की इच्छा नहीं हैं ऐसा
सोचने वालों की वेब से बहुत जल्दी छुट्टी होने वाली
है। इसलिए कंप्यूटर पुराना है तो उसे अपडेट कराना और
यूनिकोड में टंकण का अभ्यास वेब लेखन की पहली ज़रूरत
है। अगर लेखक या पत्रकार बनना है और हिंदी में काम
करना है तो छोटे मोटे टाइपिंग उपकरण भूल कर सीधे आई एम
ई इंडिक इंस्टाल करना और तेज़ टाइपिंग के लिए
इंस्क्रिप्ट की-बोर्ड पर अभ्यास शुरू कर देना ही सही
रास्ता है क्यों कि इसी कुंजीपटल पर सबसे तेज़ी से
हिंदी टाइप की जा सकती है।
विशेष विवरण के लिए यह पृष्ठ देखें। इंडिक आई.एम.ई.
[Indic IME 1
(v5.0)]
डाउनलोड के
लिए यह पृष्ठ देखें।
एक ईमेल लिखने में कितना समय
लगता है?
ज़्यादा से ज़्यादा पाँच मिनट।
पर जब एक रचना भेजनी होती है तो इसमें कितना समय लगता है।
रचना को टाइप करना, फ़ाइल को सहेजना, पत्र लिखना और पत्र
के साथ ध्यान से फ़ाइल संलग्न करना सब कुछ मिलाकर एक घंटे
तक का समय लग सकता है। इस सबके बाद भी अगर आपकी रचना
संपादक तक न पहुँची, या पहुँची भी तो संपादक के कंप्यूटर
में हटाएँ के तीर से कचरे में चली गई तो सारी मेहनत पर
पानी फिर जाता है। ईमेल कचरे में न जाए इसके लिए इन
बातों पर ध्यान रखें।
आपका पता
मेल बाक्स में सबसे पहले संपादक को दिखता है
आपका पता। संपादक का पहला काम फ़ालतू ई-मेलों को हटाने का
होता है। आपने ईमेल पते की संरचना पर
ध्यान दें- आपका ईमेल का पता क्या है?
अगर यह
sweetsweetsweety@hotmail.com
या
happinesshome@yahoo.com
या
rockydavid@rediffmail.com
जैसा है तो इसको तुरंत बदल दे। क्यों कि संपादकों
की आम राय है कि ऐसे पते हिंदी लेखकों के नहीं होते
और वे ऐसे पतों वाले ईमेल को बिना पढ़े ही हटा
देते हैं। हो सकता है कि बहुत से लेखक, संपादकों की इस
आम राय को एक घटिया आदत का नाम दें लेकिन इससे संपादकों
के विचार में जल्दी से कोई खास परिवर्तन नहीं आने वाला
है इसलिए अपना ईमेल पता बनाते समय सचेत रहें।
ईमेल का विषय
फालतू पतों को हटाने के बाद संपादक आपके ई-मेलों के विषय
पर ध्यान देते हैं। जिन ई-मेलों के विषय सबसे साफ़ होते
हैं उन्हें पहले विषयानुसार सहेज दिया जाता है और उसमें
से स्वीकृत या अस्वीकृत के लिए रचनाएँ पढ़ने का काम शुरू
हो जाता है। संपादक को समय मिला तो अस्पष्ट विषयों वाली
ई-मेलों को पढ़ा जाता है अन्यथा वहाँ ढेर लगता रहता है।
कभी कभी यह ढेर इतना बड़ा हो जाता है कि पुरानी रचनाएँ
तीन महीने (या जैसा कंप्यूटर में सेट हो) अपने आप मिटना भी शुरू हो जाती हैं। आमतौर पर इसमें से संपादक
अपने पुराने लेखकों को बचाने की पहले कोशिश करते हैं पर
नया लेखक तो कचरे में चला ही जाता है। इसलिए ईमेल का
विषय स्पष्ट लिखें। आखिर स्पष्ट का मतलब क्या है?
विषय को स्पष्ट रूप से इस प्रकार लिखा जा सकता
है-
इस प्रकार के स्पष्ट
विषयों वाले ईमेल पर संपादक मंडल जल्दी काम शुरू कर पाता
है, इसमें कोई दो राय नहीं।
आवरण
पत्र
ईमेल पते और विषय के बाद बारी आती है आवरण पत्र की। आवरण
पत्र कैसा लिखा गया है। अगर आप सोचते हैं कि आवरण पत्र
अंग्रेज़ी में लिखने से संपादक पर बड़ा प्रभाव डाला जा
सकता है तो यह बहुत बड़ी गलती है। अंग्रेज़ी में लिखे गए
पत्र का पहला प्रभाव यही पड़ता है कि जो व्यक्ति एक पत्र
तक हिन्दी में नहीं लिख सकता वह लेख क्या लिखेगा। इसलिए
अच्छी और स्पष्ट हिंदी में आवरण पत्र लिखना ज़रूर सीखें।
एक अच्छा आवरण पत्र इस प्रकार हो सकता है।
महोदय,
कहानी शीर्षक ‘सुबह का भूला’ संलग्न है। यह मेरी स्वरचित
व अप्रकाशित रचना है। आशा है आपकी पत्रिका के अनुकूल
होगी। मेरा परिचय कहानी के अंत में टंकित किया गया है।
एक फोटो भी संलग्न है।
उत्तर की प्रतीक्षा में,
कुमार यादव |
यहाँ जब तक आप संपादक को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते, महोदय या महोदया से पहले आदरणीय
इत्यादि लिखने की आवश्यकता नहीं होती है। हाँ आपका डाक
का पता और फोन नम्बर नाम के नीचे दिए जा सकते हैं। अपने
नाम से पहले "उत्तर की प्रतीक्षा में" के स्थान पर "सादर" या
"सधन्यवाद" लिखा जा सकता है। ऊपर की ओर दिनांक और नीचे
संलग्न क्या किया गया है वह लिखना ठीक नहीं, क्यों कि
ईमेल अपने आप यह सब प्रदर्शित कर देता है।
आवरण पत्र में विराम और अर्धविराम के चिह्नों को ध्यान
से देखें, लिखें और ठीक से निरीक्षण करें। संपादक को यह
संदेश नहीं मिलना चाहिए कि- आप चार पंक्तियों के पत्र
में विराम और अर्धविराम का ठीक से प्रयोग नहीं कर सकते
तो रचना में क्या करेंगे? आवरण पत्र आपके लेखन का चेहरा
है। इसको सुंदर बनाकर रखें। कहाँ कहाँ कितनी पंक्तियाँ
छोड़ी गई हैं इसका समुचित ध्यान रखना ज़रूरी है। अगर आप सोचते हैं कि यह सब ठीक करना संपादक का काम है तो
यह एक बड़ी भूल है। आजकल हज़ारों लोग पत्रकारिता के
पाठ्यक्रम पूरे कर के लेखन के क्षेत्र में आते हैं और इन
सब बातों को अच्छी तरह जानते हैं उनकी तुलना में कम न
पड़ें, अपनी प्रतिष्ठा बना कर रखें।
पिछले दो सालों में वेब पर हिंदी ने पर्याप्त विकास किया
है फिर भी अकसर ईमेल में लिखा गया पाठ संपादक तक पहुँचते
पहुँचते विकृत हो जाता है। कभी प्रश्नवाचक चिह्नों के
रूप में दिखाई देता है तो कभी किसी रूप में। इससे बचने
के लिए संलग्न रचना वाली फ़ाइल के पहले पृष्ठ पर आवरण
पत्र की एक प्रतिलिपि ज़रूर चिपका दें।
परिचय
लगभग हर पत्रिका लेखकों के परिचय प्रकाशित करती है।
पत्रिका में पहले से दिए गए परिचयों को ध्यान से पढ़ें
और उसी के अनुसार परिचय तैयार करें। ध्यान रखें परिचय
बोयोडेटा या रिज्यूमे नहीं है। इसमें परिवार के सदस्यों
के नाम, पते इत्यादि की आवश्यकता नहीं है। आपके काम के
विस्तृत ब्योरे की भी कोई आवश्यकता नहीं है। अत्यंत
भावुक हो कर कवितामय परिचय बनाने की भी आवश्यकता नहीं
है। केवल जन्मतिथि, शिक्षा, कार्यक्षेत्र और अभिरुचियों
का विवरण ही पर्याप्त है। हाँ प्रकाशित रचनाओं और
साहित्य व भाषा के क्षेत्र में आपकी उपलब्धियों के विषय
में संपादक और पाठकों की रुचि होती है अतः इस विषय में
संक्षेप में लिखना अच्छा है।
एक बार पुनः ध्यान दें अपने कार्यालय के लिए बनाया गया
अंग्रेज़ी रिज्यूमे कृपया वेब संपादक को न भेजें। अधिकतर
हिंदी वेब संपादक आधे से ज़्यादा काम अपने हाथों से करते
हैं इसलिए चार पन्नों के अंग्रेज़ी परिचय के हिंदी अनुवाद
का समय किसी के पास नहीं होता। परिचय को कचरे
के फ़ोल्डर से बचाना है तो इसे हिंदी में लिखें और
संक्षिप्त रखें।
संलग्नक
संलग्न की जानेवाली फ़ाइल का नाम एक अक्षरवाला ही रखें। मान
लीजिए कहानी का नाम है खोया हुआ आदमी तो फ़ाइल का
नाम 'खोया हुआ आदमी' न रखें। इसका नाम या तो कहानी रखें या
आदमी रखें या शब्द और अंक के संयोजन वाला कोई नाम रखें
जैसे कहानी003.doc।
भेजें का बटन छूने से पहले ध्यान दें- संलग्नक संलग्न
हुआ है या नहीं। क्या जितनी चीज़ें पत्र में लिखी गई हैं
व सब संलग्न हो गई हैं या कोई एक रह गई है। एक बार सब-कुछ
ठीक से जाँच लेने के बाद ही ईमेल को भेजें।
पाने वाले का पता
भेजने से पहले पते पर ध्यान दें। एक रचना आप कितने
संपादकों को भेज रहे हैं?
शायद तीन चार को... तो ठहरिए ईमेल यह
प्रदर्शित करता है कि यह मेल किस-किस को भेजा गया है।
अगर संपादक यह देखता है कि रचना को बहुत से संपादकों को
भेजा गया है तो वह उसे अपने पत्र या पत्रिका के लिए नहीं
चुनता। आखिर हर संपादक यह चाहता है कि उसकी पत्रिका में
कुछ विशेष हो जो दूसरी पत्रिकाओं में ना हो और उसके लिए
वह दिन-रात मेहनत भी करता है तो वह ऐसी रचना क्यों
प्रकाशित करेगा जो हर पत्रिका में प्रकाशित हो। फल यह
होता है कि एक अच्छी भली रचना को हर संपादक छोड़ देता
है।
अंत
में-
अगर आपने लेखन को व्यवसाय या अभिरुचि के रूप में चुना है
तो उसका गर्व महसूस करें और पढ़ने वाले को भी महसूस
कराएँ। अगर हिंदी में एम ए नहीं किया तो कोई बुरी बात
नहीं, पर हिंदी को सड़क पर पड़ी मुफ़्त की चवन्नी ना
समझें। स्वाभाविक भाषा के नाम पर जो मन में आया लिख दिया
ऐसा नियम बनाना अपने लेखक को धोखा देना है। निरंतर
अभ्यास से अपनी भाषा को सोने के तमगे की तरह चमकाएँ और
शान से सीने पर धारण करें। हिंदी को अपनी अभिव्यक्ति का
माध्यम बनाया है तो उसका सम्मान करें। एक सम्मानित लेखक
बनने का यह सबसे पहला नियम है। जो खुद अपने काम का
सम्मान नहीं करते उनका सम्मान दुनिया में कोई नहीं कर
सकता है। साथ ही विनम्रता बनाएँ रखें क्यों कि विनम्रता
के बिना कुछ भी सीखा नहीं जा सकता। |