अमित
फिर फुटपाथ पर लेट गया।
भीड़ फुसफुसा रही थी
''अस्पताल
ले जाना चाहिए....''
''कैसा
दरिन्दा था! रुई की तरह धुन डाला.....''
''पुलिस
को फोन करना चाहिए।''
''पुलिस
के लफड़े में पड़ना ठीक नहीं।''
''वह
कोई गुण्डा था!''
''दिल्ली
में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।....''
''दिल्ली
गुण्डों।.......बाइकर्स के आंतक में जी रही है और पुलिस असहाय
है।''
''भाई
पुलिस वालों के वे साले जो लगते हैं।...हफ्ता पुजाते हैं।
असहाय-वसहाय कुछ नहीं है..... जिसने हफ्ता नहीं दिया.....
हवालात उसके लिए है।''
एक दूसरी आवाज थी।
''राम
सेवक....तुम्हें गाड़ी चलानी आती है न!
''
किसी ने अपने साथी से पूछा।
''आती
है।''
''फिर
हम दोनों इन्हें राममनोहर लोहिया अस्पताल ले चलते
हैं।...इन्हीं की गाड़ी में।...''
अमित सभी को सुन रहा था।
उसने आंखें खोलीं।
दो लोग उसके ऊपर झुके हुए थे।
दूसरे कुछ हटकर खड़े थे।
''बाबू।...हम
आपको अस्पताल पहुँचा देते हैं।''
अमित चुप रहा।
''हाँ,
आपकी ही गाड़ी से।....''
''धन्यवाद।''
अमित फुसफुसाकर बोला,
''आप
लोग कष्ट न करें।...मैं ठीक हूँ।''
रामसेवक और उसका साथी एक-दूसरे के चेहरे देखते कुछ देर खड़े रहे,
फिर बिड़ला मंदिर की ओर मुड़कर चले गए।
दूसरे ने पहले ही जाना प्रारंभ कर दिया था।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद अमित ने साहस बटोरा और उठ बैठा।
सिर अभी भी चकरा रहा था।
उसे चिन्ता हो रही थी उसकी प्रतीक्षा करते बाबू जी की।
वह अपने को रोक नहीं पाया।
आहिस्ता से फुटपाथ से नीचे उतरा,
गाड़ी में बैठा और चल पड़ा।
एक्सीलेटर,
ब्रेक और क्लच पर पैर ढंग से नहीं पड़ रहे थे।
फिर भी वह धीमी गति से गाड़ी चलाता रहा।
*******
राजेन्द्र नगर की रेड लाइट तक पहुँचने
में उसे काफी समय लगा।
चौराहा पार कर वह किसी पी.सी.ओ. से पिता को फोन करना चाहता था।
लेकिन जैसे ही वह रेड लाइट के निकट पहुँचा,
वहाँ
का दृश्य देख उसे चक्कर-सा आता अनुभव हुआ।
रेड लाइट से कुछ पहले बाईं ओर एक मोटर साइकिल पड़ी हुई थी और
उससे कुछ दूर एक युवक के इर्द-गिर्द खड़े कई लोग पुलिस को कोस
रहे थे।
उसने सड़क किनारे गाड़ी खड़ी की।....
उतरा।
कुछ देर पहले अपने साथ हुआ हादसा उसके दिमाग में ताजा हो उठा,
'
तो यह उस युवक का नया शिकार था।'
उसने सोचा और धीमी गति से आगे बढ़ा।
चोट के कारण वह तेज नहीं चल पा रहा था।
''टक्कर
इतनी जबरदस्त थी।..... शुक्र है कि गाड़ी इसके ऊपर से नहीं
गुजरी।''
भीड़ में कोई कह रहा था।
''किस
गाड़ी ने टक्कर मारी?''
कोई पूछ रहा था।
''
ब्लू लाइन बस थी ।....मैंने देखा।....मैं उस समय उधर पेशाब कर
रहा था ''
कहने वाले ने हाथ उठाकर पेशाब करने की जगह की ओर इशारा किया।
''तेज
आवाज हुई तो मैंने मुड़कर देखा।''
बोलने वाला क्षणभर के लिए रुका,
''बस
ने टक्कर नहीं मारी भाई जान! मोटरसाइकिल इतनी तेज
थी।....इतनी।... रहा होगा ये सौ से ऊपर की स्पीड में।...यही
टकराया बस से और मोटर साइकिल इधर और यह उधर।...बच गया। लेकिन
चोट बहुत है।''
अमित आगे बढ़ा।
''कितनी
देर हुई? ''
उसने एक व्यक्ति से पूछा।
''यही
कोई आध घण्टा।...''
''आध
घण्टा।...और आप लोग खड़े इसे देख रहे हैं?
पुलिस को किसी ने सूचित किया?''
वह यह कह तो गया लेकिन तत्काल सोचा कि अपरिचित राहगीरों से उसे
इसप्रकार नहीं बोलना चाहिए था।
अमित के प्रश्न पर मौन छा गया था।
कुछ देर बाद किसी की बुदबुदाहट सुनाई दी,
''पी.सी.आर.
वैन यहीं खड़ी रहती है।...
आज नदारत है।''
''पुलिस
को फोन करके कौन मुसीबत मोल ले।''
भीड़ में कोई और बुदबुदाया।
अमित चुप रहा।
वह घायल युवक के पास पहुँचा
और उसे देख भोंचक रह गया।
वह वही युवक था जिसने कुछ देर पहले अकारण ही बुरी तरह उसे पीटा
था।
'
मैं इसे अस्पताल पहुँचाऊँ?
'
अमित के मन में विचार कौंधा।
'कदापि
नहीं।'
लेकिन तभी अंदर से एक आवाज आयी,
'
अमित,
तुम्हें दूसरों से कुछ अलग करना है।....अलग बनना है,'
यह पिता की आवाज थी।
'
मैं इसे अस्पताल पहुँचाऊँगा।...राम मनोहर लोहिया अस्पताल पास
में है।'
उसने निर्णय कर लिया और वहाँ एकत्रित लोगों से बोला,
''आप
लोग इतनी सहायता करें कि इसे उठाकर मेरी गाड़ी में पीछे की सीट
पर लेटा दें। इसे अस्पताल ले जाऊँगा।''
''मैं
भी आपके साथ चलता हूँ।''
एक व्यक्ति बोला।
''आप
परेशान न हों।...केवल गाड़ी में इसे लेटा दें....बस।....''
******
अस्पताल में जिस समय एमरजेंसी के सामने उसने गाड़ी रोकी मोटर
साइकिल सवार को होश आ गया।
उसे देख कराहते हुए वह चीखा,
''तुम.....तुम....sss
''
और वह फिर बेहोश हो गया था। |