मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
यू.एस.ए. से सुधा ओम ढींगरा की कहानी ...और बाड़ बन गई


''साथ वाले घर के सामने सामान ढोने वाला ट्रक खड़ा है। लगता है नए पड़ोसी आ गए हैं।" घर में प्रवेश करते ही मनु ने कहा।
यह सुनते ही मेरी उनींदी आँखें पूरी तरह से खुल गईं। मैं रसोई में सुबह की चाय बना रही थी और पूरी तरह से सचेत नहीं हुई थी। सुबह जब तक मैं एक प्याला चाय का ना पी लूँ, चुस्त-दुरुस्त नहीं हो पाती।
''क्या आप ने उन्हें देखा है ?'' उँगलियों के अग्रिम पोरों से आँखों को मलते हुए मैंने पूछा।

''नहीं सिर्फ सामान ढोने वाले श्रमिक देखें हैं।'' अखबार को पालीथिन के कवर से बाहर निकालते हुए मनु ने कहा और पालीथिन को कचरा डालने वाले डिब्बे में डाल दिया।

सुबह उठते ही वे बाहर से अखबार उठाने चले जाते हैं और मैं रसोई में चाय बनाने। अमेरिका में अखबार भी कितने सलीके से ढका होता है ताकि बरसात का पानी उसके काग़ज़ों पर असर ना डाल सकें। अखबार को थामे प्रांगण की ओर बढ़ते हुए मनु बोले -- ''पारुल, आज चाय बाहर ही ले आना। मौसम बहुत सुहावना है। हवा में घुटन और तल्ख़ी नहीं है। वह हल्के से धीरे-धीरे बह कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही है। गर्मियों में ऐसी सुबह के लिए हम तरस जाते हैं।''

पृष्ठ : . . .

आगे-

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।