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३०. ५. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
दिनेश ठाकुर, हरदीप संधु, वंदना मुकेश और सुरेश यादव के साथ नवगीत की पाठशाला से चुनी हुई रचनाएँ।

- घर परिवार में

मसालों का महाकाव्य- देश-विदेश में लोकप्रिय चटपटे मिश्रणों के बारे में प्रमाणिक जानकारी दे रहे हैं शेफ प्रफुल्ल श्रीवास्तव। इस अंक में- जात्ज़िकी

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- नवजात शिशु का २२वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- सर्दी जुकाम के लिये दालचीनी और शहद

अभिव्यक्ति का २० जून का अंक टेसू या पलाश विशेषांक होगा। इस अंक के लिये हर विधा में गद्य रचनाओं का स्वागत है। रचनाएँ हमें १० जून से पहले मिल जानी चाहिये। पता इसी पृष्ठ पर ऊपर है।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- वर्ड, एक्सेल तथा अन्य कई अनुप्रयोगों में, Ctrl+Z दबाकर पिछला किया हुआ काम पलटा जा सकता है।

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- १६ के लिये टेसू या पलाश विषय पर गीतों का प्रकाशन  १ जून से प्रारंभ हो रहा है।

वर्ग पहेली-०३१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- शुक्रवार चौपाल में इस सप्ताह चौथा वार्षिकोत्सव मनाया जाना था। शरद जोशी के व्यंग्य को समर्पित इस अवसर पर उनकी। आगे पढ़ें...

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य व संस्कृति में- वट सावित्री पर्व के अवसर पर

1
समकालीन कहानियों में भारत से
पुष्पा तिवारी की कहानी- सावित्री का वट

सावित्री एक लड़की थी।
वह अपने को अनोखी लड़की समझती थी। वह लड़की थी-प्रेम करने के लिये क्या यही काफी नहीं था? उसमें अनोखी लड़की हो जाने का अहसास संकोच सहित ठहर गया था। तबसे वह खुद में कुछ ढूँढ़ने लगी। अचानक उसे अपने में एक लड़के के लिए प्रेम मिला। वह उसके लड़की होने के अहसास को रोज सुबह छेड़ने लगा। सावित्री के साथ उसका जीवन भी रहता था। जीवन दिनचर्या के हवाले था। दिनचर्या सूरज की पहली किरण के साथ लड़की को उसके घर आकर जगाती। रोज शाम वही किरण उसके घर से चली जाती। सावित्री और किरण दिन भर साथ रहते लेकिन उसे लगता कि किरण उससे सुबह और शाम केवल एक एक क्षण के लिये मिलती है। शाम के बाद सावित्री को सुबह का इन्तजार होता। उसे चन्द्रमा की किरणों में विश्वास नहीं था। वैसे भी चन्द्रमा की किरणों में रोज उगने के लिए लगन और निष्ठा का अभाव था। पूरी कहानी पढ़ें...

*

रवीन्द्र खरे की लघुकथा
बरगद का दर्द
*

डॉ. राजकुमार मलिक का आलेख
समय का समरूप बरगद

*

पुनर्पाठ में कन्हैयालाल चतुर्वेदी का आलेख
क्रांतिकारी घटना का साक्षी वह बरगद 
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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पिछले सप्ताह-

1
अनूप कुमार शुक्ल का व्यंग्य
फटाफट क्रिकेट और चियर बालाएँ
*

प्रवीण गार्गव का दृष्टिकोण
लिखे हुए शब्दों के प्रति श्रद्ध

*

डॉ. मनोज मिश्र का आलेख
दूर संवेदी रिसोर्ट उपग्रह - २
*

पुनर्पाठ में महेन्द्र राजा जैन के विचार
क्या उपन्यास लेखन सिखाया जा सकता है

*

समकालीन कहानियों में भारत से
दीपक शर्मा की कहानी- नौ तेरह बाईस

'मैं निझावन बोल रहा हूँ, सर', मेरे मोबाइल के दूसरी तरफ़ मेरे बॉस हैं, मेरे जिले के एस.पी.। अपनी आई.पी.एस. के अन्‍तर्गत। जबकि मेरी प्रदेशीय पुलिस सेवा ने मेरी तैनाती यहाँ के चौक क्षेत्र में सर्कल आफिसर के रूप में कर रखी है। अभी कोई तीन माह पूर्व। 'एनी इमरजेंसी?' राजधानी से बॉस आज सुबह लौटे हैं और इस समय ज़रूर अपनी शृंगार-मेज़ पर अपने प्रसाधन के मध्‍य में हैं। 'येस सर। मेरे सर्कल के नवाब टोला की वारदात है। कल शाम स्‍पोर्टस कॉलेज की कोई लेक्‍चरर आग में झुलस कर मर गयी थी, सर।'
'नवाब टोला कहाँ पड़ेगा?' वे अपनी अनभिज्ञता प्रकट करते हैं। दूसरों को गोल-गोल घुमाकर उन्‍हें फिर नौ-तेरह बाइस बताने में उनका कोई सानी नहीं। 'मेरे थाने की दिशा से वह धक्‍कम-धक्‍के वाले एक चूड़ी बाज़ार का अन्तिम छोर है, सर पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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