रचनाएँ
अस्वीकृत क्यों होती हैं--
रचना के अस्वीकृत होने के दो प्रमुख कारण हो सकते
हैं-
1- भेजी गई रचना का स्तर ठीक नहीं है।
2- इस प्रकार की रचना की संपादक को इस समय आवश्यकता नहीं
है।
जिस लेखक की 20-25 रचनाएँ अलग
अलग पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं उसको इतना तो
मालूम हो ही जाता है कि किसी रचना के लिए सामान्य रूप से
अच्छा स्तर क्या है। ऐसे लेखक अक्सर यह पाते हैं कि एक
पत्रिका में उनकी रचनाएँ निरंतर प्रकाशित हो रही हैं पर
दूसरी में या तो प्रवेश नहीं पा सकी हैं या ज़्यादातर
अस्वीकृत होती रहती हैं। वे यह भी देखते हैं कि इस दूसरी
पत्रिका में यदाकदा मामूली रचनाएँ भी प्रकाशित हो जाती
हैं पर उनकी रचना प्रकाशित नहीं होती। अगर लेखक को महसूस
होता है कि यह दूसरी पत्रिका पहली पत्रिका से बेहतर है
पर यहाँ प्रवेश नहीं मिल पा रहा तो उसको ध्यान से उस
पत्रिका के स्तर की समीक्षा करना चाहिए।
पत्रिका का स्तर
किसी एक पत्रिका का
स्तर दूसरी से ऊँचा या नीचा नहीं होता। (व्यक्तिगत पसंद
के कारण लोग ऐसा कहते हैं) लेकिन हर पत्रिका का एक पाठक
वर्ग होता है जिसकी भावनाओं का ध्यान रखना संपादक के लिए
सबसे ज़रूरी होता है। हर पत्रिका के संपादक मंडल की एक
आचार संहिता भी होती है। यही उस पत्रिका का स्तर बनाती
है। लेखक को अपनी पैनी नज़र इस बात पर रखनी चाहिए कि इस
पत्रिका में किस समय क्या छप सकता है और क्या यहाँ
अस्वीकृत हो जाएगा। पत्रिका के स्तर को ठीक से समझने के लिए इन बिन्दुओं
पर ध्यान दें-
पत्रिका की भाषा
पत्रिका की भाषा क्या
है। क्या वह अंग्रेज़ी शब्दों के प्रयोग को प्रोत्साहन
देती है। क्या वह ग्रामीणांचल या स्थानीय शब्दों के
प्रयोग को जैसा का तैसा प्रकाशित कर देती है। अगर कभी इस
पत्रिका में आपकी रचना प्रकाशित हुई है तो ध्यान दें कि
संपादन में क्या क्या परिवर्तन कर दिए गए थे। क्या
अंग्रेज़ी और स्थानीय शब्दों के अनुवाद कर दिए गए थे।
क्या गाली गलौज या तीखे वाक्यों को निकाल दिया गया था।
क्या कोई वर्णन ऐसा था जो काट दिया गया था। यह सब आपको
पत्रिका की भाषा की जानकारी देंगे। क्या इस पत्रिका में
कठिन शब्दों का प्रयोग वर्जित है। हर पत्रिका अपने
लेखकों का सम्मान करती है पर उनको सम्मानित करने कि लिए
वह अपनी आचार संहिता से बाहर नहीं जाएगी। आखिर उसके
विचार, उसका उद्देश्य और उसके पाठक भी उसके लिए समान रूप
से आदरणीय हैं। इसलिए अलग अलग पत्रिकाओं की भाषा पर
ध्यान दें।
पत्रिका की शैली
हर पत्रिका की अलग-अलग
शैली को समझने के लिए उसके स्तंभों को ध्यान
से देखें और तीन बातों को जानने की कोशिश करें। मेरा लेख किस स्तंभ
के अंतर्गत प्रकाशित हो सकता है। पत्रिका में इस विशेष
स्तंभ के लिए शब्द सीमा क्या है और यह पत्रिका समाज के
किस वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। क्या लेख जिस स्तंभ
में प्रकाशित हो सकता लेख उस शब्द सीमा में है और उस
वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जिस वर्ग का प्रतिनिधित्व
वह पत्रिका करती है। उदाहरण के लिए अगर लेख का विषय
विज्ञान है लेकिन पत्रिका में विज्ञान का कोई स्तंभ ही
नहीं तो स्पष्ट है कि रचना अस्वीकृत ही होगी, भले ही वह
कितनी भी अच्छी क्यों न हो। इसी प्रकार अगर पत्रिका में
विज्ञान स्तंभ है पर लेख की शब्द सीमा 1000 है जबकि लेख
2500 शब्द का है तो लेख प्रकाशित नहीं होगा। अगर पत्रिका
प्रवासी भारतीयों के लिए है और इस लेख का विषय गाँव में
पानी का संरक्षण है तो लेख अस्वीकृत हो जाएगा। कुल मिला
कर यह कि शैली के लिए स्तंभ, आकार और पत्रिका की पहुँच
का ध्यान रखें।
पत्रिका की विषय वस्तु
हर पत्रिका किसी विशेष
उद्देश्य को लेकर बनाई जाती है और उसी के अनुसार उसकी
विषय वस्तु होती है। ध्यान दें कि यह फैशन पत्रिका है,
साहित्यिक पत्रिका है, समाचार पत्रिका है, घरेलू पत्रिका
है या कुछ और। हर प्रकार की पत्रिका के में हर प्रकार के
स्तंभ होते हैं पर उनका रुझान अलग अलग होता है। उदाहरण
के लिए एक समाचार पत्रिका में जो कहानियाँ प्रकाशित
होंगी उन कहानियों के विषय भी अधिकतर समसामयिक होंगे। जो
पारिवारिक पत्रिकाएँ होंगी उनकी कहानियों के विषय, भाषा
और शैली पारिवारिक होगी। साहित्यिक पत्रिकाएँ साहित्यिक
दृष्टि से उत्कृष्ट लेखों और साहित्यिक रचनाओं पर ध्यान देंगी। अतः पत्रिका
की विषय वस्तु को ठीक से समझकर उस पत्रिका के लिए लेख,
कहानी या कविता के विषय का चुनाव करें।
समसामयिकता
पत्रिका के लिए बहुत
ज़रूरी है उसका समसामयिक होना। हर संपादक अपनी पत्रिका
को समसामयिक बनाना पसंद करते हैं। मौसम, पर्व, विशेष
अवसरों और महापुरुषों की जयंती व पुण्य तिथियों पर विशेष
लेख कहानियाँ या रचनाएँ हर संपादक प्रकाशित करते हैं। नए
लेखकों को चाहिए कि इन अवसरों पर कुछ न कुछ नया और
रुचिकर लिखकर ज़रूर भेज दें। इन अवसरों पर भेजी गई
सामग्री के लिए प्रतियोगिता कम होती है और अगर किस्मत ने
साथ दिया तो कुछ कम अच्छी रचनाएँ भी प्रकाशित हो जाती
है। जिस पत्रिका के लिए लिखना चाहते हैं उसे नियमित रूप
से पढ़ें और उसमें क्या चल रहा है इसकी जानकारी रखें। हो
सकता है पत्रिका में कुछ विशेष सरगर्मी चल रही हो और आप
कुछ और वहाँ प्रकाशित करने के लिए भेज रहे हों तो ज़ाहिर
है वह अस्वीकृत हो जाएगा। गर्मी के दिनों में सर्दियों
की रचना, दीपावली के अवसर पर होली की रचना संपादक को
भेजी गई तो वह कितनी भी अच्छी क्यों न हो अस्वीकृत ही
होगी या अगले मौसम तक टल जाएगी।
कुछ और सुझाव
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सामान्य रूप से कोई
भी पत्रिका अपनी आचार संहिता प्रकाशित नहीं करती लेकिन
इस विषय में सामान्य जानकारी "लेखकों से",
"रचनाएँ
भेजें" या
"अक्सर पूछे जाने वाले
प्रश्न" नामक पृष्ठों पर होती हैं। इनको ध्यान से पढ़ें।
यह जानकारी लेखकों का बहुत सा श्रम और समय नष्ट होने
से बचा सकती है।
-
अगर आप किसी विषय के
विशेषज्ञ हैं तो पत्रिका को अपने संक्षिप्त परिचय के
साथ नमूने के तौर पर एक लेख भेज सकते हैं। हो सकता है
कि पत्रिका में आपकी रुचि का स्तंभ ना हो पर पत्रिका
उसको शुरू करने का इरादा कर ले।
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तीन बातों का खूब
ध्यान रखें-
1. लेखों में व्यक्त विचार पक्षपातपूर्ण नहीं होना चाहिए।
2. रचनाएँ व्यक्तिपरक नहीं होनी चाहिए।
3. तथ्य व आँकड़ों के प्रयोग (स्रोत सहित) से लेख की उपयोगिता और
प्रामाणिकता बढ़ती है।
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पहले निश्चित करें
कि आपकी रचना कहाँ प्रकाशित होनी है फिर लिखें। अगर
आपको लगता है कि इस तरह नहीं लिखा जा सकता तो लेखन में
सफलता का रास्ता बहुत लंबा हो सकता है।
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आलोचना पर विवाद न
करें ना ही निराश हों। आलोचना आपकी भलाई के लिए है।
शांत मन से सोचें कि ऐसा क्यों कहा गया और उसको कैसे
सुधारा जा सकता है। ज़रूरी नहीं कि हर आलोचना काम की
हो पर उस पर ध्यान देना ज़रूरी है।
और अंत में-
कोई भी संपादक इतना
बेवक़ूफ़ नहीं होता कि एक दो वर्तनी की ग़लतियों,
व्याकरण की भूलों या विराम चिह्नों के गलत प्रयोग के
कारण रचना को अस्वीकृत कर दे। बड़े से बड़े लेखक और
संपादक भी कहीं न कहीं कुछ न कुछ भूल या गलती कर सकते
हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि लेखक कुछ भी लिखने के
लिए स्वतंत्र है। अपनी ओर से पूरा प्रयत्न करना चाहिए कि
वर्तनी, व्याकरण और रचना में कोई भूल न हो। यह भाषा
के प्रति लेखक के सम्मान को व्यक्त करता है। जो लेखक
अपने शब्दकोश को निरंतर नहीं बढ़ाते, समय पड़ने पर
उनके पास शब्दों की कमी हो जाती है। भाषा लेखक की शक्ति
है इसलिए एक लेखक के लिए भाषा की शक्ति को पहचानना, उसका
सम्मान करना और उसका ठीक से प्रयोग करना बहुत ज़रूरी है। |