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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से
पुष्पा तिवारी की कहानी— सावित्री का वट


सावित्री एक लड़की थी।
वह अपने को अनोखी लड़की समझती थी। वह लड़की थी-प्रेम करने के लिये क्या यही काफी नहीं था? उसमें अनोखी लड़की हो जाने का अहसास संकोच सहित ठहर गया था। तबसे वह खुद में कुछ ढूँढ़ने लगी। अचानक उसे अपने में एक लड़के के लिए प्रेम मिला। वह उसके लड़की होने के अहसास को रोज सुबह छेड़ने लगा।

सावित्री के साथ उसका जीवन भी रहता था। जीवन दिनचर्या के हवाले था। दिनचर्या सूरज की पहली किरण के साथ लड़की को उसके घर आकर जगाती। रोज शाम वही किरण उसके घर से चली जाती। सावित्री और किरण दिन भर साथ रहते लेकिन उसे लगता कि किरण उससे सुबह और शाम केवल एक एक क्षण के लिये मिलती है।

शाम के बाद सावित्री को सुबह का इन्तजार होता। उसे चन्द्रमा की किरणों में विश्वास नहीं था। वैसे भी चन्द्रमा की किरणों में रोज उगने के लिए लगन और निष्ठा का अभाव था। वे जब आतीं अधिकतर कहानियाँ ही सुनातीं। इन कहानियों में वे सावित्री के मन को घर की चहार दीवारी से बाँधे रखतीं। चन्द्र किरणों को लड़की का भविष्य मालूम रहा होगा। लड़की को पता नहीं।

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