अभिव्यक्ति-चिट्ठा
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२०. ६. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
टेसू के फूलों के विभिन्न रंगों में रची बसी अनेक विधाओं में रची नए पुराने कवियों की ढेर सी काव्य रचनाएँ।

- घर परिवार में

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों में से प्रस्तुत है- मिथिलेश्वर की कहानी- बारिश की रात

रसोईघर में- कवाबों की स्वादिष्ट दुनिया में ले जा रहे है शेफ आलोक नारायण। इस अंक में प्रस्तुत हैं- शाकाहारी शामी कवाब।

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- नवजात शिशु का २५वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- चर्मरोग के लिये टेसू और नीबू

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- फ़ोटोशॉप का एक और मुफ्त विकल्प- पेंट डॉट नेट अनुप्रयोग काफी उपयोगी साबित हो सकता है। यह मुफ़्त तो है पर मुक्त नहीं

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- १६ में नवगीतों का प्रकाशन प्रतिदिन जारी है। चनाएँ अभी भी भेजी जा सकती हैं

वर्ग पहेली-०३४
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- चौपाल में इस सप्ताह संगीत और नाटक पर आधारित एक कार्यक्रम का नाट्य आलेख पढ़ा गया। नाट्य अंश थियेटरवाला प्रस्तुत आगे पढ़ें...

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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पलाश विशेषांक में

भूली बिसरी कहानियों के अंतर्गत भारत से
अमरकांत की कहानी- पलाश के फूल

नए मकाम के सामने पक्की चहारदीवारी खड़ी करके जो आहाता बनाया गया है, उसमें दोनो ओर पलाश के पेड़ों पर लाला लाल फूल छा गए थे। राय साबह अहाते का फाटक खोलकर अंदर घुसे और बरामनदे में पहुँच गए। धोती कुर्ता गाँधी टोपी हाथ में छड़ी... हाथों में मोटी मोटी नसें उभर आई थीं। गाल भे हुए बासी आलू के समान सिकुड़ चले थे, मूँछ और भौंहों के बालों पर हल्की सफेदी...
“बाबू हृदय नारायण ! ...ओवरसियर साहब !” बाहर किसी को न पाकर दरवाजे का पास खड़े होकर उन्होंने आवाज दी। कुछ ही देर में लुंगी और कमीज में एक व्यक्ति बाहर निकल आया। उसको देखकर राय साहब के मुँह पर प्रसन्नता फैल गई। उन्होंने रहस्यमय ढंग से पूछा, “मुझको पहचाना?” और जब हृदय नारायण ने कोई उत्तर न देकर संकुचित आँखों से घूरना ही उचित समझा तो वे बोले, “कभी आप यहाँ गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ते थे?
-अरे,-मुझे-भूल-ही-गए-क्या?”-
आगे...
*

रवीन्द्रनाथ त्यागी का व्यंग्य
पूरब खिले पलाश पिया
*

प्रकृति और पर्यावरण में
अर्बुदा ओहरी का लेख- पेड़ पलाश का

*

पूर्णिमा वर्मन का आलेख
डाकटिकटों और प्रथम दिवस आवरणों में पलाश
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सुधा गोयल नवीन के शब्दों में
पुराणकथा- अग्निदेव का शाप

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पिछले सप्ताह-

नंदलाल भारती की लघुकथा
लैपटॉप
*

एम.एस. मूर्ति से रंगमंच पर
आंध्र प्रदेश की नाट्य शैलिया

*

विवेक मांटेरो से जानें
परमाणु ऊर्जा- आवश्यकता या राजनीति 
*

पुनर्पाठ में राजेन्द्र प्रसाद सिंह का आलेख
भोजपुरी में नीम आम और जामुन

*

समकालीन कहानियों में भारत से
अशोक गुप्ता की कहानी- शोक वंचिता

उस समय रात के डेढ़ बज रहे थे...
कमरे की लाईट अचनाक जली और रौशनी का एक टुकड़ा खिड़की से कूद कर नीचे आँगन में आ गिरा।
लाईट दमयंती ने जलाई थी। वह बिस्तर से उठी और खिड़की के पास आ कर बैठ गई। उसके बाल खुले थे, चेहरा पथराया हुआ था लेकिन आँखें सूखी थीं।
दमयंती ने खिड़की के बाहर खिड़की के बाहर अपनी निगाह टिका दी। चारों तरफ घुप्प अँधेरा था, लेकिन दमयंती को भला देखना ही क्या था अँधेरे के सिवाय? एक अँधेरा ही तो मथ रहा था उसे भीतर तक... नीचे आँगन में दमयंती की सास के पास दमयंती का पाँच बरस का बेटा सोया हुआ था। वहीं, अपने घर से आई हुई दमयंती की छोटी बहन अरुणा भी सोई हुई थी। अँधेरे को भेद कर देखते हुए दमयंती ने सीढियों पर कदमों की आहट सुनी।   पूरी कहानी पढ़ें..

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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