|
''साथ वाले
घर के सामने सामान ढोने वाला ट्रक खड़ा है। लगता है नए पड़ोसी आ
गए हैं।" घर में प्रवेश करते ही मनु ने कहा।
यह सुनते ही मेरी उनींदी आँखें पूरी तरह से खुल गईं। मैं रसोई
में सुबह की चाय बना रही थी और पूरी तरह से सचेत नहीं हुई थी।
सुबह जब तक मैं एक प्याला चाय का ना पी लूँ, चुस्त-दुरुस्त
नहीं हो पाती।
''क्या आप ने उन्हें देखा है ?'' उँगलियों के अग्रिम पोरों से
आँखों को मलते हुए मैंने पूछा।
''नहीं सिर्फ सामान ढोने वाले श्रमिक देखें हैं।'' अखबार को
पालीथिन के कवर से बाहर निकालते हुए मनु ने कहा और पालीथिन को
कचरा डालने वाले डिब्बे में डाल दिया।
सुबह उठते ही वे बाहर से अखबार उठाने चले जाते हैं और मैं रसोई
में चाय बनाने। अमेरिका में अखबार भी कितने सलीके से ढका होता
है ताकि बरसात का पानी उसके काग़ज़ों पर असर ना डाल सकें।
अखबार को थामे प्रांगण की ओर बढ़ते हुए मनु बोले -- ''पारुल,
आज चाय बाहर ही ले आना। मौसम बहुत सुहावना है। हवा में घुटन और
तल्ख़ी नहीं है। वह हल्के से धीरे-धीरे बह कर अपनी उपस्थिति
दर्ज करवा रही है। गर्मियों में ऐसी सुबह के लिए हम तरस जाते
हैं।'' |