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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से
अमरकांत की कहानी— पलाश के फूल


नए मकान के सामने पक्की चहारदीवारी खड़ी करके जो आहाता बनाया गया है, उसमें दोनो ओर पलाश के पेड़ों पर लाला लाल फूल छा गए थे।

राय साबह अहाते का फाटक खोलकर अंदर घुसे और बरामनदे में पहुँच गए। धोती कुर्ता गाँधी टोपी हाथ में छड़ी... हाथों में मोटी मोटी नसें उभर आई थीं। गाल भे हुए बासी आलू के समान सिकुड़ चले थे, मूँछ और भौंहों के बालों पर हल्की सफेदी...

“बाबू हृदय नारायण ! ... ओवरसियर साहब !” बाहर किसी को न पाकर दरवाजे का पास खड़े होकर उन्होंने आवाज दी।

कुछ ही देर में लुंगी और कमीज में गंजी खोपड़ीवाला एक दुबला-पतला और साँवला व्यक्ति बाहर निकल आया। उसको देखकर राय साहब के मुँह पर आश्चर्य के साथ प्रसन्नता फैल गई। उन्होंने उसको देखकर रहस्यमय ढंग से पूछा, “मुझको पहचाना?” और जब हृदय नारायण ने कोई उत्तर न देकर संकुचित आँखों से घूरना ही उचित समझा तो वे बोले, “कभी आप यहाँ गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ते थे? अरे, मुझे भूल ही गए क्या ? मेरा नाम नवलकिशोर राय...”
 

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