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रचना प्रसंग

अंतरजाल पर लेखन

 

ए भाई ज़रा देख के लिखो
--पूर्णिमा वर्मन

किस विषय पर लिखा जाए-
किस विषय पर लिखा जाए और क्या लिखा जाए यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। कुछ विषय ऐसे हैं जिन पर लगभग हर पत्रिका में लेख, कहानी, कविताएँ प्रकाशित होते ही हैं, जैसे- प्रमुख उत्सव, दिन और मौसम या फिर कोई विशिष्ट समाचार।

ताज़ी ख़बरों पर आधारित व्यंग्य और कहानियाँ भी संपादकों को पसंद आते हैं जैसे इस अंक का व्यंग्य आप स्वर्ण पदक क्यों लाए। जाल-पत्रिकाओं के विषय में यह ध्यान में रखना चाहिए के वे अंतर्राष्ट्रीय होती हैं। उनमें अंतर्राष्ट्रीय महत्व के विषय और समस्याओं पर अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि रखते हुए लिखना प्रकाशित होने में काफी सहायक हो सकता है। उदाहरण के लिए कहानी- दादी का ख़ज़ाना

अगर व्यंग्य लिखा जाए और उसका विषय भारत की सरकार, पुलिस, व्यवस्था या व्यक्ति हो तो उसका प्रकाशन मुश्किल हो सकता है। लेकिन कोई अंतर्राष्ट्रीय समाचार इसका विषय हो और व्यंग्य की लंबाई पत्रिका द्वारा निश्चित शब्द संख्या में आए तो उसके प्रकाशित होने की संभावना बढ़ जाती है।

प्रमुख विषय और उनका पालन

प्रकृति, पर्यावरण, चिकित्सा, रंगमंच, संस्कृति, प्रसिद्ध व्यक्तियों की जीवनियाँ, प्रसिद्ध शहरों के इतिहास, ललित निबंध, प्रसिद्ध मेले, उत्सव, आविष्कार, तकनीक, प्रौद्योगिकी, यात्रा-विवरण जो व्यक्तिगत बातों से भरे हुए न हों बल्कि सूचनात्मक हों और यात्रा-स्थल का भूगोल, इतिहास आदि प्रमाणिक रूप से बताते हों, कला, शिल्प, बागबानी, स्वास्थ्य, सौंदर्य, और स्थानीय इतिहास कुछ ऐसे विषय हैं जो हर पत्रिका के संपादक को पसंद होते हैं। पर इसका मतलब यह नहीं कि कविताओं की पत्रिका के संपादक को यात्रा विवरण प्रकाशित करना पसंद होगा।

इसी प्रकार दैनिक उपयोग की वस्तुओं जैसे कैमरा, साइकिल, हवाई जहाज़, दर्पण इत्यादि से संबंधित जानकारी को रोचक लेख का आकार दिया जा सकता है। घरेलू जीवन से संबंधित लेख जैसे व्यस्त जीवन में अपनी देखभाल कैसे करें, सुखी कैसे रहें, मौसम के नादानियों से अपनी रक्षा कैसे करें, घर और बगीचे की देखभाल, विशेष पर्वों की तैयारियों से संबंधित लेखों की माँग भी काफ़ी रहती है पर ये सामान्य विषय हैं इनको लिखते समय ध्यान रखना चाहिए कि ऐसा खास क्या लिखा जाए जो लोगों के काम का हो और जिसको पढ़ने में लोगों की रुचि हो।

जिस भी विषय में लिखें उसकी पहले ठीक से जानकारी इकट्ठी कर लें। अपने विचारों को आकार दें। रुपरेखा बनाएँ, विस्तार दें, शब्द सीमा का ध्यान रखते हुए संपादन करें और फिर अंतिम स्पर्श देते हुए लेख को पूरा करें।

व्यक्तिगत योग्यता को प्रदर्शित करें

हो सकता है कि आप किसी कार शोरूम के सेल्समैन हों और आपको बहुत सी कारों को विषय में विस्तृत जानकारी हो तो आप कारों से संबंधित कोई लेख-माला अधिकार के साथ लिख सकते हैं। इस आशय का एक पत्र संपादक के पास लेख-माला की रूपरेखा बनाते हुए भेज दें। हो सकता है आपकी जानकारी सिर्फ एक ब्रांड के विषय में हो और संपादक आपसे ६ ब्रांडों के विषय में लेख-माला लिखने को कहे तो आप कम से कम ४ ब्रांडों के विषय में कोशिश कर के लेख ज़रूर लिखें आप देखेंगे कि ४ ब्रांडों की जानकारी इकट्ठा करते करते आप ८ के विषय में लेख लिखने योग्य हो गए हैं।

हो सकता है आप कपड़ों के व्यापारी हों और इस विषय में कोई रोचक लेख लिख सकते हों जैसे भारत के विभिन्न प्रदेशों के हथकरघा वस्त्रों पर, हस्तशिल्प पर, लोक कला पर या आपके काम से घनिष्ठ रूप से जुड़े किसी भी विषय पर। इन लेखों को लिखते समय व्यक्तिगत रुचि, पक्ष या आग्रह को दूर रखें। हर चीज़ की विशेषता बताएँ कमियाँ बताएँ विभिन्न पहलुओं पर ध्यान दें और पाठक तो अपनी रुचि, पक्ष या आग्रह अपने आप निश्चित करने का अवसर दें।

मेहनत से डरें नहीं एक लेख को लिखने में जो तैयारी की जाती है अक्सर उसका उपयोग दूसरे बहुत से लेखों में हो जाता है। इसलिए मेहनत व्यर्थ नहीं जाती। कभी कभी एक लेख के लिए जुटाई गई सामग्री से किसी नए लेख का अंकुर जन्म लेता है तो कभी यह जानकारी दूसरे लेखों के महत्वपूर्ण अनुच्छेदों का आकार लेती है। इसलिए एक लेख में ज्यादा से ज्यादा जितना श्रम हो सके ज़रूर डालें।

संरचना पर रखें ध्यान

लेख, कहानी या व्यंग्य का आरंभ बहुत महत्वपूर्ण है। पहला ही वाक्य ऐसा हो जो पाठक को अपनी ओर खींच ले। उसके बाद विषय का विस्तार हो। वैज्ञानिक या तकनीकी लेखों की शुरुआत कहानी से न हो। सीधे मुख्य बिन्दु पर आएँ और सरल भाषा में लेख को विस्तार दें। लेख की लंबाई १००० -१२०० शब्दों तक रखें और निर्देशों को स्पष्ट शब्दों में लिखें। किसी भी लेख की भूमिका या प्रस्तावना ५०-६० शब्दों से अधिक न हो। हर अनुच्छेद को शीर्षक देने की आवश्यकता नहीं है पर ''एक अनुच्छेद एक विषय'' इस नियम का पालन करें। लेख का अंत भी महत्वपूर्ण है इसको या तो निष्कर्ष के रुप में दिया जा सकता है, या कोई प्रश्न छोड़ दिया जा सकता है, या किसी उक्ति का सहारा लिया जा सकता है, या अपनी कुछ विशेष छाप छोड़ी जा सकती है, पर याद रखना चाहिए कि अंत का प्रभाव पाठक पर अंत तक रहता है इसलिए इस पर विशेष ध्यान देना ज़रूरी है। जिस पत्रिका के लिए लिख रहे हैं उसकी भाषा शैली और शब्द संख्या का ध्यान रखें। समय का विशेष ध्यान रखें। गर्मी के मौसम में सर्दी की कहानी और होली के अवसर पर दिवाली की कहानी शायद ही कोई संपादक प्रकाशित करेगा।

ज़रा देख के लिखें

अक्सर हम किसी भीतरी या बाहरी उत्तेजना के वशीभूत हो कोई लेख कहानी और कविता लिख डालते हैं और फिर खोजने चलते हैं कि किसी अखबार या पत्रिका में यह प्रकाशित हो जाए। हम बार बार उसे पत्रिकाओं के संपादक के पास भेजते हैं और कोई उसे प्रकाशित नहीं करता। ऐसा क्यों होता है इसके विषय में विस्तृत चर्चा छुटकारा रद्दी की टोकरी से और इससे कैसे बचा जाए इसके विषय में चर्चा गलती आख़िर है कहाँ लेख में की गई है। इसलिए ए भाई, ज़रा देख के लिखो, पहले देखो फिर लिखो, फिर देखो और उसके बाद संपादक के पास भेजो। इसका मतलब यह नहीं कि भीतर की आवाज़ का कोई महत्व नहीं। उसको रचनात्मक विस्तार मिले ही नहीं। ज़रूर महत्व है और उसको आकार मिलना ही चाहिए पर वही लेखन है और संपादक को उसे प्रकाशित करना ही चाहिए यह विचार रखना भूल है। जिस समय उस रचना को महत्व मिलेगा उस समय का इंतज़ार करते हुए कुंठित होते रहना लेखक के व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे एक निश्चित रास्ते पर चलते हुए निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। अंतरात्मा की आवाज़ को आकार देते रहने का काम साथ साथ जारी रहना चाहिए। एक दिन ये रचनाएँ निरंतर लेखन के अनुभव से निखरकर इस रुप में पहुँच जाएगी कि पत्रिकाएँ खुशी से इन्हें प्रकाशित करेंगी। हर चीज़ का एक समय होता है और उस समय का इंतज़ार करने का धैर्य बनाए रखना ज़रूरी है।

अंत में-
हम यह सोचते हैं कि हमने जो रचना भेजी है संपादक उसे ध्यान से पढ़े पर यह नहीं सोचते कि संपादक भी यह चाहता है कि उसने जो कुछ लेखक के लिए लिखकर रखा है वह लेखक ध्यान से पढ़े। इसलिए अंतरजाल पर स्थित पत्रिकाओं में सबसे पहले वह पन्ना ढूँढने की कोशिश करें जहाँ लेखकों के लिए निर्देश लिखे गए हैं। निर्देशों को ध्यान से पढ़ें और उनका पालन करते हुए रचना भेजें।

१८ अगस्त २००८

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