इस सप्ताह- |
अनुभूति-में--गिरिमोहन-गुरु-और भगवत दुबे के गीत,-शिवानंद सिंह सहयोगी की गजलें, आभा खरे के माहिया और सतीश जायसवाल-की-छंदमुक्त-रचनाएँ। |
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घर परिवार में |
रसोईघर में- वर्षा ऋतु के अवसर पर हमारी
रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- उत्तर भारत में इस मौसम
का विशेष व्यंजन-
अनरसे। |
सौंदर्य सुझाव --
हल्दी और चंदन का चूर्ण दूध में भिगोकर चेहरे पर लगाने से थकी और
मुरझाई त्वचा स्वस्थ होती है। |
संस्कृति की पाठशाला- भारतीय
पर्व ऋतुओं, फसलों और सम्बंधों से जुड़े हैं। इनका मुख्य तत्व
है भोजन, संगीत और उत्सव धर्मिता। |
क्या आप जानते हैं?
चंदबरदाई को हिंदी का पहला कवि और
उनकी रचना पृथ्वीराज रासो को हिंदी की पहली रचना होने का गौरव
प्राप्त है। |
- रचना और मनोरंजन में |
गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं
कि जुलाई के महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म
लिया? ...विस्तार से
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सप्ताह का विचार- जिस तरह पहली बारिश मौसम का मिजाज बदल देती है
उसी प्रकार उदारता नाराज़गी का मौसम बदल देती है।
- शूद्रक |
वर्ग
पहेली-३३९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से |
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हास परिहास में
पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य और संस्कृति
के अंतर्गत-
कोरोना-काल में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है यू.के. से
उषा राजे सक्सेना की कहानी
कैसे बताऊँ
बिटिया को
शीना
बेहद थकी हुई थी। वह घर आ कर चुपचाप, आँखें बंद कर सोफे पर लेट
जाना चाहती थी पर उसकी आठ वर्षीय बेटी निन्नी को उसके आने की
आहट मिल जाती है और वह खाना छोड़ कर भागती हुई आई और उसकी
दोनों हाथों को अपनी गुदाज़ हथेलियों की पकड़ में लेते हुए
पूछने लगी, ‘ममा, आज आपके मरीजों को कौन से रोग थे?’ निन्नी को
पता है कि उसकी ममा सरकारी अस्पताल में साइकैट्रिस्ट है और वह
उन रोगियों की चिकित्सा करती है जो मानसिक रूप से पीड़ित होते
है।
शीना, निन्नी के माथे पर प्यार का चुंबन देने के बाद हाथ में
पकड़े ब्रीफ़केस को मेज़ पर रखते हुए उसे अपनी दाहिनी बाँह में
लपेट कर डाइनिंग रूम में खाने की मेज़ के पास पहुँच कर, उसे
कुर्सी पर बैठा, खाने की ओर इशारा कर खुद साबुन से हाथ धोकर
चेहरे पर ठंडे पानी का छींटा मारते हुए कहती है, ‘आज के मरीज़
भी वैसे ही थे निन्नी बेटे जैसे और दिनों के मरीज होते है। कुछ
बहुत दुखी, कुछ बहुत बेचैन।
आगे...
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नमिता सचान सुंदर
की
लघुकथा- रसधार
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पर्व परिचय में जानें
लोक-पर्व
सातूँ आठूँ
***
श्रीराम परिहार का
ललित निबंध- पावस और सर्जन
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प्रकृति और पर्यावरण में-
आशीष गर्ग का आलेख- वर्षा के
पानी का संरक्षण
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पुराने अंकों से
विशेष- |
ऋताशेखर मधु की
लघुकथा-
दाग अच्छे हैं
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संकलित आलेख-
जैविक हथियार और चीन
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समीक्षा तैलंग का आलेख
भीषण गर्मी में
ठंडी पड़ती साँसें
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पुनर्पाठ में-
संजय खाती का आलेख-
खेल कोरोना
का
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वतन से दूर में प्रस्तुत
है कैनेडा से
हंसादीप की कहानी
काठ की हाँडी
अफरा-तफरी
मची हुई थी। शहर के हर कोने से भय और घबराहट की गूँज सुनायी दे
रही थी। एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे तक पहुँचते कोरोना वायरस
अब एलेग्ज़ेंडर नर्सिंग होम की दहलीज पर कदम रख चुका था जहाँ
कई उम्रदराज़ पहले से ही बिस्तर पर थे। सीनियर सिटीज़न के इस
केयर होम में अधिकांश रहवासी पचहत्तर वर्ष से अधिक की उम्र के
थे। कई लोग आराम से घूम-फिर सकते थे तो कई बिस्तर पर ही रहते।
कई को अपनी दिनचर्या निपटाने में किसी की मदद की आवश्यकता नहीं
होती तो कई पूरी तरह से मदद पर निर्भर थे। कई शारीरिक व मानसिक
दोनों रूप से अस्वस्थ थे, तो कई सिर्फ मानसिक रूप से अस्वस्थ
थे, वे चलते-फिरते तो थे पर ऐसे जैसे कि कोई जान नहीं हो
उनमें। उन्हें देखकर लगता था कि जिंदगी टूट-फूट गयी है,
जैसे-तैसे उसे समेट कर चल तो रहे हैं पर किसी भी क्षण बिखर
सकती है।
आगे...
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