''दियासलाई जब चिराग़ रोशन कर
देती है तो उसे फेंक देते हैं.।''
''फूल महल'' की गद्दी पर बैठे सौगंधी लाल मुझे अपने तजुर्बे की
बातें सिखाते रहते हैं।
''अपनी बातों में, फूलों के हारों में इतने चुटकुले लतीफ़े
टाँकते जाओ कि साला ग्राहक इस में उलझता ही चला जाए और फिर हार
के मुँहमाँगे दाम वसूल कर लो।'' वह बड़ी ज़ोर से हँसते, इस
उम्मीद के साथ कि मैं भी उन का साथ दूँगा, मगर उनकी बातों में
उलझ कर सूई मेरी उँगली में चुभ जाती है।
सौगंधी लाल अपनी गद्दी पर बैठे
दिन भर नोट गिन-गिन कर रसीदें काटते रहते हैं। हर ग्राहक से
ऐसे बात करते हैं जैसे जन्म-जन्म का नाता हो। दिन भर ग्राहकों
का जमघट, नई-नई फ़रमाइशें और सौगंधी लाल की डाँट ''राजू, राजी,
अबे राजू!''
''फूल महल'' के साइन बोर्ड को हमने रंगबिरंगी रोशनी से ऐसा
सजाया है कि दूर से देख कर ग्राहक खिंचा चला आए। तरह-तरह के
बूटे, झिलमिलाते हार, फूलों के साथ लिपटे हुए काँटों से मेरे
हाथ लहूलुहान हो जाते हैं, मगर मुझे यह काम अच्छा लगता है।
भाग-दौड़ कुछ नहीं आराम से बैठे फूलों के हार गूँथे जाओ और
सौगंधी लाल के साथ-साथ हँसना सीख लो नहीं तो वह नाराज़ हो जाते
हैं।
जब मैंने फूलों के हारों में
पन्नी के चाँद, सितारे और पुदीने के पत्ते गूँथने शुरू किए तो
सारे शहर के लोग हमारी दुकान पर आने लगे। फिर सेठ जी ने मेरा
वेतन दो सौ रुपए से बढ़ा कर तीन सौ रुपए कर दिया, ताकि कोई
दूसरा फूल बेचने वाला मुझे बहका कर न ले जाए। आज तो हमारी
दुकान पर फूल ख़रीदने वालों की भीड़ बढ़ती ही जा रही था जैसे
शहर के हर आदमी को आज फूलों की ज़रूरत पड़ गई थी।
''सौगंधी महाराज! नमस्कार। एक शानदार फूलों का हार चाहिए हमें
- दस-दस के नोट भी पिरोना उसमें और गुलाब के फूल भी।''
''अभी लो शर्मा साहब। अरे राजू बेटा, झटपट साहब का ऑर्डर लो और
इनका काम तमाम करो।''
''ऐसा लगता है मक्खन लाल जी इलैक्शन जीत गए हैं जब ही आप
रुपयों के हार बनवा रहे हैं आज?'' सौगंधी लाल मुँह खोल कर
हँसने लगे।
''सौगंधी लाला, कैसे न जीतते मक्खन लाल जी! हम जा उन के साथ
थे। दो हज़ार आदमियों को माधोपुर से ले गए थे लारियों में भर
के, सब से वोट डलवा दिए।'' सौगंधी लाल के साथ शर्मा जी भी ज़ोर
से हँस पड़े।
''मगर एक लड़का कह रहा था, पुलिस ने फाइरिंग कर दी माधोपुर में
बहुत लोग मारे गए हैं।'' मैंने एक बड़ा-सा गुलाब हार के बीच
में टाँकते हुए पूछा।
''इलेक्शन में तो यह सब चलता ही रहता है जी। दूसरी पार्टी वाले
पुलिस को ले आए। फाइरिंग हो गई, मगर जीत तो हमारी हुई ना।''
शर्मा जी जीत के नशे में थिरक रहे थे। एक नौजवान लड़का ऑटो
रिक्शा से उतरा और दौड़ता हुआ दुकान की तरफ़ आया।
''ज़रा सुनिए सेठ साहब! आपके यहाँ इतने फूल मिल जाएँगे कि
चालीस अर्थियों पर डाले जा सकें।''
चालीस अर्थियाँ! सूई अब की बार
मेरे दिल में चुभ गई। शर्मा जी नौजवान को देख कर घबरा गए, पीछे
को हटे फिर हिम्मत करके बोले, ''हैलो जॉन! हाउ आर यू?''
उन्होंने हाथ आगे बढ़ाया।
''फाइन!'' नौजवान ने शर्मा जी का हाथ झटक दिया।
''इतनी अर्थियाँ, एक साथ! कहाँ से आ रहे हो नौजवान?'' सौगंधी
लाल ने घबरा कर पूछा।
''माधोपुर से, इलैक्शन में सालों का बस न चला तो सारे गाँव से
नौजवानों को बहला-फुसला कर ले गए बोगस वोटिंग के लिए, पुलिस ने
गोली चला दी।''
''अब तुम माधोपुर से आए हो फूल लेने?'' एक ग्राहक ने बड़े दुख
के साथ पूछा।
''क्या करें हमारे गाँव के सारे फूल तो लोग ले गए हैं मक्खन
लाल जी को पहनाने के लिए।''
''तो क्या इन अर्थियों का जुलूस शहर में निकाला जाएगा?'' शर्मा
जी ने जॉन से पूछा।
''जी हाँ, हम सारे शहर में जुलूस ले जाएँगे। मक्खन लाल के
खिलाफ़ नारे लगवाएँगे। माधोपुर में दोबारा इलैक्शन होगा।''
''अच्छा, तो सौगंधी लाल! एक फूलों का शानदार घेरा भी बना दो।
मक्खन लाल जी भी इन शहीदों को श्रद्धांजलि देने ज़रूर
जाएँगे।'' शर्मा जी ने पर्स से और नोट निकाल कर गिनते हुए कहा।
''अभी लो जी, अभी लो। अरे राजी बेटे, शर्मा जी का ऑर्डर ले
फटाफट और इनका काम तमाम कर।'' आज मैंने आधे दिन की छुट्टी ले
कर अपने दोस्त के साथ पिक्चर देखने का प्रोग्राम बनाया था मगर
आज हमारी दुकान पर आने वाले ग्राहकों की भीड़ बढ़ती ही जा रही
थी।
''ज़रा आप इधर हटिए, आप इधर जाइए।'' एक नौजवान स्कूटर रोक कर
सबको हटाता हुआ आगे बढ़ा, किसी तेज़ खुशबू वाले परफ्यूम में
डूबा हुआ।
''बालों में सजाने के लिए एक बहुत खूबसूरत गजरा चाहिए। मगर फूल
ताज़ा हों खुशबू वाले।''
''अभी लीजिए बाबू साहब।'' सौगंधी लाल ने बड़े ध्यान से बाबू
साहब को देखा।
''राजू बेटा, ऐसी फूलों की वेणी बना कर लाओ बाबू साहब के लिए
कि इन का काम तमाम हो जाए।''
''बाबू साहब भरोसा रखिए हमारी दुकान पर हर चीज़ अच्छी मिलेगी
आपको। ऐसा गजरा बना कर दूँगा कि आपकी मिसेज खुश हो जाएँगी।''
''अच्छा तो फिर दो गजरे बना
दो।'' साहब ने कुछ झेंपते हुए कहा।
''सौगंधी लाल ज़रा जल्दी करो, चार बजे तक जुलूस निकालना है।''
जॉन ने इधर-उधर देख कर पूछा, ''मगर तुम्हारी दुकान में तो इतने
फूल नज़र नहीं आ रहे हैं कि चालीस अर्थियाँ सजाई जाएँ।''
''धीरज रखो नौजवान।'' सौगंधी लाल ने आराम से कहा। ''अभी पुजारी
जी दो-चार टोकरे फूल हमें भेज देंगे।''
''पुजारी जी! क्या मंदिर के फूल बिकते हैं?'' जॉन ने आश्चर्य
से पूछा।
''सुबह-सवेरे जो लोग पूजा के लिए फूल ले जाते हैं न, पुजारी जी
शाम को फिर यहीं भेज देते हैं।''
''लाहौल।'' एक मौलवी साहब ने गुस्से से कहा। ''मंदिर के पूजा
के फूल दुकान पर रखते हो?''
''अरे रखते कहाँ है मौलाना, आज बिरयानीशाह का उर्स था, सारे
फूल वहीं ले गए लोग।''
''इस दुकान को बंद करवाना चाहिए नहीं तो हिंदू-मुस्लिम झगड़ा
शुरू हो जाएगा।'' मौलाना दुकान पर खड़े होकर भीड़ की तरफ़ मुड़
गए।
''यह मौलवी साहब सठिया गए हैं। जब आते हैं अल्लाह और भगवान का
झगड़ा ले बैठते हैं।'' सौगंधी लाल ने मुस्कुरा कर कहा।
''तुम बेईमान हो। लोगों का धर्म-ईमान ख़राब करते हो।'' मौलवी
साहब चिल्लाने लगे।
''चीखो मत मौलवी साहब! इलैक्शन का जलसा नहीं हो रहा है यहाँ।
हम चीज़ दे कर दाम लेते हैं। लोगों को आग का धुआँ और ख़ाक की
पुड़िया दे कर उल्लू नहीं बनाते।'' सौगंधी लाल गुस्से में आ
जाएँ तो फिर सुलगते ही जाते हैं।
''हटिए रास्ता छोड़िए मैडम जी के लिए।'' ''आइए, आइए मैड़म जी!
आदाब अर्ज़, कहिए क्या हुक्म है?'' एक दुबली-पतली बेहद
फुर्तीली-सी महिला एक छोटी-सी बच्ची का हाथ पकड़े आगे बढ़ी।
''एक बहुत अच्छा-सा बुके बना
दीजिए मगर ज़रा जल्दी से दीजिए। चार बजे तक मुझे पहुँचना है।''
मैडम जी ने कलाई की घड़ी देखते हुए कहा।
''अभी लीजिए। राजू बेटा, मैडम जी का ऑर्डर बुक करो और झ़टपट
इनका काम तमाम करो।'' ''क्या एयरपोर्ट जाना है मैडम जी? किसी
मिनिस्टर का स्वागत करने जा रही हैं?'' सौगंधी लाल औरतों को
बातों में यों उलझाए रखते जैसे कच्ची कलियों को धागे में लपेट
देते हैं।
''नहीं सौगंधी लाल, मेरी लड़की स्कूल की दौड़ में हिस्सा लेने
गई है, वह ज़रूरी फर्स्ट आएगी।''
''क्या ज़माना आ गया है।'' मौलवी साहब ने बड़े दुख के साथ कहा।
''लड़कियों को दौड़ना सीखा रहे हैं। आखिर इन्हें किसी मर्द के
पीछे ही रहना है।''
''मौलवी साहब आपका काम तमाम हुआ, इसलिए आप तो पीछे हट जाइए।''
मौलवी साहब के जाते ही एक और मौलाना आ गए। ''सौगंधी लाल, हमें
एक बहुत खूबसूरत शानदार सेहरा चाहिए, इतना लंबा हो कि दुल्हा
उस में छुप जाए।''
''मगर दूल्हा को छुपाने के लिए तो बहुत बड़ा सेहरा बनाना होगा,
हम तो बस इतना लंबा सेहरा बनाते हैं कि बाराती दूल्हा को न
पहचानना लें।'' मैंने जल्दी से घबरा कर कहा।
''राजा बेटे, जो बात ग्राहक कहे मान लो।'' आप धीरज रखिए मौलाना
जैसा आपने हुक्म दिया है वैसा ही सेहरा तैयार होगा। यह चौथा
सेहरा है जो मैं आपके बेटे के लिए तैयार करूँगा, कभी कोई
शिकायत हुई आप को? लाइए एक हज़ार रुपए एडवांस दीजिए सीधे हाथ
से, शुभ काम है।'' सौगंधी लाल दोनों हाथ मौलाना के सामने फैला
कर खड़े हो गए।
''एक बुके बनाने में कितनी देर लगाओगे लाला।'' बेबी की माँ
बार-बार घड़ी देख रही थी।
''मैडम जी, मैं आपको बहुत ही बढ़िया बुके दूँगा दौड़ में
फर्स्ट आने वाली बेबी के लिए। बस अभी चीफ़ मिनिस्टर के ऑफ़िस
से बहुत से बुके आते होंगे वापस।''
''अच्छा तो तुम सारे लीडरों को पहनाए गए हार वापस मँगवा लेते
हो लाला जी?''
''अरे नहीं मैडम जी, लीडरों के गले में पड़ने के बाद तो फूल
सूख जाते हैं।''
''तो फिर वो फूल किसी हकीम को गुलकंद बनाने के लिए बेच देते
हो?'' जॉन ने बड़े आश्चर्य से पूछा।
''नहीं बेटे।'' सौगंधी लाल ने सर झुका कर बड़े दुख के साथ कहा,
''हमारी दुकान के पीछे कब्रिस्तान है। मैं शाम को सारे फूल उठा
कर वहाँ ले जाता हूँ।''
''सूखे फूल कब्रिस्तान में ले जाते हो?'' मैडम ने आश्चर्य से
पूछा।
''हाँ मैडम जी, कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है जैसे कुछ औरतों के
ऊपर मिट्टी नहीं डाली गई है, वह खुली पड़ी हैं, मैं इन्हें
सूखे फूलों से ढक देता हूँ।''
सब चुप हो गए जैसे सौगंधी लाल
के साथ-साथ हम सब भी किसी खुली कब्र के आसपास खड़े हों।
''मौलवी साहब, एक बात पूछूँ आप से!'' सौगंधी लाल ने धीरे से
कहा, ''सुना है क़यामत के दिन मुर्दे जी उठेंगे। मगर इन औरतों
की गिनती तो वहाँ भी नहीं होगी।''
मौलवी साहब ने अपने बड़े बेटे का चौथा सेहरा बड़े चाव से
सँभाला और कार की तरफ़ बढ़ गए।
फिर एक और चमचमाती कार आ कर रुकी। बहुत शानदार सूट पहने एक
भारी-भरकम साहब सर उठाए कार से उतरे।
''आइए आइए प्रोफ़ेसर साहब! ज़रा रास्ता देना भाई।'' सौगंधी लाल
घबरा कर खड़े हो गए, ''जी हुक्म दीजिए प्रोफ़ेसर साहब!''
''मुझे एक खूबसूरत-सा, बहुत अच्छा सफ़ेद गुलाब चाहिए, वह जो
यहाँ कोट के कॉलर पर लगाते हैं ना।''
''जी, जी मैं समझ गया। राजा बिटवा! प्रोफ़ेसर साहब का ऑर्डर लो
और इनका काम सबसे पहले तमाम कर देना बेटा।''
''तो क्या आज चंद्रमोहन साहब आ रहे हैं प्रोफ़ेसर साहब?''
''हाँ। आज सिर्फ़ कुछ घंटों के लिए आ रहे हैं। उन्हें अब
अमरीका की एक साइंस कॉन्फ्रैंस में...''
प्रोफ़ेसर की बात सुने बिना
ही सौगंधी लाल दुकान के ग्राहकों की तरफ़ देख कर बड़े गर्व से
बोले, ''प्रोफ़ेसर साहब के सपूत बहुत बड़े साइंटिस्ट हैं। भारत
के पोखरन धमाके में जिस टीम ने भाग लिया, उसमें चंद्रमोहन साहब
भी शामिल थे।''
यह बात सुनते ही भीड़ ज़ोरदार तालियाँ बजाने लगी। लोग
प्रोफ़ेसर साहब से हाथ मिलाने और मुबारकबाद देने के लिए आगे
बढ़ने लगे।
''मम्मी, लोग तालियाँ क्यों बजा रहे हैं?'' मैडम की बेबी ने
आश्चर्य से पूछा।
''बेबी आपने इतिहास की पुस्तक में पढ़ा है ना कि दूसरा
महायुद्ध समाप्त करने के लिए हीरोशिमा पर एटमबम गिराया गया
था...!'' जॉन ने बेबी के पास जाकर उसे समझाया।
''तब हीरोशिमा के सारे लोग मर गए थे एक साथ, अब वैसा ही बम
प्रोफ़ेसर साहब के बेटे ने भारत में बना लिया है।''
बेबी डर गई, मुँह खोल कर इधर-उधर देखने लगी, ''तो क्या भारत
में भी बहुत सारे लोग मर जाएँगे?''
''नहीं बेबी, ऐसा कुछ नहीं होगा।'' प्रोफ़ेसर साहब प्यार से
बेबी की तरफ़ बढ़े तो वह शरमा कर माँ के आँचल में छुप कर बोली,
''मम्मी, फिर इतनी सारी अर्थियों को सजाने के लिए इतने फूल
कहाँ से आएँगे?''
''उस वक्त तो सिर्फ़ एक ही फूल की ज़रूरत होगी।'' जॉन ने फिर
बेबी को अपनी तरफ़ खींचा।
''एक ही फूल? वह किसलिए?''
''प्रोफ़ेसर साहब के सीने पर सजाने के लिए।'' |