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२१. ३. २०१

इस सप्ताह-

अनुभूति में- 1
होली के रंगों से सराबोर  अनेक विधाओ में रची फागुनी रचनाएँ।

- घर परिवार में

सप्ताह का व्यंजन- होली के अवसर पर मंजरी कश्यप प्रस्तुत कर रही हैं- इस पर्व के विशेष पेय कांजी और ठंडाई

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- नवजात शिशु का बारहवाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से - नीबू से दूर हो अरुचि

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- मार्च से ३१ मार्च २०११ तक का भविष्य फल

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- एक कदम सुरक्षा का अपने कंप्यूटर को सुरक्षित करने के लिए Control Panel->User Account->User से पासवर्ड ...

नवगीत की पाठशाला में- इस सप्ताह कार्यशाला-१४ की रचनाओं का प्रकाशन संपन्न हो जाएगा। अगले सप्ताह नए विषय की घोषणा होगी।

वर्ग पहेली-०२१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- में इस सप्ताह पर्व की गुनगुनाहट रही। साहित्य सत्र में सुबह नागेश भोजने और मीरा ठाकुर पहुँचे। दोनो ने होली पर हाइकु... आगे पढ़ें

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
सुधा ओम ढींगरा की कहानी ...और बाड़ बन गई

''साथ वाले घर के सामने सामान ढोने वाला ट्रक खड़ा है। लगता है नए पड़ोसी आ गए हैं।" घर में प्रवेश करते ही मनु ने कहा।
यह सुनते ही मेरी उनींदी आँखें पूरी तरह से खुल गईं। मैं रसोई में सुबह की चाय बना रही थी और पूरी तरह से सचेत नहीं हुई थी। सुबह जब तक मैं एक प्याला चाय का ना पी लूँ, चुस्त-दुरुस्त नहीं हो पाती।
''क्या आप ने उन्हें देखा है ?'' उँगलियों के अग्रिम पोरों से आँखों को मलते हुए मैंने पूछा।
''नहीं सिर्फ सामान ढोने वाले श्रमिक देखें हैं।'' 
अखबार को पालीथिन के कवर से बाहर निकालते हुए मनु ने कहा और पालीथिन को कचरा डालने वाले डिब्बे में डाल दिया।
सुबह उठते ही वे बाहर से अखबार उठाने चले जाते हैं और मैं रसोई में चाय बनाने। अमेरिका में अखबार भी कितने सलीके से ढका होता है ताकि बरसात का पानी उसके काग़ज़ों पर असर ना डाल सके। पूरी कहानी पढ़ें...

*

शैल चंद्रा का प्रेरक प्रसंग
पूजनीय कौन
*

कुमार रवींद्र का रचना प्रसंग
लोक संस्कृति और नवगीत

*

अनुपम मिश्र का प्रकृति-लेख
पानी की राजनीति
*

पुनर्पाठ में निर्मला जोशी का आलेख-
मंच के हंस बलबीर सिंह रंग

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पिछले सप्ताह-


त्रिभुवन पांडेय का व्यंग्य
ललित निबंध होली पर
*

सुरेशचंद्र शर्मा के साथ देखें
लोकगीतों में झाँकता वसंत

*

पवन चंदन से जानें
क्यों लगाते हैं गुलाल होली में
*

पुनर्पाठ में होली के अवसर पर-
होली विशेषांक समग्र

*

समकालीन कहानियों में
भारत से रामदरश मिश्र की कहानी विदूषक

जब भी गाँव जाता हूँ, मन में अपने बचपन के सहपाठियों और मित्रों से मिलने की एक अजीब बेचैनी भरी होती है। इस जीवन-यात्रा में कुछ तो नवयौवन के पड़ाव पर ही अभावों से टूटकर गिर पड़े, जैसे आँधी में‍ टिकोरे। कुछ बाद में टूटे। कुछ बीमारी या अस्‍वस्‍थता की लपेट में आ गए। यानी एक-एक कर न जाने कितने चले गए और कितनों से तो (जो दूसरे गाँवों के थे) युगों से भेंट ही नहीं हुई। पता नहीं, कौन क्‍या कर रहा है, जीवित भी है कि नहीं। गाँव के भी कई सहपाठियों से जमाने से भेंट नहीं हुई क्‍योंकि वे नौकरी के सिलसिले में बाहर रहते हैं। जब मैं गाँव पहुँचता हूँ तो वे नहीं होते, वे पहुँचते हैं तो मैं नहीं होता। यही स्थिति मेरे बचपन के बहुत जीवंत दोस्‍त जोगीराय की थी। वे रेलवे में काम करते थे और अपने ढँग से गाँव आते-जाते रहे होंगे।
पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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