इस
सप्ताह वसंत
पंचमी के अवसर पर जीलानी बानो
की उर्दू कहानी का शाहीना तबस्सुम द्वारा हिन्दी रूपांतर-
बात फूलों की
''फूल
महल'' के साइन बोर्ड को हमने रंगबिरंगी रोशनी से ऐसा सजाया है कि दूर
से देख कर ग्राहक खिंचा चला आए। तरह-तरह के बूटे, झिलमिलाते हार,
फूलों के साथ लिपटे हुए काँटों से मेरे हाथ लहूलुहान हो जाते हैं,
मगर मुझे यह काम अच्छा लगता है। भाग-दौड़ कुछ नहीं आराम से बैठे
फूलों के हार गूँथे जाओ और सौगंधी लाल के साथ-साथ हँसना सीख लो नहीं
तो वह नाराज़ हो जाते हैं। जब मैंने फूलों के हारों में पन्नी के
चाँद, सितारे और पुदीने के पत्ते गूँथने शुरू किए तो सारे शहर के लोग
हमारी दुकान पर आने लगे। फिर सेठ जी ने मेरा वेतन दो सौ रुपए से बढ़ा
कर तीन सौ रुपए कर दिया, ताकि कोई दूसरा फूल बेचने वाला मुझे बहका कर
न ले जाए।
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सप्ताह का विचार
वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है।
ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय
है, अर्थात सब समय उत्तम हैं। -सामवेद |
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विनोद शुक्ला का व्यंग्य
शहर
में वसंत की तलाश
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डॉ मंजु बालौदी का आलेख
पहाड़ों पर बुरांस
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क्या
आप जानते हैं?
प्रेमचंद ने अपने लेखन का प्रारंभ उर्दू में नवाबराय नाम से
किया, पर बाद में अधिक पाठकों तक पहुँचने के लिए वे हिंदी में
प्रेमचंद नाम से लिखने लगे। |
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शास्त्री
नित्यगोपाल कटारे द्वारा नर्मदा जयंती के अवसर पर विशेष प्रस्तुति-
पुण्या सर्वत्र नर्मदा
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उमाकांत मालवीय का ललित निबंध
यह पगध्वनि
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अनुभूति में-
वसंत
पंचमी के अवसर पर, विविध विधाओं में लगभग 80 वसंती
रचनाएँ |
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कलम
गही नहिं हाथ
शाम घिरने के बाद घर से निकली हूँ।
चौराहे पर बने फव्वारे के चारों ओर बिछी घास पर समुद्री बगुलों का
झुंड अठखेलियाँ कर रहा है। रात के झुटपुटे में पार्क की तेज़ रौशनी
के बावजूद दूर से इनके सिर, पैर और पूँछ नहीं दिखाई देते। टेनिस की
गेंद जैसी सफ़ेद बुर्राक ये बगुले इमारात को गुलाबी सर्दी की देन हैं
और शहर के हर प्राकृतिक नुक्कड़ को अपने सौंदर्य से भर देते हैं।
मुश्किल से आठ इंच लंबे इन बगुलों के झुंड बहुत बड़े होते हैं। इस
चौराहे पर बैठा झुंड शायद 50-60 से कम का नहीं होगा। थोड़ा आगे बढ़ती
हूँ तो सड़क के ऊपर बने पुल से नीचे की ओर फैली घास की ढलान पर ये
सैकड़ों की संख्या में बैठे हैं। सब समान दूरी पर, एक ही ओर मुख किए
हुए। इनको देखकर विश्वास हो जाता है कि ऊपरवाले ने बुद्धि और कौशल
बाँटते समय मानव के साथ बड़ा पक्षपात किया है। यह अनुशासन, यह धैर्य
बिना पुलिस और डंडे के हमारी दुनिया में मुश्किल है। गई थी सब्ज़ी
लेने आधे घंटे बाद मंडी के बाहर आई हूँ और देखती हूँ कि अभी भी वैसे
ही बैठे हैं सब, अपनी मौन साधना में। शायद यही मुद्रा देखकर किसी ने
इन्हें बगुला भगत कहा होगा। -पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)
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