हो
सकता है कि अपने माँ-पापा का यह जज़बाती देना-पावना
हमारे बेटों को एक नौसिखिए का अधपका बहीखाता लगता हो! उन
दोनों में से एक ने अपना कैरियर चुना है फाईनैन्स में -
असल-सूद, बचत-घटत, आमदनी-खर्च, कहीं किसी भूल-चूक का
सही-सही ब्योरा न हो पाए तो अपना ही नहीं, लाखों-करोड़ों
औरों का भी भटठा बैठ जाए। दूसरे को इन्फोर्मेशन
टैकनॉलॉजी से कमाई है, सूचना संकलन,, विभाजन, प्रसारण
कहीं से कहीं तक जमा-जुटा कर तुरंत प्रयोग के नए-नए
साधनों का जुगाड़ न हो तो चलते फिरते लोग आगे कम बढ़े,
टकराएँ ज्यादा। ख़बर कीमती हो, तो ख़रीददार कम नहीं।
''हमें अफ़सोस है मौम, हम आपको गर्व से अपनें
हिंदुस्तानी मित्र संबंधियों को यह बताने का मौका नहीं
देते कि आपका एक बेटा इंजिनीयर है और दूसरा डॉक्टर'',
जुगलबंदी में सुर मिला कर कहते हुए मनु और शांतनु की
उम्र में पाँच साल का फ़र्क है, लेकिन छोटा शांतनु अगर
अपनी तेज़ रफ़्तार जिंदगी में से हम बाकी सबके लिए कभी
कुछ वक़्त न निकाल पाए, तो हमारी कारें, कंप्यूटर,
घड़ियाँ, सैल-फ़ोन, लॉन-मोअर, कोई भी चलनें वाली चीज़
असमय ही बुड़ा कर बीमार हो जाए।
''वी
आर ए स्ट्रेंज लॉट। अजीब मजमा है हम भी!'' मनु कहता है।
''पापा सामने आए क्षण को सुस्ता कर जीते हैं क्योंकि
उनका अभी बिताए हुए वक़्त को पूरी तरह न जीने का बैकलॉग
चल रहा है। आप हर आने वाले पल से पहले ही उसे पूरी तरह
जीनें को तत्पर रहती हैं। मुझे लगता है कि अधिकांश पलों
को पूरा जीने से पहले उनकी परिभाषा जान लूँ। और शांतनु?
उसके लिए अपने हिस्से के पल काफ़ी नहीं। उसका बस चले तो
वह उन पलों को हमारी ख़ातिर जी ले जिन्हें हम पूरी तरह
नहीं जी पाते।''
बड़ी
किताबी भाषा बोलता है मनु! लेकिन टैक्स्ट बुक की नहीं,
जिसे ध्यान से पढ़ कर इम्तहान में अच्छे नंबरों से पास
होने का आश्वासन मिल जाए। ज़िंदगी मनु के लिए शाश्वत
साहित्य की भाषा बोल कर चलती है। न जाने कब कौन-सा
पुराना किरदार सजीव होकर किसी निपट नई परिस्थिति से
उबरने के लिए कोई जाना पहिचाना फ़िकरा बोल दे। किसे पता
कौन-सी अनेकों बार पढ़ी हुई कहानी किसी मुकाम पर पहुँच
कर अचानक पूछ बैठे- मेरा कोई और अंत नहीं हो सकता क्या?
फ्रेंच और जापानी भाषाओं की चलती फिरती जानकारी है उसे।
हिंदी-उर्दू तो अच्छी-ख़ासी बोल-समझ लेता है। उसकी बृहद
डिक्शनरी में विरोधाभासी शब्दों का स्रोत कई-कई भाषाओं
से जुड़ी किवदंतिया, कहानियाँ और कहावते हैं। आदर-अनादर,
उचित-अनुचित, प्राप्य-अप्राप्य, शिष्टता-धृष्टता जैसे कई
बुकमार्क उसकी ज़िंदगी के पोर्टफ़ोलियो में ऐसे बार-बार
पलटाए-सरके पन्नों का सारांश हैं जिनको एक बार सरसरी
नज़र से फिर देखे बिना वह किसी अहं नतीजे पर पहुँचना
पसंद नहीं करता। समय की पाबंदी हो तो वह अपनें दिन लंबे
और रातें छोटी कर लेता है।
बचपन
से लड़कपन और फिर यौवन तक पहुँचने में मनु ने कैथरीन,
क्रिस्टीन, कॉरेन, कैवला और कविता के साथ एक के बाद एक
अपना संपर्क पूरी इमानदारी से निबाह दिया। फिर जब एकाध
बरस वो बिना किसी विशेष संगिनी के दिखाई दिया तो शांतनु
ने मुझसे पूछा,
''आपको क्या लगता है मौम? हमें मनु को याद दिला देना
चाहिए कि इंग्लिश के अल्फाबैट में 'के' के बाद भी कुछ
अक्षर आते हैं?''
मैंने
ऐसी जोखम वाली सलाह बिना माँगे देना मुनासिब नहीं समझा।
हाँ, अपने संबंधी-परिचित दायरे के कुछ ख़ास लोगों से मिल
लेने के लिए मनु से पूछा। वह सहजता से राज़ी हो गया।
कुछेक से मिला भी, हम वहाँ मौजूद नहीं होते थे। कभी यहाँ
न्यूयार्क में, कभी नई दिल्ली में। मिलने के बाद
बदस्तूर, बा-अदब एक ही बात कह देता मुझसे।
''बहुत ही भले लोग हैं। बड़ी अच्छी लड़की है। मैंने उनसे
कहा है कि कभी इधर आना हो तो हम सबसे ज़रूर मिलें।''
भारतीय विदेश सेवा की एक पुरानी परिचिता का फ़ोन आया एक
बार।
''तुम्हारे बेटे तो अब तक बड़े हो गए होंगे। आजकल मैं
न्यूयार्क में हूँ। मेरे एक कौलिग की बेटी से मिलवाना
चाहोगी?''
शांतनु
इतवार के दिन हाय-हैलो करने भागते-दौड़ते घर आया हुआ था।
मैंने फ़ोन रखकर उससे पूछा,
''मनु से पूछ लो मौम!'' उसने लापरवाही से सामने रखे
समोसों की प्लेट से नज़र हटाए बिना कहा।
''आई ऐम सीइंग समवन। मैं किसी को डेट कर रहा हूँ।''
मुझे
बड़ा इत्मीमान हुआ। ऑस्ट्रेलिया की भूरे बालों और नीली
आँखों वाली रेचल! चीनी गुड़िया जैसी बुतनी! इंदिरा गांधी
के नाम से प्रभावित पेरू देश के नागरिक और अमरीका निवासी
दंपत्ति की सजग, सुह्रद बेटी इंदिरा! केटल वासी युवा
माँ-बाप की सुडौल, बड़ी-बड़ी हँसती आँखों वाली प्रशांति!
सभी शांतनु के गिरोह में एक साथ घर भी आई हैं, स्कूल और
बाहर भी मिली है।
मैंने
एक ही साँस में सबके नाम गिना कर पूछा,
''कौन है? मैं जानती हूँ न!''
''हाँ, बिल्कुल जानती हैं आप! लेकिन जिनके नाम आप ले
रही हैं, वो मेरी दोस्त हैं।''
''तो फिर?''
''लीना नाम है उसका। वो भी एकाध बार घर आ चुकी है।
कार्नेगी मैलन में साथ पढ़ते थे हम। वह मैडिसिन में चला
गई। अब रैसिडेंसी पूरी कर रही है, यहाँ न्यू जर्सी में
है।''
''तब तो लीना भी तुम्हारी पुरानी दोस्त है!''
''नॉट एक्जैक्टली। हद तक सही है। कॉलेज में उसके और मेरे
दोस्तों के दायरे अलग थे। वह जब यहाँ न्यू जर्सी में
अपने माँ-बाप के साथ रह कर मैडिकल कर रही थी, तो हम
दोनों की दोस्ती हुई। अब कुछ महीनों से वी आर डेटिंग।''
स्वभाव
से ज़िद्दी और आदतन तुरंत निबटान करने वाला शांतनु एक और
वयस्क निर्णय लेने को तत्पर है, यह तो साफ़ दिखाई दे रहा
था। लेकिन मुझे सिर्फ़ सूचना दे रहा है या मेरी सलाह पूछ
रहा है?
''मौम, मैं चाहता हूँ कि पापा और आप आने वाले कुछ हफ्तों
में लीना से कैजुअल डिनर पर मिलें। मैनहैटन में किसी शाम
सहज हो कर रात का खाना साथ लें।''
कुछ
गिने-चुने अल्फाज़ में शांतनु नें ढेर-सी जानकारी दे दी!
वैसे छोटे-मोटे वाक्यात के चटपटे किस्से बना कर कहना
उसका तकिया-क़लाम है, वह केवल इंग्लिश ही बोलता है लेकिन
उसके शब्दों का चुनाव भी उसी की तरह जीवंत और गतिशील
होता है। उसके सिर में दर्द नहीं होता, भारी कदमों की
ठपाठप गूँजती है, नए स्नीकरज़ उसके लिए ढीले या कसे नहीं
होते, इसलिए पसंद नहीं आते कि जब वह दौड़ना चाहे तो जूते
सिर्फ़ चलते भर हैं। चलते-फिरते जोखम से भिड़ना उसका
खिलवाड़ है। स्कूल में किसी बच्चे से झड़प होने पर बाई
आँख में महीन बाल जैसा फ्रैक्चर लेकर आदमकद ताबूत जैसे
स्कैनर में बैठने वाला था। बिना पट्टी बँधी आँख को पूरा
खोल कर बोला,
''हे मॉम! दिस लुक्स लाइक स्पेस क्राफ्ट। यह तो बिना
पाइलट के उड़ने वाला स्पेसक्राफ्ट है, वाओ!''
दस फुट
चौड़े-लंबे कमरे में, दो और रूम-मेटस के साथ कॉलेज के
हॉस्टल में स्केटिंग करते हुए समूचा उलट कर दाईं बाँह
प्लस्तर से पूरी बँधवा कर छुट्टियों में घर आया तो एक
हाथ से ड्राइविंग पर निकल गया। लौटा तो बड़ा खुश।
''बहुत भीड़ थी सिनेमा घर के आगे। मैंने आराम से गाड़ी
को हैंडिकैप्ड पार्किंग में खड़े कर दिया।''
घर में ऑफ़िस के लोगों की पार्टी के दौरान दरवाज़ा खोला
तो सामने खड़ा पाया।
''डोंट
नो हाउ टू पुट इट मौम! बताना यह है कि पीछे पुलिस की
गाड़ी लगी है। क्वीन्ज़ बुलेवार्ड पर गिरी हुई एक
ट्रैफ़िक लाइट को खंभे समेत उठा कर मेरे दोस्त और मैं
सड़क के किनारे पर रख रहे थे कि वह जल पड़ी। पुलिस का
हार्न सुनते ही वह सब भाग कर अपनी-अपनी अपार्टमेंट
बिल्डिंग में घुस गए, मैं पुलिस की गाड़ी में बैठ कर ही
घर तक आया हूँ।''
युनाइटेड नेशन्स के साथ दो साल का कांट्रैक्ट मिलने पर
जब मैं परिवार सहित नई दिल्ली से न्युयार्क आई, तो
शांतनु चार बरस का था। फौरस्ट हिल्ल के छोटे-छोटे प्यूटर
घरों की पंक्तियों में हमने जो घर किराए पर लिया, व
क्वीनज़ बुलेवार्ड से ख़ास दूर नहीं था। न ही दूर-दराज
तक उन घरों में हमें कोई हिंदोस्तानी परिवार दिखाई दिया।
हाँ, हमारे आस-पास के इलाकों में यहूदी, सीख और रूसी
परिवारों के बच्चों का जमघट था जो अंग्रेज़ी ही बोलता
था। हमने भी घर में शांतनु के साथ अंग्रेज़ी में ही
बोलना शुरी कर दिया। जल्दी ही शांतनु ने अपनी अच्छी
ख़ासी धमा चौकड़ी बना ली। डिपार्टमेंट स्टोर या ग्रोसरी
की दुकान पर अब उसकी बोली अंग्रेज़ी समझने में किसी को
कोई दिक्कत नहीं होती थी। हमारा हास्पिटल को 'हौस्पिटल'
और स्कैड्यूल को 'श्यैड्यूल' कहना उनको अजीब लगता था।
जमैका एस्टेट में युनाइटेड नेशन्ज़ इंटरनेशनल स्कूल में
पढ़ते मनु और शांतनु के प्रशिक्षण का माध्यम अंग्रेज़ी
ज़रूर था, लेकिन करिकुलम और माहौल अंतर्राष्ट्रीयता की
प्रतिछाया थी। हर मुल्क के बच्चे, हर संस्कृति को
स्वीकारने के अवसर। कभी ग्यारह बरस का मनु युनानी चोगे
में स्कूल की स्टेज पर दार्शनिक सोफ़ोकलाज का फलसफ़ा
बिना नोटस के पढ़ता दिखाई देता। कभी छः बरस का शांतनु
औपचारिक थ्री पीस सूट पहन कर पैरेंट्स डे पर आए हुए अपने
राष्ट्रीय लिबासों को पहने अतिथियों का स्वागत-समागत
करता नज़र आता।
युनाइटेड नेशन्स के साथ मेरे कांट्रेक्ट की मियाद जब
ख़त्म होने को आई तो मैं वापस नई दिल्ली लौट जाना चाहती
थी, इंस्टीट्यूट फॉर डिफेन्स स्टडीज़ में अपनी पुरानी
पोज़ीशन पर। छुट्टी लेकर आई थी।
''मैं तो वहाँ वसंत-विहार के माडर्न-स्कूल में भी खुश था
ममा। और यहाँ यू.एन. स्कूल भी मुझे अच्छा लगता है।''
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