न होते थे तो जलेबी
खाते थे। रावण का वध करने के बाद राम जी ने जलेबी खाई
थी। ऐसी मान्यता है कि तभी से दशहरे के पर्व पर पान और
जलेबी खाने की प्रथा आरंभ हुई। आज भी अनेक स्थानों पर
रामलीला स्थल के बाहर जलेबी के ठेले देखे जा सकते हैं।
कुछ लोग वही जलेबी खाते हैं और कुछ खरीदकर घर ले जाते
हैं। पान का बीड़ा हनुमान जी को चढ़ाया जाता है।
आध्यात्मिक एवं आयुर्वेदिक
उल्लेख
अघोरी सन्त आध्यात्मिक सिद्धि तथा कुण्डलिनी जागरण के
लिए सुबह नित्य जलेबी खाने की सलाह देते हैं। अन्न,
जल, माधुर्य, स्नेह और अग्नि इन पाँच वस्तुओं से
निर्मित जलेबी में पंचतत्व का वास होता है। जलेबी खाने
से पंचमुखी महादेव, पंचमुखी हनुमान तथा पाँच फनवाले
शेषनाग की कृपा प्राप्त होती है, ऐसा उनका मानना है।
आयुर्वेदिक ग्रन्थ भावप्रकाश में कहा गया है-
एषा कुण्डलिनी नाम्ना पुष्टिकान्तिबलप्रदा।
धातुवृद्धिकरीवृष्या रुच्या चेन्द्रीयतर्पणी।। (पृष्ठ
७४०) अर्थात – जलेबी कुण्डलिनी जागरण करने वाली,
पुष्टि, कान्ति तथा बल को देने वाली, धातुवर्धक,
वीर्यवर्धक, रुचिकारक एवं इन्द्रिय सुख और रसेन्द्रीय
को तृप्त करने वाली होती है।
घरेलू उपयोग
बहुत
से रोगों से मुक्ति के लिये जलेबी के स्वादिष्ट नुस्खे
मिलते हैं। एक स्थान पर कहा गया है कि अपने ऐब (दोष)
जलाने, मिटाने हेतु नित्य जलेबी खाना चाहिये।
वात-पित्त-कफ यानि त्रिदोष की शांति के लिए सुबह खाली
पेट दही के साथ, वात विकार से बचने के लिए-दूध में
मिलाकर और कफ से मुक्ति के लिए गर्म-गर्म चाशनी सहित
जलेबी खाएँ। सिरदर्द और माइग्रेन के लिये सूर्योदय से
पूर्व प्रातः खाली पेट २ से ३ जलेबी चाशनी में डुबोकर
खाएँ और पानी नहीं पिएँ तो सभी तरह मानसिक विकार दूर
हो जाते हैं। पीलिया से पीड़ित रोगियों के लिए भी इसके
उपचार के वर्णन मिलते हैं। पैर की बिवाई फटने या त्वचा
निकलने स्थिति में २१ दिन लगातार जलेबी का सेवन करने
की सलाह भी बहुत से लोग देते हैं।
प्रांत-प्रांत का जलेबी
जलेबी आसानी से दूसरे व्यंजनों के साथ घुलमिल जाती है
और एक मिनी कलेवा बन जाती है। गुजरात में हों तो
फाफड़ा जलेबी, मध्यप्रदेश में पोहा जलेबी, उत्तर
प्रदेश में दूध, दही या रबड़ी जलेबी, महाराष्ट्र में
भजिया जलेबी और हरियाणा में समोसा जलेबी खाने की
परंपरा है। भारत के अलग-अलग राज्यों में जलेबी की कई
किस्म पाई जाती हैं। इंदौर के रात के बाजारों में बड़े
जलेबा मिलते हैं, जिनका एक का वजन २५० ग्राम तक होता
है। छेने के शौकीन बंगाल में जलेबी को छेने के साथ
बनाते है और इसे कहते हैं छानार जिल्पी। छेना जलेबी
बिहार में भी लोकप्रिय है। बिहार में आलू की जलेबी भी
बनाई जाती है। मध्य प्रदेश में इसे खोए के साथ बनाते
हैं और कहते हैं मावा जंबी जबकि हैदराबाद इसे खोवा
जलेबी ही कहा जाता है। जलेबी के अलग अलग नाम भी हैं।
उत्तर भारत में यह जलेबी नाम से जानी जाती है, जबकि
दक्षिण भारत में इसे जिलेबी और बंगाल में ‘जिल्पी’
कहते हैं। कहीं-कहीं चावल के आटे की और उड़द की दाल की
जलेबी का भी प्रचलन है। आम तौर पर देसी घी में तली हुई
जलेबियाँ चीनी की गाढ़ी चाशनी में ही डाली जाती हैं.
लेकिन, ठंड के दिनों में पूर्वांचल सहित कुछ इलाकों
में इसे गुड़ की चाशनी में भी डालकर खाया जाता है।
जलेबी और मुहावरे
जलेबी ने हमारी भाषा को भी समृद्ध किया है। अनेक
मुहावरों में इसका प्रयोग होता है। उदाहरण के लिये-
बातों की जलेबी छानना अर्थात घुमा-फिराकर बात करना
किसी बात को सीधे सीधे न कहना। जलेबी की तरह सीधा होना
अर्थात् वह व्यक्ति जो अपने को निर्दोष बता रहा हो पर
सच में दोषी हो। जलेबी की रखवाली कुतिया अर्थात् चोर
को चौकीदारी सौंपना या गलत आदमी के हाथों में काम सौंप
देना। तेल की जलेबी दूर से दिखाना अर्थात् वादा कर के
पूरा न करना या धोखा देना। जलेबी जीत - यानि वह जीत
जिसे पाने में बहुत मेहनत करनी पड़ी हो।
लोक से तादात्मय
लोक
गीतों में जलेबी बार बार आती है बुंदेलखंड के लोकगीत
लांगुरिया में ‘’मेरी चट्टू पड़ गई जीभ जलेबी ला दे
लांगुरिया’’ में नायक और नायिका के बीच रोचक संवाद है।
जब नायिका जलेबी माँगती है और नायक उसे मिर्च खाने की
सलाह देता है। इसी प्रकार हरियाणवी लोकगीत ‘’जच्चा की
चटोरी जीभ जलेबी माँगे सै’’ में एक सहेली जच्चा की
चटोरी जीभ के लिये जलेबी की फरमाइश करती है। ‘’मेरी
पीहर की जलेबी लच्छेदार बलम जी बाजरे की रोटी हमकू ना
भावे’’ कहते हुए एक अन्य नायिका अपने मायके की
जलेबियाँ याद करती है और कहती है कि उसे ससुराल की
बाजरे की रोटी अच्छी नहीं लगती। एक और लोकगीत है
‘’जलेबी मेरे जीजा ने खवाई दई रे लड़ाई दोई बहनन में
कराई दई रे।’’ अलग अलग अवसरों पर गाए जाने वाले अनेक
लोकगीतों में अलग अलग प्रकार से जलेबी को याद किया
जाता है।
फिल्म-इल्म
फिल्मी गीतों में जलेबी बाई और अफगान जलेबी काफी
लोकप्रिय हुए हैं जबकि पॉप गीतों में जलेबी बेबी अपने
अनेक संस्करणों के साथ बहुत सी भाषाओं में धूम मचा रहा
है। २०१८ में महेश भट्ट ने जलेबी एक फिल्म भी बनाई थी,
जिसमें रिया चक्रवर्ती ने नायिका की भूमिका निभाई थी।
२८ अप्रैल २००८
१
अप्रैल २०२२ |