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पर्यावरण के संबन्ध में उसे इंडिया इंटरनेशनल सेण्टर में
वक्तव्य देना था।
हारवर्ड विश्वविद्यालय से
'पर्यावरण
प्रबन्धन
'
की उपाधि लेकर जब एक साल पहले वह स्वदेश लौटा,
सरकार के पर्यावरण विभाग ने उसकी सेवाएँ
लेने के लिए कई प्रस्ताव भेजे।
लेकिन स्वयं कुछ करने के उद्देश्य से उसने सरकारी प्रस्तावों
पर उदासीनता दिखाई।
वह जानता है कि ऐसी किसी संस्था से बँधने
से उसकी स्वतंत्रोन्मुख सोच और विकास बाधित होंगे।
वह स्वयं को अपने देश तक ही सीमित नहीं रखना चाहता,
बावजूद इसके कि वह अपना सर्वश्रेष्ठ देश के लिए देना चाहता है।
पर्किंग से गाड़ी निकालते समय पिता ने पूछा,
''अमि,
(उसका
पूरा नाम अमित है ) कब तक लौट आओगे?''
''दो
घण्टे का सेमीनार है बाबू जी।.... नौ तो बज ही जाएँगे।''
पिता चुप रहे,
लेकिन वह सोचे बिना नहीं रह सका,
'अवश्य
कोई बात है,
वर्ना बाबू जी उसके आने के विषय में कभी नहीं पूछते।'
गेट से पहले गाड़ी रोक वह उतरा और
'कोई
खास बात बाबू जी?''
पूछा।
''हाँ....आं.....''
बाबू जी मंद स्वर में बोले,
''मेरा
मित्र अमृत है न!..... उसकी बेटी की शादी है।...रोहिणी में....''
''सेमीनार
खत्म होते ही निकल आऊँगा।'' |