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उपन्यास अंश

यू.के. इंदु शर्मा कथा सम्मान से अलंकृत भगवानदास मोरवाल के उपन्यास
रेत का एक अंश- महफ़िल।


सारी तैयारियाँ हो गईं महफ़िल की।

ऊपर खुली छत पर एक तरफ़ डी जे, तो ठीक उसके सामने दीवार के सहारे नीचे फ़र्श पर मुलायम गद्दे बिछा कतार में गाव-तकिए लगवा दिए गए। अपनी परिकल्पना के अनुसार बुआ ने मेहमानों के बैठने की ऐसी व्यवस्था करवाई कि आनेवाले को पहली नजर में लगे, वह सचमुच किसी महफिल में आया है।

शादी की ज़्यादातर रस्में शाम होते-होते पूरी कर ली गईं। रूक्मिणी, वंदना, पूनम सहित महफिल में जान डालने के लिए विशेष रूप से बुलाई गईं तारा, सलमा और ज्योति को पहले ही निर्देश दे दिए गए कि महफ़िल में ऐसा रंग जमना चाहिए कि आनेवाले मेहमान बरसों तक इसे याद रखें। बावजूद इसके बुआ का जी ठिकाने नहीं है। एक अनजानी आशंका से वे बेचैन हुई जा रही हैं। अपनी इसी आशंका से मुक्त होने की गरज से एक बार फिर चल दीं उन्हें याद दिलाने।

मगर इस बार कमला बुआ का कमरे में प्रवेश करना कठिन हो गया। गाजूकी की किशोरियों में एक-दुसरे को पीछे धकियाकर उनका सामीप्य पाने की जैसे होड़ मची हुई है। यह दृश्य बुआ को भीतर तक आश्वस्त कर गया। एक शीतलता से भीग गई वह कि जब इन किशोरियों का इन्हें देख-देखकर जी नहीं भर रहा है, तब उन

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