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                     कैसी 
                    विडंबना है! उसके उद्गार, उसके अरमान, उसकी सिसकती वेदना- आज 
                    भग्न-स्वप्न की तरह सड़क के किनारे इन काग़ज़ों में सिसक रहे 
                    थे! पत्र पेंसिल से पीले काग़ज़ों पर लिखे हुए थे। इन पत्रों 
                    में आतताइयों का वर्णन था। वह अभागा सैनिक ऐसे स्थान पर था 
                    जिसे 'नो मैन लैंड'  कहा जाता था जहाँ केवल चूहे, औषधियों का 
                    अभाव, बीमारियों का बाहुल्य और वह वनस्पतियाँ जो गठिया, फुंसी-फोड़े, 
                    पेचिश, अंधौरी और ददौरी आदि के अतिरिक्त कुछ नहीं देती थी। वह अपनी बेटी को सांत्वना 
                    देते हुए लिखते हैं, ''मेरी बेटी! तुम भाग्यशाली हो। उन 
                    व्यक्तियों की ओर दृष्टि डाल कर देखो जिनके पिता, भाई, पति, 
                    पुत्र-पुत्री. . .युद्ध की वीभत्स-घृणित-भूख को मिटा ना सके। 
                    इसीलिए ही कहता हूँ कि तुम कितनी भाग्यवान हो कि अभी भी 
                    तुम्हारा पिता इन पत्रों को लिखने के लिए जीवित है। 
                     बेटी ऐथल को अपने अंतिम पत्र 
                    में लिखते हैं, ''मैं हर समय घर लौटने का स्वप्न देखता रहता 
                    हूँ कि तुम और शारलौट (उसकी पत्नी) दरवाज़े पर मेरी बाट 
                    निहारते होंगे और मैं गले लगा कर, रो रो कर अपने दमित उद्गार 
                    और उन यातना भरे क्षणों को खुशियों के आँसुओं के सैलाब में बहा 
                    दूँ! किंतु ईश्वर ही जानता है कि भविष्य में तुम से मिलने की 
                    यह तृषित-आकांक्षा पूरी हो सकेगी या नहीं। मैं सदैव 
                    आशान्वित-जीवन में रहता हूँ।'' किन्तु दुर्भाग्य और आशा के 
                    युद्ध में दुर्भाग्य ही जीत गया। 19 नवंबर 1917 में शत्रु के 
                    एक लड़ाकू-वायुयान के आक्रमण में घायल होने के कारण फ्रांस में 
                    न. 63, 'केजुअलटी क्लीयरिंग स्टेशन' में भर्ती हो गया। डॉक्टर 
                    और सर्जन उसे बचा न सके। 10 दिन के पश्चात अपनी प्यारी बेटी और 
                    प्रिया शारलॉट से मिलने की अधूरी अभिलाषा अपने साथ ले कर इस 
                    वैषम्य से भरे संसार से 39 वर्ष की आयु में सदैव के लिए विदा 
                    ले ली!  उसकी पत्नी को युद्ध-कार्यालय 
                    की ओर से एक औपचारिक सूचना मिली कि तुम्हारा पति जो लंदन 
                    रेजिमेंट की ९वीँ बटालियन में सेनिक था उसके शव को बेल्जियम 
                    में 'हैरिंगे मिलिट्री कब्रिस्तान' में अंतिम संस्कार सहित 
                    दफ़ना दया गया।  इन पत्रों के साथ एक अख़बार 
                    की कतरन भी थी जिसमें पश्चिमी रण-स्थल का नक्शा था। साथ ही था 
                    जॉर्ज वाइल्ड तथा शारलॉट एलिज़ाबेथ हॉकिन्स के विवाह का 
                    प्रमाण-पत्र जिसके अनुसार उन दोनों का विवाह 8 जुलाई 1900 में 
                    लंदन के चेल्सी-क्षेत्र में सेंट सिमन्स चर्च में समपन्न हुआ 
                    था।  आज इन अमूल्य लेख्य-पत्रों को 
                    ठोकरों में स्थान मिला। पुलिस ने साल्वेशन आर्मी और अन्य 
                    संस्थाओं से सम्पर्क किया है किंतु इन दुख भरे दस्तावेज़ के 
                    उत्तराधिकारी की खोज में अभी सफलता नहीं मिली।  ( बेटी, कभी-कभी न जाने क्यों 
                    मेरे मन में नकारात्मक विचार आ जाते हैं कि क्या मेरे पत्रों 
                    का भी यही हाल होगा!!) प्यार भरे आशीर्वाद सहिततुम्हारे डैडी
 
                    ................................................ यह पत्र मिलते ही मेरी बेटी 
                    ने फौरन ही टेलीफोन किया और कहा, ''डैडी, जिस प्रकार आपने लंदन 
                    के वातावरण में भी मुझे इस योग्य बना दिया कि आपके हिन्दी में 
                    लिखे पत्र पढ़ सकती हूँ और समझ भी सकती हूँ। उसी प्रकार मैं 
                    आपके नाती को हिंदी भाषा सिखा रही हूँ जिससे बड़ा हो कर अपने 
                    नाना जी के पत्र पढ़ सके। आपके सारे पत्र मेरे लिए अमूल्य निधि 
                    हैं। मेरी वसीयत के अनुसार आपके पत्रों का संग्रह उत्तराधिकारी 
                    को वैयक्तिक संपत्ति के रूप में मिलेगा!'' सुन कर मेरे आँसुओं का वेग रुक ना पाया! मेरी पत्नी ने 
                    टेलीफ़ोन का रिसीवर हाथ से ले लिया. . .!
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