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सायंकाल की सुनहरी किरणें, अब तक
ज़मीन पर उतरी नहीं थी। इस बड़े पीपल की, शाखों के बीच से, छन
कर आती लग रही थी। हवा के स्पर्श से पूरा वृक्ष, गुदगुदा कर
मानों हँस रहा था। तने के, एक खोखल में से एक तोता चोंच
निकाले, झाँक रहा था। एक शाख पर, लंबा-सा घोंसला, लटक रहा था।
किस पक्षी का था कौन जाने?
वृक्ष के नीचे, आसमान की ओर
ताकते, रामाराव खड़े थे। उनकी आँखों के आँसू, आँखों तक ही सिमट
रहे थे, इसका किसी को पता न था।
आज आँखें, न जाने क्यों भर आ
रही हैं। चार वर्ष पूर्व जब नानी आश्रम गई थी, तब भी आँखें,
इतनी तो नम नहीं थी। आज तो वह ठीक होकर, वापस आ रही हैं, आज तो
मन में, आनंद होना चाहिए। पर आनंद हो रहा है क्या?
पीपल के नीचे, एक पूरी मंडली,
नानी की बाट जोह रही थी। नानी का बेटा, वीनू। उसकी पत्नी
अनुराधा। उनका आठ वर्ष का बेटा रंगा, आस-पड़ोस की औरतें और
बच्चे सभी जमा हुए थे।
''रंगा, दादी के बुलाने पर भी, पास नहीं जाना समझे!'' अनुराधा,
रंगा को बार-बार समझा रही थी। |