इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
राम सेंगर,
सिया सचदेव, शिखा वार्ष्णेय, सुशील कुमार आज़ाद की रचनाएँ और
राष्ट्रपिता को समर्पित रचनाओं का संकलन- तुम्हें नमन। |
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साहित्य व संस्कृति में-
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1
समकालीन कहानियों में भारत से
मथुरा कलौनी की कहानी-
एक झूठ
कहानियों के
लिये सामग्री हमें आसपास की जीवन से मिल जाती है। पात्रों के
जीवन में झाँक कर और कुछ कल्पलना के रंग भर कर कहानी बन ही
जाती है। सावधानी यह बरतनी पड़ती है कि पात्र या घटनाएँ बहुत
करीब की न हों। बच्चे क्या सोचेंगे, भाई साहब कहीं बुरा न मान
जाएँ आदि के चक्कर में रोचक उपन्यासों का मसाला धरा का धरा रह
जाता है।
कभी कभी ऐसा भी होता है कि पाठक कपोल कल्पित घटना को सच मान
बैठते हैं। 'ऐसी कल्पना तो कोई कर
ही नहीं सकता है, जरूर आपके साथ ऐसा घटा है!'
बहरहाल, आप बताइये कि यह कहानी सच्ची है या नही। मुझे तो लगता
है कि इस कहानी का नायक झूठ बोल रहा है। ....कहते हैं
युवावस्था में मन मचल जाता है, दृष्टि फिसल जाती है इत्यादि।
रूमानी साहित्य में कालेज-जीवन में ऐसी घटनाओं के होने का
वर्णन मिलता है। मेरा छात्र-जीवन अतीत के गर्त में कहीं है तो
सही पर उसका वर्णन यहाँ पर विषयांतर होगा। ...
विस्तार से पढ़ें...
संजीव सलिल की लघुकथा
गांधी और गाँधीवाद
*
अनुपम मिश्र का आलेख
तैरने वाला समाज डूब रहा है
*
पुनर्पाठ में- रिंपी खिल्लन सिंह का आलेख
सर्वेश्वर दयाल
सक्सेना की लोक चेतना
*
समाचारों में
देश-विदेश से
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पिछले
सप्ताह- |
1
दीपक दुबे का व्यंग्य
फाइलों में अटका भोलाराम
का जीव
*
महेश परिमल का ललित निबंध-
रिश्ते कभी बोझ नहीं होते
*
जयप्रकाश मानस के कविता संग्रह
'अबोले
के विरुद्ध' से परिचय
*
पुनर्पाठ में- प्रमिला कटरपंच
से जानें लोकपर्व साँझी का विषय
में
*
समकालीन कहानियों में यू.के. से
उषा राजे सक्सेना की कहानी-
इंटरनेट डेटिंग
उस दिन स्काइप पर सौम्या,
ममी-पापा से उनके विवाह की पचीसवी वर्षगाँठ लंदन में मनाने की
योजना पर बातचीत कर रही थी कि ममी ने बात को बीच में ही काटते
हुए कहा, ‘सौम्या, अब तू प्रोफेशनल हो गई है साथ ही रीयल स्टेट
रैशब्रुक ऐंड सन्स में फिफ्टी परसेन्ट की पार्टनर है। मकान,
कार, भारी बैंक-बैलेन्स सबकुछ है तेरे पास। अब अपनी शादी की
सीरियसली सोच! तू इतने लोगो से मिलती-जुलती है। कोई तो तुझे
पसंद होगा ही!’
‘हाँ बेटा बता, हमारी तरफ से तुझे पूरी छूट है। लड़का तेरे
जोड़ का हो और तेरी पसंद का हो, तुझे वह खुश रखे बस्स।
जात-बिरादरी, रंग-नस्ल वगैरह की हमें कोई चिंता नहीं है। तुझे
पढ़ाते-लिखाते, तेरा कैरियर बनाते-बनाते, हम लोग जात-बिरादरी
और देश-काल की संकीर्णताओं से मुक्त हो चुके हैं। और फिर एक ही
तो बेटी है मेरी। तेरी खुशी में हमारी खुशी है।’
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