और क्या पता ग्रीन कार्ड मिलते
ही किसी दिन मंदिर को 'बाय-बाय' कर अब अपना स्वतंत्र काम शुरू
कर दें। बड़े-बड़े उद्यमी अपने घर से काम करने लगे हैं और अधिक
कमा रहे हैं तो यह क्यों नहीं करेंगे? एक कंप्यूटर ख़रीद लें
पंडित सोमदेव शास्त्री की तरह। शादी-ब्याह
के लिए शनिवार-रविवार के मुहूर्त निकाले, दिन में दो-दो
पाणिग्रहण संस्कार कराए, गर्मियाँ यहाँ, सर्दियों भारत में
अपने परिवार के साथ। काम अच्छा चल निकला तो बीवी बच्चों को भी
बुला लेंगे।
अमेरीकी पादरियों को देखो।
कभी-कभी तो पुलिसवाला भी उनका चालान नहीं करता। गिरजाघर में ही
उनके लिए रहने का साफ़-सुथरा अलग स्थान है। रहन-सहन,
बिजली-पानी, कपड़ों की सिलाई-धुलाई, स्वास्थ्य बीमा, हर चीज़
का खर्च वहन करती है चर्च। स्टाइपेंड अलग मिलता है। मान-सम्मान
अलग।
नमिता के मामले में पूजा-पाठ कराने से कुछ हासिल नहीं होगा।
भारत में होते तो...? सख्ती ही बरतनी पड़ेगी। कहना पड़ेगा कि
अगर धर्म बदला तो मेरी वसीयत से तुम्हारा नाम बेदखल।
एक दिन अपनी कंपनी के चार
कर्मचारियों को निकाल बाहर कर थके-मांदे घर लौटे, तो सोच रहे
थे कि अगर नमिता या शशि में से किसी ने भी धर्म-परिवर्तन की
बात छेड़ी तो वह उन्हें वसीयत से बेदखली का फरमान सुना देंगे।
लेकिन उनका सामना एक दूसरी ही स्थिति से हो गया।
कार गराज के दरवाज़े की तरफ़ से घर में दाखिल हुए तो नमिता चहक
कर उनके पास आई और बोली, ''पापा, 'पीस-कोर' के लिए मेरी अर्ज़ी
मंज़ूर हो गई। मैं हेटी जा रही हूँ तीन महीने के लिए।''
''कहाँ?''
''हेटी।''
भाटिया जी पीस कोर की
गतिविधियों से अवगत थे। हेटी के नाम से भी परिचित तो थे, लेकिन
ठीक-ठीक हेटी कहाँ है, वह नक्शे में एकदम बता नहीं सकते थे।
कैरेबियाई क्षेत्र में कहीं है इतना ही अनुमान था।
नमिता उन्हें बताती रही कि वह पहले सिर्फ़ तीन महीने के लिए
जाएगी, उस दौरान वहाँ एक परिवार के साथ रहेगी, फ्रेंच सीखेगी।
उसके बाद दो साल तक वहीं रह कर एक स्कूल में अंग्रेज़ी भी
पढ़ाएगी। मयामी से दो घंटे की फ्लाइट है। हेटी में काम करने का
उसे वेतन मिलेगा और उसका 'रेज़्यूमें' प्रभावशाली लगेगा।
खाना शुरू करने से पहले तीनों ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की।
भाटिया जी ने आधी आँखों से नमिता को देखा। उसने हाथ जोड़ रखे
थे। उसने आँखें खोलने से पहले अपने दायें हाथ की तर्जनी से
छाती पर क्रॉस का चिन्ह बनाया। बड़े दिन के अवसर पर घर में
'क्रिसमस ट्री' लगा लेने तक तो ठीक था, लेकिन इससे अधिक करने
की क्या ज़रूरत थी। ईसामसीह पहली कोई पैगम्बर नहीं, एक ऐसा
व्यक्ति जान पड़ा जिसने दोस्त बन कर दग़ा दी हो।
जो भी है इस समय ऐसा विषय उठाना उचित नहीं है।
''और। जिस परिवार के साथ रहोगी जानती हो कौन लोग हैं?''
पीस-कोर वाले ध्यान रखते हैं कि परिवार अच्छा हो, और हाँ जोज़फ
भी तो होगा।
भाटिया जी की वही बत्तख सरीखी आवाज़, ''व्हट व्हॉट?''
''पापा, कितनी बार आया तो है हमारे यहाँ, मेरे कॉलेज फ्रेंड्स
के साथ। मैं जाने से पहले आपको मिलवाऊँगी उससे।''
भाटिया जी नहीं जानना चाहते थे कि वह कौन है, फिर भी ज़ुबान ने
साथ नहीं दिया। पूछा, ''कौन है?''
शशि बोलीं, ''एक लड़का है...।''
''जोज़फ।'' नमिता ने कहा।
भाटिया जी का दिमाग ठनका। क्रिश्चियन।
''मेरे साथ कॉलेज में पढ़ता है। हेटी का है। उसके पिता
पोर्ट-ओ-प्रिंस के मेयर हैं।''
तो इसके दिमाग़ में ईसाई
बनाने का बीज देव ने नहीं, इस लड़के ने डाला है ताकि...।
भाटिया जी की अनुमान शक्ति नटिनी की तरह कुलांचे खाने लगी।
खाना खाने की रफ्तार भी तेज़ हो गई।
नमिता ने भाटिया जी को देखा। बोली, ''पापा, वह सिर्फ़ दोस्त
है। एक दोस्त।''
वसीयत की बात तो भाटिया जी भूल ही गए। रात को जब माँ-बेटी सो
गईं तो वह अपने ही घर में किसी चोर की तरह दबे पाँव, अपनी
स्टडी में गए और कंप्यूटर खोल कर हेटी के विषय में देर तक
अध्ययन करते रहे। फिर इस निर्णय पर पहुँचे कि जोज़फ अफ्रीकी-कैरेबियाई,
यानी अफ्रीकी मूल का कैरेबियाई, मतलब काला रोमन कैथोलिक है।
कैथोलिक, अफ़्रीकी-कैरेबियाई, और उस पर हेटी। डींग मार रहे हैं
बाप मेअर है, राजधानी पोर्ट-ओ-प्रिंस का मेअर। कौन-सा
न्यूयॉर्क सिटी का मेअर है! भाटिया जी इस विषय पर जितना सोचते
खुद को उतना ही हताश और हारे हुआ महसूस करते। वह एक सफल
बिज़नसमैंन। स्टॉक मार्केट के हर शेअर पर उनकी नज़र रही, 'डाओ
जोन्स', 'एस एण्ड पी', 'नैज़-डैक' के शेअर कब गिरेंगे कब
चढ़ेंगे, वह पहले से बता सकते रहे, लेकिन यहाँ मार खा गए।
उन्होंने क्यों नहीं देखा कि वैश्विकरण उनके अपने घर में भी
घुसा आ सकता है। बेशक, उन्होंने इतना तो सोचा कि अमेरिका को
अपनी सोशल सिक्योरिटी के ख़ज़ाने को भरपूर और भरोसेमंद रखने के
लिए विश्वभर से हर वर्ष एक करोड़ लोगों को आप्रवास देना होगा,
क्यों कि जो आएँगे, उनके वेतनों से सोशल सिक्योरिटी कटेगी तो,
सेवानिवृत लोगों को उनकी पेंशनों की शक्ल में मिलेगी। पर वह यह
क्यों नहीं सोच पाए कि जो प्रवासी आएँगे, उनमें हेटी, अल
सल्वाडोर, इथियोपिया, सोमालिया, दुनिया के हर कोने और धर्म के
प्रवासी भी होंगे, उनके बच्चे भी उन्हीं स्कूलों – कॉलेजों में
पढ़ेंगे जिनमें हमारे बच्चे जाते हैं। इकट्ठे पढ़ेंगे तो
दोस्तियाँ होंगी, दोस्तियाँ होंगी तो शादियाँ भी होंगी।वह
नमिता को देव से दूर रखने के उपाय करते रहे, क्या मालूम था कि
कोई जोज़फ उनके घर में इस रास्ते से भी चला आ सकता है।
जिस दिन नमिता हेटी जाने के
लिए वाशिंग्टन से मयामी की उड़ान ले रही थी, जोज़फ़ भी उसके
साथ था। भाटिया जी और शशि उसे हवाई अड्डे पर छोड़ने आए थे। शशि
अपनी बेटी को हिदायतें देती रहीं कि अपना ख़याल रखना। खाना
नियम से खाना, नियम से सोना, फोन करती रहना इत्यादि। भाटिया जी
जोज़फ़ को देखते रहे। वह उसके पास जा कर खड़े हुए और पाया कि
वह उनसे दो-चार इंच लम्बा ही है। अनुमान लगाया कि पाँच-सात तो
होगा ही। उसने लंदन-फ़ोग का कोट पहन रखा था। इकहरा शरीर, संत
स्वभाव का लगता था। वह उतना काला भी नहीं था जितना उन्होंने
सोचा था।
भाटिया जी उससे बातें करने
लगे। उसके खानदान के संबंध में सवाल करने लगे, मानों अपनी बेटी
के लिये उपयुक्त वर देख रहे हों। तुम्हारे फादर क्या करते हैं?
तुम कितने भाई-बहन हो? क्या वह तुमसे बड़े हैं या छोटे? घर में
कितनी सम्पत्ति है? धर्म के संबंध में तुम्हारी क्या राय है?
पीस कोर से लौटने के बाद तुम क्या करने की सोच रहे हो? अपना
काम करोगे या? हेटी में रहोगे या अमेरिका में?
जोज़फ उनके प्रश्नों के उत्तर देता रहा। थोड़ा उद्विग्न हो
हँसते हुए अपनी आँखे भी तेज़ी से घुमा रहा था।
भाटिया जी के सवाल ख़त्म ही नहीं हो रहे थे। शशि ने एकाध बार
टोका भी, फ्लाइट का टाइम हो रहा है।
भाटिया जी उसे समझा रहे थे, संस्कृति और धर्म दोनों मे बहुत
बारीक फ़र्क है। अमेरिका में रहते हुए हम हिंदू, मुसलमान, इसाई
बने रह सकते हैं, लेकिन संस्कृति तो हमारी अमेरिकन ही है...असल
बात तो वह है। अगली जेनरेशन तो...। और हेटी? अच्छी जगह है।
वहाँ के समुद्र के किनारे, और वहाँ के आम, वहाँ की कॉफी!
नमिता उनकी बातें सुन कर बहुत
बेचैन हो रही थी। उसने अपनी माँ को इशारे से कहा, ''पापा कैसी
बातें कर रहे हैं...इन्हें समझाओ। शशि ने, जो शांत स्वभाव की
थीं, भाटिया जी को देख कर पहली बार आँखें चमकायीं। भाटिया जी
पर कोई असर नहीं हुआ।
जब नहीं रहा गया, नमिता बोली, ''पापा, जोज़फ मेरा दोस्त है,
सिर्फ़ दोस्त।'' उसने दोस्त शब्द पर अधिक ज़ोर दिया। ''हम एक
ही चर्च में जाते हैं। यह मेरा भाई है, माई ब्रदर।''
भाटिया जी बोले, ''आई नो..आई नो। फिर उनकी आवाज़ गले के भीतर
ही डूब गई।
वह नमिता को अपने मुँहबोले भाई के साथ बोर्डिंग-ऐरिया के गेट
की तरफ़ जाते देखते रहे। शशि ने उनके कंधे पर हाथ रखा तो ऐसा
लगा कि दो बर्तन टकराये हों लेकिन आवाज़ न हुई हो। |