| क्षण भर में मिनी की खुशी उसके चेहरे पर
      वापस लौट आई। मन ही मन हर्ष को अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था।
      उसे आश्चर्य हो रहा था कि मिनी में इतनी समझदारी कहां से आ गई
      है। कल तक गोद में फुदकने वाली मिनी आज पिता के जीवन को
      इंद्रधनुष के रंगों से सुसज्जित कर रही है। मिनी के बार बार आग्रह पर उसके
      स्विट्जरलैण्ड जाने के एक सप्ताह पहले हर्ष और जूली विवाह के सूत्र
      में बंध गए। हंसते खेलते एक सप्ताह मिनी की पैकिंग, जूली की उसे
      सलाह पर सलाह आदि में गुज़र गया। "कल सुबह तुम अपने भविष्य की
      दहलीज़ पर पहला कदम रखने जा रही हो मिनी। वहां तुम्हें सुबह
      उठाने के लिए, रात सुलाने के लिए डैडी नहीं होंगे। अपना खयाल
      तुम्हें स्वयं रखना होगा।" कहते कहते हर्ष की आंखें नम हो गई। मिनी ने हर्ष के गालों पर हाथ रखते
      हुए कहा,"आई एम नो मोर अ किड डैड। मैं आपकी एक जिम्मेदार
      बेटी हूं, अपना ख्याल स्वयं रख सकती हूं। घड़ी के अलार्म में आपकी
      पुकार, आपकी तसवीर में लोरी ढूंढ़ने की कोशिश करूंगी। बट आई
      विल रिएली मिस यू डैड। मॉम का सपना था कि मैं बड़ी होकर
      स्विट्ज़रलैण्ड में पढूं, वह सपना पूरा करने का वक्त आ गया है।
      आपकी दी हुई शिक्षा और मॉम का स्वप्न मेरी सबसे बड़ी शक्ति है
      डैड।" कहते कहते मिनी भी स्वयं को रोक न पाई और हर्ष की गोद
      में सर रख कर रोने लगी। विदाई का समय होता ही ऐसा है। एक
      तरफ सुनहरे भविष्य की ख्वाहिश, दूसरी ओर अपनों से विरह का दुख।
      कालचक्र से भला कौन निकल पाया है। मिनी के उड़ते हुए जहाज को
      हर्ष तब तक निहारता रहा जब तक वह उसकी आंखों से ओझल नहीं हो
      गया। उधर मिनी अपने नए स्कूल  में,
      नए मित्रों के साथ एक नई दुनिया में व्यस्त होती गई और इधर हर्ष
      और जूली दाम्पत्य जीवन की धारा में बहने लगे। क्रिसमस का
      समय हर्ष और जूली दोनों ही के लिए अत्यंत व्यस्त होता है। जूली
      की बूटीक में खरीद्दारों की भीड़ और हर्ष के सुपर मार्केट का देर रात
      तक खुले रहना, मिनी इस हकीकत को समझते हुए छुट्टियों में लंदन
      न आने का फैसला लेती है। हर्ष और जूली खुश है साथ साथ।
      मित्रों और रिश्तेदारों के साथ खुलकर उठते बैठते हैं। लोगों के घर
      जाना और मेहमानों का घर आना, सब जीवन का एक खूबसूरत अंग
      बन चुका है। पहली जनवरी, नया साल  . .
      .सूरज की पहली किरण के साथ जूली हर्ष की बाहों में सिमटते हुए
      होठों पर अपनी दरख्वास्त लिखती है जिसे हर्ष सहर्ष स्वीकार करते हुए
      घर के आंगन में नए पौधे की किलकारी का स्वप्न लिए जूली में
      पूर्णतः समाहित हो जाता है। जूली की आंखों में एक नई चमक देखते
      और महसूस करते हुए हर्ष ने पूछा,"क्या चाहती हो, बेटा या
      बेटी?" हर्ष के कंधों में सर रखते हुए, कुछ
      शर्माती सी जूली बोली,"बेटा! बेटी तो है हमारे पास।" हर्ष ने मुस्कुरा कर जूली का माथा
      चूम लिया है। जूली कहने लगी,"जानते हो हर्ष, पांच छः
      वर्ष की आयु से मुझे बच्चों का बहुत शौक है। अपनी मां से जब
      मैं पूछती कि मुझे बेबी कब होगा? वह हमेशा हंसते हुए कहती जब
      मैं बुढ्ढी हो जाऊंगी, और मैं उसके बुढ्ढे होने का रोज़
      इंतजार करती। हर सुबह पूछती,"मां, तुम आज भी बुढ्ढी नहीं
      हुई।" जब तुम मेरी ज़िन्दगी में आए तो न जाने क्यों मैं
      तुम्हारे बच्चे की मां बनने की इच्छा पालने लगी। सच पूछो तो
      तुमसे अच्छा कोई कभी टकराया ही नहीं।" जूली की बातों में हर्ष को सोलह
      वर्षीय लड़की नज़र आने लगी। वह जूली के बालों में
      उंगलियां फेरते हुए कहने लगा,"मैं तुम्हारी ख्वाहिश से वाकिफ
      हूं जूली। बस मिनी के कारण  . . .तुम जानती हो मैं मिनी
      से कितना प्यार करता हूं। शायद तुम्हें समझने में मैंने ही देर कर
      दी।" हर्ष और जूली अब इस नए पौधे की
      प्रतीक्षा में समय काटने लगे। परन्तु छ महीने बाद भी जब जूली ने
      कंसीव नहीं किया तो एक दिन दोनों ने डॉक्टर से सलाह लेने का
      निर्णय लिया। डॉक्टर ने कुछ टेस्ट लिए और अगले सोमवार को
      रिपोर्ट पर अपनी टिप्पणी और सलाह देने को कहा। उधर स्वीट्जरलैण्ड में गर्मियों के
      अवकाश में घर लौटने का मिनी बेकरारी से प्रतीक्षा कर रही थी। अपनी
      सबसे अच्छी सहेली सूज़ी से मिनी बोली,"दस महीने तो कट
      गए परन्तु छुट्टियों से पहले का यह अंतिम सप्ताह नहीं कट रहा। घर जल्दी
      जाने का मन हो रहा है।" सूज़ी बोली,"कम ऑन मिनी,
      यू आर नो मोर अ किड। स्कूल से हमारा ग्रुप अमेरिका जा रहा है। इट
      विल बी अ ग्रेट फन। एक महीने के लिए हमारे साथ चलो फिर बाकी
      समय घर पर बिता लेना।" मिनी गुस्से से बोली,"डोन्ट
      बी सिली सूजी, माई डैड विल किल मी। तुम नहीं जानती वो
      मुझसे कितना प्यार करते हैं। अमेरीका  . . .तो दूर की बात है,
      वो मुझे पूरी छुट्टी पल भर के लिए भी अपनी आंखों से ओझल नहीं
      होने देंगे।" "अच्छा बाबा, डैडीज् बेबी, आई
      एम सॉरी।" सूजी मिनी के कंधों पर हाथ रखते हुए बोली। "तुमने डैड की याद दिला दी सूजी,
      लेट्स गो एण्ड कॉल हिम नाओ  . . ."कहते हुए मिनी हर्ष
      को फोन करती है और छेड़ते हुए बोली,"डैड, क्या मैं अपनी
      सहेलियों के साथ स्कूल के ग्रुप में अमेरीका जाऊं? बस एक महीने
      की ही बात है, बाकी समय आपके साथ  . . ." मिनी को
      बीच में टोकते हुए हर्ष बोले,"शट अप  . . .इससे आगे
      बोली तो स्वीट्जरलैण्ड से अभी नाम कटवा कर लंदन बुला
      लूंगा।" मिनी फोन पर ही हंसने लगी। सूजी ने आश्चर्य से मिनी को पूछा,"ये
      क्या मिनी  . . .अभी तो तुम कह रही थी कि तुम अमेरिका नहीं
      जाओगी फिर डैडी से ऐसी बातें क्यों?" मिनी ने हंसते हुए उत्तर दिया,"यूंही
      डैड को परेशान कर रही थी, आई नो वी कान्ट लिव विदाउट ईच
      अदर।" सोमवार की सुबह घर से निकलते हुए
      जूली ने हर्ष को याद दिलाया कि आज डॉक्टर के पास जाना है। हर्ष
      ने कहा,"सीधा वही जा रहा हूं जूली। रिपोर्ट ले कर सीधा
      तुम्हारी बूटीक आ जाऊंगा।" कुछ ही देर में हर्ष डाक्टर के सामने
      बैठा था। डॉक्टर हर्ष से बोली,"हर्ष 
      . . .आई एम रिअली सॉरी टू से, आप कभी बाप नहीं बन सकते। आपके
      जिस्म में ऐसे बीज ही नहीं हैं जिनकी बाप बनने के लिए
      आवश्यकता होती है।" हर्ष के पांव तले जमीन खिसक गई।
      क्षण भर के लिए अंधेरा सा छा गया। वह बोला,"बट डॉक्टर  . .
      .आई आलरेडी हॅव आ डॉटर  . . ." डॉक्टर ने उत्तर दिया,"आई एम
      अगेन सॉरी हर्ष, शी मे नॉट बी योर्स  . . ." हर्ष के मस्तिष्क पर प्रहार पर प्रहार हो रहा
      है। एक ऐसा तूफान जो जैसे कभी न जाने के लिए आया हो। अपना शव अपने ही कंधों पर लिए हर्ष
      कार की ओर बढ़ गया। जीते जी जीवन में जैसे पहली बार हर्ष ने
      स्वयं को मरा हुआ पाया। "इतना बड़ा धोखा। मिनी मेरी
      बेटी नहीं। सुनैना  . . ." पल भर में सबकुछ बदल गया।
      जिस सुनैना और मिनी के लिए वह अब तक जी रहा था, वह सब
      धोखा था। सुनैना का किसी और के साथ सम्बन्ध और मिनी
      नाजायज़ औलाद  . . .भावनाओं के सैलाब ने इतना बड़ा
      मज़ाक किया। विश्वास और प्रेम के साथ इतना दर्दनाक बलात्कार! हर्ष कार में बैठ तो गया परन्तु किस
      दिशा में जाए? कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। इतने में हर्ष के
      मोबाईल की घण्टी बजी, स्क्रीन पर मिनी का नम्बर देख हर्ष ने लाल
      बटन दबा कर फोन बन्द कर दिया और स्वयं से संघर्ष करने लगा। जीवन भर का सारा प्रेम, विश्वास, समर्पण चूर चूर होकर हर्ष के
      सामने बिखरा पड़ा है। दूसरी ओर जूली  . . .क्या कहेगा हर्ष
      उससे, जूली के जीवन का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण स्वप्न वह
      कभी पूरा नहीं कर सकता। उसका शरीर सिर्फ एक दिखावा है। वह जूली के
      लायक नहीं। मन में उबल रहे अंतरयुद्ध और मस्तिष्क में फट रहे
      ज्वालामुखी को सम्भालने में नाकाम हो रहा है हर्ष। एक ऐसा
      कोलाहल जो कभी न खामोश होने के लिए जीवन में आ गया हो। बहस, बहस और बहस  . . . अपने
      आप से बहस करता हर्ष जहां एक ओर अतीत के हमले से संघर्ष कर रहा
      है वहीं दूसरी ओर भविष्य का सुनहरापन कालिमा में डूबता नज़र
      आ रहा है। आसमान से गिरा है हर्ष आज  . . .ऐसी स्थिति में
      है कि सहारा देने के लिए प्रकृति के हर तत्व ने अपना मुंह मोड़ लिया
      है। "मिनी  जिसे मैंने जान से
      ज्यादा चाहा, मेरी बेटी नहीं, सुनैना  जिसके रहते हुए मैंने
      विश्वास और प्रेम की परिभाषा समझी वह किसी और के बच्चे की मां
      और अंततः जूली  जिसने एक लम्बे समय से अपनी ख्वाहिश का
      गला घोटें रखा मेरे लिए  . . .मैं उसके काबिल नहीं  . .
      ." कश्मकश और मायूसी का जाल उलझता ही जा रहा है। सुनैना के विश्वासघात और अनैतिकता
      के इस बार से लहुलुहान हर्ष जूली के जीवन से खिलवाड़ नहीं
      करना चाहता। मिनी का मासूम चेहरा किसी पराई छवि को ओढ़े हुए
      हैं, यह सत्य हर्ष के स्वाभिमान को झंझोर कर अहंकार में परिवर्तित
      करता जा रहा है। हृदय की हर धड़कन एक बोझ सी लगने लगी।
      खोखलेपन की अंधेरी  गहरी खाई में गिरता चला जा रहा है हर्ष।
      मिनी को अब अपनी बेटी के रूप में स्वीकारना, सुनैना के प्रति
      घृणा के भावों का उभरना और जूली के साथ सम्बन्ध की लाचारी 
      . . .अहं, नफरत, मज़बूरी और लाचारी सब एक साथ प्रहार कर रहे हैं,
      चारों ओर से प्रहार। दूर सबसे दूर हो जाना चाहता है अब हर्ष। न
      किसी का सामना करने की इच्छा है और न ही हिम्मत। अपनी तकदीर को
      धिक्कारता, बिखरता हर्ष मन ही मन किसी निर्णय को तलाशने में
      लग गया। कुछ क्षणों बाद मिनी का फोन फिर आया,
      हर्ष ने कुछ सोच कर कहा,"हैलो  . . ." उधर से मिनी शरारती अंदाज़ में
      बोली,"डैड, मैं सोचती हूं कि अपनी सहेलियों के साथ
      अमेरीका घूम ही आऊं।" हर्ष ने अत्यंत गंभीर स्वर में उत्तर
      दिया,"दैट्स ओके, तुम जा सकती हो।" इससे पहले कि
      मिनी कुछ और कह पाती, हर्ष ने फोन ऑफ कर दिया। कार स्टार्ट कर हर्ष किस राह की ओर जा रहा
      है उसे स्वयं नहीं मालूम जैसे आज वह अपने घर का रास्ता ही भूल
      गया है। अचानक एक लाल रंग का बोर्ड देख कर
      उसने कार को ब्रेक लगाया जिस पर लिखा हुआ था 'डेड एण्ड'।
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