इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत
से
मन्नू भंडारी की कहानी
सयानी बुआ
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फैजाबाद की ओर
जाने वाली किसान एक्सप्रेस रद्द थी। इसके सब पर मानो बुआजी का
व्यक्तित्व हावी है। सारा काम वहाँ इतनी व्यवस्था से होता जैसे सब
मशीनें हों, जो कायदे में बँधीं, बिना रुकावट अपना काम किए चली जा
रही हैं। ठीक पाँच बजे सब लोग उठ जाते, फिर एक घंटा बाहर मैदान में
टहलना होता, उसके बाद चाय-दूध होता। उसके बाद अन्नू को पढने के लिए
बैठना होता। भाई साहब भी तब अखबार और ऑफिस की फाइलें आदि देखा
करते। नौ बजते ही नहाना शुरू होता। जो कपडे बुआजी निकाल दें, वही
पहनने होते। फिर कायदे से आकर मेज पर बैठ जाओ और खाकर काम पर जाओ।
सयानी बुआ का नाम वास्तव में ही सयानी था या उनके सयानेपन को देखकर
लोग उन्हें सयानी कहने लगे थे, सो तो मैं आज भी नहीं जानती, पर इतना
अवश्य कहूँगी कि जिसने भी उनका यह नाम रखा, वह नामकरण विद्या का...पूरी कहानी पढ़ें।
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अशोक गीते का व्यंग्य
रिश्वतऽमृतमश्नुते
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सुबोध कुमार नन्दन का आलेख
बैजनाथधाम का
श्रावणी मेला
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कला दीर्घा में प्रभु जोशी की
कलम से
राजा रवि वर्मा का कला संसार
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मनोहर पुरी के शब्दों में
प्यारा सा
बंधन रक्षाबंधन |